भागलपुर: बढ़ती महंगाई में जहां खाने-पीने से लेकर दवा व चिकित्सा खर्च में वृद्धि हुई है, वहीं कमीशन के खेल में मरीजों की जेब हर दिन हल्की हो रही है. आजकल किसी भी बीमारी के इलाज के लिए पैथोलॉजिकल जांच को चिकित्सक महत्वपूर्ण बताते हैं. वे मरीज की जांच के बाद सबसे पहले संबंधित बीमारी की जांच लिखते हैं.
रिपोर्ट देखने के बाद दवा व अन्य सलाह देते हैं. शहर के हर गली-मोहल्ले में लैब खुले हुए हैं, जिसमें आधे से अधिक लैब ऐसे हैं जिसमें चिकित्सकों का कमीशन आधा तय रहता है. इसी हिसाब से चिकित्सक जांच लिखते हैं ऐसे में लैब संचालक की मजबूरी होती है कि जिस जांच की कीमत तीस रुपये होनी चाहिए उसकी कीमत वे मरीजों से सौ रुपये लेते हैं.आधा पैसा डॉक्टर को कमीशन में चला जाता है.
इसके बाद केमिकल, किट व स्टाफ खर्च के बाद जो बचता है वह लैब संचालक का होता है. कई नर्सिग होम तो ऐसे हैं कि यहां के कंपाउंडर को भी कमीशन देना पड़ता है. इतना ही नहीं अब तो कई ऐसे नर्सिग होम हैं जहां दवा दुकान के साथ-साथ कलेक्शन सेंटर भी है. कई लैब संचालकों ने बताया कि यह सब चिकित्सकों की मरजी से ही तय होता है कि किस जांच पर कितनी राशि लेनी है. अलग-अलग लैब में हर जांच की कीमत भी अलग है. एक अनुमान के अनुसार शहर में पैथोलैब से प्रतिमाह कमीशन के तौर पर चिकित्सक की जेब में 12 से 15 लाख रुपये जाता है. जिसका अतिरिक्त बोझ मरीजों पर ही पड़ता है.
बिना लागत के होती कमाई
शहर में खुले कई जांच सेंटर ऐसे हैं, जिनके पास जांच करने के लिए अपना कुछ नहीं है. छोटे से स्थान पर कलेक्शन सेंटर के नाम से जांच घर संचालित हैं. इनका काम है मरीजों की जांच का सैंपल कलेक्शन कर संबंधित लैब तक सैंपल पहुंचा देना. इसके बाद जांच उक्त लैब में होती है. शहर में चल रहे 50 लैब में 20 के पास ही अपनी सीबीसी मशीन है. वहां अगर किसी मरीज से किसी जांच के लिए सौ रुपये लिया जाता है, तो चिकित्सक का 50 रुपये तय है. इसके बाद 15 रुपये जांच के और शेष 35 रुपये उस लैब की कमाई होती है.
मरीजों में असमंजस
शहर के कई लैब ऐसे हैं, जहां से आप जांच कराने के बाद रिपोर्ट लेकर चिकित्सक के पास जायेंगे तो आप दिग्भ्रमित हो जायेंगे. चिकित्सक उस रिपोर्ट को नकार देते हैं और दोबारा अपने पसंदीदा लैब में जांच कराने कहते हैं. ऐसे में मरीजों की समस्या यह है कि वे कैसे तय करें कि कहां जांच कराये. एक मरीज ने बताया कि एक लैब में ब्लड सैंपल दे दिये, जांच भी हो गयी रिपोर्ट देने पर डॉक्टर ने मना कर दिया. दोबारा दूसरे लैब में ब्लड का सैंपल दिया उस रिपोर्ट पर इलाज शुरू हुआ.
15 लाख कमीशन
अगर एक मरीज को किसी चिकित्सक द्वारा न्यूनतम 200 रुपये का भी जांच लिखा जाता है तो 100 रुपये चिकित्सक के हो जाते हैं बाकी पैसे में लैब खर्च व कर्मचारियों का वेतन शामिल रहता है. ऐसे में अगर एक लैब एक माह में 50 हजार रुपये की भी जांच होती है तो 25 हजार रुपये कमीशन में खर्च हो जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक शहर में 50 पैथो लैब चल रहे हैं अगर प्रतिदिन 1500 से दो हजार रुपये की भी जांच होती है तो एक माह में 25 से तीस लाख रुपये का धंधा होता है. जिसमें जिसमें कमीशन के तौर पर चिकित्सक की जेब में 12 से 15 लाख रुपये चला जाता है. जिसका अतिरिक्त बोझ मरीजों पर ही पड़ता है. अगर कमीशन का खेल बंद हो जाये तो मरीजों को सस्ती व सुलभ स्वास्थ्य सेवा का लाभ मिल सकेगा.