प्रतिनिधि,भागलपुर. विश्वविद्यालय पुस्तकालय में चल रहे 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के 11 वें दिन के वर्ग में ओडिशा के संस्कृत विद्वान डॉ ब्रजकिशोर स्वान ने पाण्डुलिपियों के सम्पादन प्रणाली विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार पाण्डुलिपियों के सम्पादन के क्रम में मामूली भेद होने पर अर्थान्तर हो जाता है. उन्होंने कालीदास के अभिज्ञान शाकुंतलम, पंतजलि के महाभाव्य इत्यादि ग्रंथों के श्लोकों का उदाहरण पेश किया. श्री स्वान ने ऊँ शब्द के उच्चारण व स्पष्टता को वेदों से जोड़ते हुए इसकी व्याख्या की. प्रति कुलपति ने पूर्व वर्ग की समीक्षा करते हुए पाण्डुलिपियों के संरक्षण विधि पर प्रकाश डाला. पाण्डुलिपियों के संरक्षण में रासायनिक पदार्थों का उपयोग कम से कम करना चाहिए. पारंपरिक विधि को उत्तम बताते हुए कहा कि पांडुलिपियों के पत्रकों जैसे ताड़पत्र, भोजपत्र आदि का निर्माण विजया दशमी जैसे पवित्र त्योहारों में किया जाता था. पांडुलिपियों को कीटों से बचाने के लिए अश्वगंधा, वशम्भू, आदी, पुदीना, लेमनग्रास, काला जीरा इत्यादि पौधों का उपयोग करना चाहिए. इससे वातावरण पर पड़ने वाले कुप्रभाव व पाण्डुलिपि का बचाव कर सकते हैं. कार्यशाला में विभिन्न राज्यों से आये प्रतिभागी संतोष, सुमन, आकोला, श्वेता, विश्वामित्र, विकास, राघव, रितेश, पुष्पेंद्र, राज कुमार राजा, नूतन, अभिनव, अर्चना, डॉ केके मंडल, डॉ निशा झा, डॉ रजी इमाम, डॉ सतीश त्यागी, बिहारी लाल, डॉ रजनीश त्रिवेदी, निक्की आदि ने वर्ग अध्ययन कार्य पूरा किया.
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आडिशा के संस्कृत विद्वान का व्याख्यान
प्रतिनिधि,भागलपुर. विश्वविद्यालय पुस्तकालय में चल रहे 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के 11 वें दिन के वर्ग में ओडिशा के संस्कृत विद्वान डॉ ब्रजकिशोर स्वान ने पाण्डुलिपियों के सम्पादन प्रणाली विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार पाण्डुलिपियों के सम्पादन के क्रम में मामूली भेद होने पर अर्थान्तर हो जाता है. उन्होंने कालीदास के […]
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