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चुनाव चिह्न नहीं मिलने से नेताओं में मायूसी
ब्रह्मपुर : पंचायत चुनाव में मुखिया, सरपंच एवं बीडीसी का चुनाव चिह्न अब तक नहीं मिलने से नेताओं में मायूसी छायी है़ छह अप्रैल को नामांकन की अंतिम तिथि के बाद अधिकारियाें द्वारा ग्यारह अप्रैल सोमवार से चुनाव चिह्न देने की बात कही गयी थी, लेकिन दो दिन इस तपती धूप में प्रखंड कार्यालय का […]
ब्रह्मपुर : पंचायत चुनाव में मुखिया, सरपंच एवं बीडीसी का चुनाव चिह्न अब तक नहीं मिलने से नेताओं में मायूसी छायी है़ छह अप्रैल को नामांकन की अंतिम तिथि के बाद अधिकारियाें द्वारा ग्यारह अप्रैल सोमवार से चुनाव चिह्न देने की बात कही गयी थी, लेकिन दो दिन इस तपती धूप में प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाने बाद भी पंच एवं वार्ड मेंबर को चुनाव चिह्न नहीं मिला.
निर्वाची पदाधिकारी सह बीडीओ भगवान झा ने बताया कि चुनाव चिह्न अनुमोदन के लिए जिला निर्वाचन कार्यालय को भेजा गया है. वहां से अनुमोदन होकर आते ही चुनाव आवंटित कर दिया जायेगा़
डुमरांव : बंधन पटवा रोड में बसे पटवा बिरादरी के परिवार के लोगों द्वारा लग्न को देखते हुए मौर निर्माण कार्य जोरों पर है़ वर्षों से मौर का निर्माण इनके द्वारा किया जाता है़ क्षेत्र के नावानगर, केसठ, चौगाईं, ब्रह्मपुर, चक्की सहित विभिन्न क्षेत्र के दुकानदार मौर बिक्री के लिए यहां से खरीदारी कर ले जाते है़ं मौर निर्माण में लगे अशोक कुमार पटवा व ओमप्रकाश पटवा अपने पूरे परिवार के साथ मिल कर इसका निर्माण करते है़ं लगन के पहले ही मौर निर्माण की तैयारी जोरशोर से जारी है़
कैसे तैयार होता है मौर : मौर निर्माण में एक दर्जन से ऊपर सामग्री का प्रयोग कर एक मउर का निर्माण किया जाता है़ एक मौर बनाने में समय लगभग दो से तीन घंटे का लगता है़ ऑर्डरवाले मौर में समय सीमा का कोई आकलन नहीं होता है़ मौर बनाने में कुट, सादा एवं रंगीन कागज, तार, पगड़ी, माला, मोती, सितारा, लकड़ी, सेहला, मोर पंख सहित अन्य सामान का प्रयोग होता है़
मौर के दाम व क्वालिटी : मौर सबसे कम दाम 150 रुपये से शुरू होता है, जो 500 रुपये तक बिकता है़ मौर निर्माणकर्ता बिहारी, मदन, ललिता देवी कहते हैं कि आर्डर पर कीमती मौर का भी निर्माण किया जाता है़ ग्राहक कई अतिरिक्त सामान जोड़ कर मौर बनाने को कहते हैं, जिसकी कीमत 1500-2000 रुपये तक होती है़ हालांकि ऐसे ग्राहकों की कमी है़
मौर का महत्व : वर पक्ष के द्वारा खरीदा गया मौर पूरी रात शादी के बाद वधु-पक्ष के यहां रह जाता है़ मौर का महत्व वर पक्ष के यहां इमली घोटने की रस्म अदायगी के समय होता है़ जबकि वधू-पक्ष के यहां बरात लगने पर द्वारा पूजा और उसके बाद मंडप में दूल्हे का परिछावन के बाद पूरी रात मौर की जरूरत होती है़ सबसे महत्वपूर्ण सिंदूरदान व गुुरहथी के समय भी मौर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है़ मौर को वधू-पक्ष के यहां एक साल तक सुरक्षित रखने की परंपरा आज भी जारी है़
मौर की कहां-कहां होती है सप्लाइ : पटहेरी मुहल्ला में पटवा समाज के द्वारा मौर का निर्माण किया जाता है़ यहां के बने मौर प्रदेश के विभिन्न जिलों के साथ ही आसाम व बंगाल में भी पहुंचता है़ निर्माणकर्ता कहते हैं कि असम, बंगाल में बिहार के लोगों की संख्या ज्यादा है़ यही कारण है मउर का बाजार बढ़ता जा रहा है़ पटवा बिरादरी के लोगों को आर्थिक सहायता मिले, तो अपना व्यवसाय फैला सकते है़ं क्योंकि इनकी कलाकारी देख सब दंग रहते हैं.
प्रतिवर्ष होता है पांच लाख का कारोबार : मौर निर्माण से जुड़े कारीगर कहते हैं कि प्रति इस पेशे से लगभग हमारे समाज को पांच लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है. हमलोग इसी पेशे से अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं
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