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भागलपुर : शुद्ध पानी के नाम पर केमिकल मिला पानी पी रहे लोग, पेट के मरीजों की संख्या बढ़ी

दीपक राव, भागलपुर : जलापूर्ति नहीं होने के कारण भागलपुरवासी परेशान हैं. जल प्रदूषण के कारण निम्न मध्यवर्गीय व मध्यवर्गीय लोग सबमर्शिवल, बोरिंग व चापाकल से मुंह माेड़ने को विवश हैं. ऐसे में उनका विकल्प जार वाला पानी, वाटर प्यूरीफायर व बंद बोतल पानी रह गया है. इसी का फायदा उठाकर कई ऐसे पानी कारोबारी […]

दीपक राव, भागलपुर : जलापूर्ति नहीं होने के कारण भागलपुरवासी परेशान हैं. जल प्रदूषण के कारण निम्न मध्यवर्गीय व मध्यवर्गीय लोग सबमर्शिवल, बोरिंग व चापाकल से मुंह माेड़ने को विवश हैं. ऐसे में उनका विकल्प जार वाला पानी, वाटर प्यूरीफायर व बंद बोतल पानी रह गया है.

इसी का फायदा उठाकर कई ऐसे पानी कारोबारी हैं, जो बिना मानक के पानी का कारोबार कर रहे हैं. शहर के विभिन्न मोहल्लो व पानी कारोबारियों से बातचीत की गयी, तो मालूम चला कि पानी के कारोबार में गोरखधंधा शामिल है. बिना पानी के जांच के पानी सप्लाई की जा रही है.

पेयजल 20 से 40 रुपये जार
निजी बोरिंग से लोगों को पानी बेचने का प्रचलन जाेरों पर है. सीधे बोरिंग का पानी पांच से 10 रुपये जार व पीने का पानी 20 से 30 रुपये जार बिक रहे हैं.
1200 छोटे-बड़े प्लांट खुले
जिला उद्योग केंद्र से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है. एमएसएमइ के तहत यह उद्योग आधार होता है. फूड डिपार्टमेंट की जांच करानी होती है. विभाग के कर्मियों की मानें तो जिले के इक्का-दुक्का लोग ही आइएसआइ मार्का है.
पानी का कारोबार शुरू करने के लिए यह जरूरी है. बावजूद शहर में बिना अनुमति से गली व मोहल्ले में पानी का प्लांट खुल गया है. जिला उद्योग केंद्र के प्रभारी जीएम रमणजी प्रसाद खुद मानते हैं कि जिले में 1200 से अधिक पानी के प्लांट चल रहे हैं.
क्या है नियम
  • नगर निगम का लाइसेंस
  • उद्योग विभाग से उद्योग आधार
  • फूड विभाग से आइएसआइ मार्का
  • 6 इंच बोरिंग के लिए एनओसी
  • व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए नगर निगम का एनओसी
  • बीआइएस प्रमाण पत्र
  • तय समय पर लैब टेस्ट की रिपोर्ट जमा करना
  • साफ जार का होना
  • फूड इंस्पेक्टर का निरीक्षण
  • वाटर रिचार्ज सिस्टम का होना
रोजाना 30 लाख से अधिक का पानी खरीदते हैं लोग
उच्च मध्यमवर्गीय व उच्च वर्गीय लोग बंद बोतल पानी का सहारा ले रहे हैं. इससे लाखों के बोतल बंद पानी का कारोबार रोजाना हो रहा है. लोगों को रोजाना औसतन 30 लाख से अधिक रुपये पानी जार पर लगाना पड़ रहा है.
पानी कारोबारी बताते हैं कि पानी जार की सप्लाइ शहर के होटल, दुकानों व दफ्तरों में किया जाता है. गरमी के दिनों में एक कारोबारी 200 से 300 तक पानी जार सप्लाइ कर लेते हैं. पहले शहर में पानी जार की सप्लाई करने वाले 150 से अधिक कारोबारी थे. चार वर्षों में शहर में 500 से अधिक पानी कारोबारी हो गये हैं.
गंदे जार में भर देते हैं पानी
पानी कारोबारी रंजन प्रसाद ने बताया कि बिना मानक के पानी का कारोबार हो रहा है. इससे कुशल व्यापारियों की ख्याति भी खराब हो रही है. कई लोग पानी में कैमिकल देकर मिठास ला देते हैं, लेकिन पानी अशुद्ध ही रहता है. पानी कारोबारी राकेश ओझा ने बताया कि शहर में पेयजल संकट बढ़ने से जार वाले पानी का कारोबार बढ़ गया है.
कई कारोबारी जार की सफाई पानी देने से पहले केमिकल से करते हैं, तो कई लोग कजली लगे जार में ही पानी भरकर भेज देते हैं. इनकी जांच करने वाला कोई नहीं है. 20 लीटर पानी वाले जार का दाम 20 से 40 रुपये तक आता है. लोगों का कहना है कि नगर निगम की ओर से शुद्ध पानी मिल जाये, तो बंद बोतल पानी खरीदने की जरूरत नहीं होगी.
10 हजार कार्टून बोतलबंद पानी से रोजाना 10 लाख का कारोबार:
शहर व आसपास क्षेत्रों में 15 से अधिक बोतलबंद पानी के प्लांट स्थापित किये गये हैं. इसमें ब्रांडेड भी शामिल है. एक कार्टून बोतलबंद पानी से 80 से 125 रुपये तक आता है. दरअसल रोजाना 10 हजार कार्टून का कारोबार होता है. ऐसे में प्रतिदिन औसत 10 लाख का कारोबार होता है.
  • जिले में 1200 से अधिक पानी के प्लांट चल रहे हैं
  • चार वर्षों में 20 हजार से बढ़कर 1.10 लाख जार पर पहुंचा पानी का कारोबार
  • रोजाना लाखों का पानी का कारोबार, शहर में 10 हजार बोतल बंद पानी के कार्टून की होती है सप्लाइ
एक लीटर पानी साफ करने में तीन लीटर बर्बाद होता है आरओ
विशेषज्ञों के अनुसार वाटर प्यूरीफाई हर एक लीटर पानी साफ करने के पीछे तीन लीटर पानी बरबाद करता है. इसका 75 प्रतिशत अन्य कई काम में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है.
केवल पांच प्रतिशत ही लोग आरओ से निकले पानी का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह भागलपुर में पानी के लिए जितने प्लांट लगे हैं उसका आकलन किया जा सकता है कि हम कितना पानी बरबाद कर रहे हैं. दूसरी ओर निगम द्वारा गंदे पानी की सप्लाई के कारण यहां सभी आरओ का इस्तेमाल करते हैं तो कितना पानी बरबाद होता है इसकी कल्पना की जा सकती है.
खाद्य विभाग के पदाधिकारी नहीं हैं गंभीर
खाद्य विभाग कार्यालय में मालूम किया तो अधिकतर पानी कारोबारियों ने आइएसआइ मार्क का लाइसेंस नहीं लिया था. संबंधित विभाग के पदाधिकारी से बात करने की कोशिश की गयी, इसके बाद फूड इंस्पेक्टर को मैसेज किया गया.

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