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हरे वृक्षों की कटाई धड़ल्ले से जारी

* सबसे ज्यादा सरकारी भूमि पर काटे जाते हैं वृक्षडुमरांव (नगर) : वृक्ष लगाओ एवं प्रदूषण मिटाओ जैसे कई स्लोग्नों के माध्यम से समुदाय के लोगों को उत्प्रेरित करने की कवायद चल रही है. वहीं, क्षेत्र के विभिन्न भागों में सरकारी तथा गैर सरकारी भूमि पर हरे वृक्षों की कटाई चिंता का विषय बना हुआ […]

* सबसे ज्यादा सरकारी भूमि पर काटे जाते हैं वृक्ष
डुमरांव (नगर) : वृक्ष लगाओ एवं प्रदूषण मिटाओ जैसे कई स्लोग्नों के माध्यम से समुदाय के लोगों को उत्प्रेरित करने की कवायद चल रही है. वहीं, क्षेत्र के विभिन्न भागों में सरकारी तथा गैर सरकारी भूमि पर हरे वृक्षों की कटाई चिंता का विषय बना हुआ है.

इस संबंध में जानकार सूत्रों की माने तो अनुमंडल क्षेत्र में दर्जनों ऐसे अवैध आरा मशीनें संचालित हैं, जिसका कोई अनुज्ञप्ति तक नहीं है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन अवैध आरा मशीनों के संचालन में वैसे सफेदपोश लोगों का संरक्षण प्राप्त है, जिनकी क्षत्रछाया में यह धंधा फल-फूल रहा है.

कई पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि इसकी सूचना देने पर रोकथाम तो नहीं होता, बल्कि आमदनी का जरिया जरूर बन जाता है. हरे वृक्षों की कटाई में फलदार वृक्षों से लेकर शीशम, सागमवान, इक्यू लिप्टस, देवदार जैसे कई हरे पेड़ भी काट लिये जाते हैं.

पंचायत जनप्रतिनिधियों की भी है, लेकिन पेड़ की अंधाधुंध कटाई उनके संरक्षण पर सवालिया निशान लगा रहा है. इसमें कुछ दलाल किस्म के लोगों का जत्था भी सक्रिय है जो प्रतिदिन देहाती क्षेत्रों में घूम-घूम कर वृक्षों के खरीद-फरोख्त में दलाली के अलावा वैसे पेड़ों का सुराग भी देते हैं जो सरकारी जमीन में है. रातोंरात वैसे पेड़ों की कटाई कर आरा मशीनों तक पहुंचा दिया जाता है.

अनुमंडल क्षेत्र का दक्षिणी इलाका एक जमाने में पेड़-पौधों के लिए सबसे धनी था, लेकिन इन सौदागरों की कुल्हाड़ी उसे उजाड़ने पर तुली हुई है. शिक्षाविद ब्रह्म पांडेय, समाजसेवी मदन शुक्ला, शिक्षक भष्माकर दूबे, तुलसी तिवारी का कहना है कि मौसम की मार एवं कीटाणुओं के प्रकोप से इन वृक्षों की रोकथाम भी नहीं की जाती. ऐसे में पेड़ों के सूखने की गति में भी काफी वृद्धि हुई है. स्टेट हाइवे एवं रजवाहा के किनारे-किनारे लगे हरे पेड़ों की सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया गया है. इस तरह के कुकृत्यों से पर्यावरण प्रेमियों में रोष गहराता जा रहा है.

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