आरा : भारतीय रेलवे को जितनी आमदनी मालों की ढुलाई से होती है, उतनी यात्रियों के टिकट से नहीं. यह सर्वविदित सच है़ लेकिन, मालगाड़ियों से माल की लोडिंग एवं अनलोडिंग करनेवाले पलदार मजदूरों की स्थिति बंधुआ मजदूर से भी बदतर है़ आये दिन राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणा पत्रों में सबसे पहले मजदूर एवं किसानों के विकास करने के वादे करते हैं.
बावजूद इन पलदार मजदूरों को आज तक किसी राजनीतिक दलों ने इनकी सुध नहीं ली है़ आरा रेलवे माल गोदाम में लगभग 400 पलदार मजदूर हैं, उनमें आधे से अधिक मजदूर सांस व खांसी की बीमारी से ग्रसित हैं. कई मजदूरों की टीबी जैसी घातक बीमारी से मौत हो चुकी है़ जबकि दो दर्जन मजदूरों की उम्र 60 वर्ष से ऊपर है, किंतु ये केंद्र या राज्य सरकार की किसी भी मजदूर हित की योजनाओं से लाखों कोस दूर हैं. इन्हें यह भी पता नहीं है कि श्रम विभाग क्या बला है़ मजदूरों को किसी प्रकार की सुरक्षा के उपकरण अथवा स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां नहीं दी जाती है़ं
बंधुआ मजदूर बन कर रह गये हैं मजदूर : पिछले दो तीन पीढियों से पलदारी कर रहे हैं ज्यादातर लोग. इनमें दादा के बाद पिता और आज उनका पोता पलदारी कर रहा है़ यह ठीक वैसा ही है, जैसा पहले बंधुआ मजदूर हुआ करते थे़
श्रम विभाग के बारे में नहीं जानते हैं मजदूर :
मजदूरों को पता नहीं है कि श्रम विभाग से मजदूरों को कई तरह के सुरक्षा कीट उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है़ जैसे मुंह को ढंकने के लिए मास्क, दस्ताने, विशेष प्रकार जूते, साबुन, तौलियां, तेल आदि. हमारे पडेासी राज्य झारखंड में मजदूरों को यह सब चीजें हमेशा दी जाती है़ जो काम रेलवे मालगोदाम के पलदार करते है, वहीं काम एफसीआई के पलदार करते हैं. जबकि वहां के पलदार सरकार को टैक्स देते हैं और यहां के पलदार मजदूरों को कोई भीख भी देने वाला नहीं है़
भारतीय रेलवे मालों की ढुलाई पर टिकी हुई है : भारतीय रेलवे माल गोदाम श्रमिक संघ, आरा के अध्यक्ष विजय कुमार पासवान ने बताया कि रेलवे मालों की ढुलाई बंद कर दे, तो इसके कर्मचारियों को वेतन भी नसीब नहीं होंगे अथवा पलदार मजदूर मालों की लोडिंग-अनलोडिंग करना बंद कर दें, तो पूरे देश में एक भी मालगाडियां नही चलेंगी़ लेकिन रेलवे द्वारा किसी प्रकार की सुविधाएं नहीं दी जाती है़ मालगोदाम परिसर में पेयजल, शौचालय, विश्रामघर आदि दैनिक जरूरतों की भी सुविधाएं नहीं मिलती है़ उन्होंने बताया कि हमलोग रेलवे से वेतन की मांग सालों से कर रहे हैं. इसके लिए रेल मंत्रालय में भी जाकर धरना आदि कार्यक्रम चलाये, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ.