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पूर्वाग्रह छोड़ें, राष्ट्र नर्मिाण के लिए सरकार को सलाह दें

पूर्वाग्रह छोड़ें, राष्ट्र निर्माण के लिए सरकार को सलाह देंफोटो स्कैन मेंसंदर्भ : साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने काविचारों के समाहार का नाम ही हिंदुस्तान है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदत्त करनेवाले देश का नाम हिंदुस्तान है. सभी धर्मों का आदर देने का नाम हिंदुस्तान है. संपूर्ण वसुंधरा को कुटुंब समझने का नाम ही हिंदुस्तान है. ऐसे […]

पूर्वाग्रह छोड़ें, राष्ट्र निर्माण के लिए सरकार को सलाह देंफोटो स्कैन मेंसंदर्भ : साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने काविचारों के समाहार का नाम ही हिंदुस्तान है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदत्त करनेवाले देश का नाम हिंदुस्तान है. सभी धर्मों का आदर देने का नाम हिंदुस्तान है. संपूर्ण वसुंधरा को कुटुंब समझने का नाम ही हिंदुस्तान है. ऐसे हिंदुस्तान में तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकार, कलाकार द्वारा पुरस्कार लौटाना अप्रजातांत्रिक और सोची समझी राजनीति है. यह केंद्र सरकार को अस्थिर करने के लिए विश्व पटल पर पीछे ढकेलने का निंदनीय प्रयास है. पुरस्कार वापस करना लोकतंत्र और निर्वाचित सरकार का अपमान है. जुगाड़ आधािरत पुरस्कार, प्रशस्ति पत्र और पद पाने वाले साहित्यकारों की सुविधाएं भविष्य में समाप्त हो सकती है. यह चिंता भी है. ऐसे साहित्यकारों को राष्ट्र को अस्थिर करने के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने का काम नहीं करना चाहिए. प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना जी को हिंदुस्तान के लिए सीने में दर्द में, आंख में आंसू है. मन में कुछ कर दिखाने की तमन्ना है. उनकी सोच सामान्य व्यक्तियों से काफी भिन्न है. किंतु देश सिर्फ भावना और जज्बात से नहीं चलता, उसे रोटी और विकास चाहिए. डिजिटल इंडिया भी चाहिए. भावना लाेक में जीना, स्वप्नलोक में विचरण करना आसान है. किंतु भावना और स्वप्न को यथार्थ के धरातल पर उतारना बड़ा कठिन है. हिंदुस्तान की बदहाली के लिए सिर्फ नेताओं को दोष देना उचित नहीं है. इसके लिए हम आप सभी समान रूप से दोषी हैं. मुनव्वर राना जैसे तमाम साहित्यकारों, कलाकारों को पूर्वाग्रह छोड़ अपने सहयोगियों साथियों के साथ मिल बैठ कर राष्ट्र निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए सरकार की सलाह देनी चाहिए.डॉ मधुसूदन झास्नातकोत्तर हिंदी विभाग सह समन्वयक स्नातकोत्तर अंगिका विभाग, टीएमबीयू

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