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सदर अस्पताल : ओपीडी से आइपीडी तक जरूरी दवा-इंजेक्शन तक नहीं

भागलपुर : स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी बताते हैं कि सदर हॉस्पिटल ओपीडी में कुल 33 प्रकार की दवाओं में से 30 और आइपीडी (अंत:कक्ष विभाग) में जरूरी 112 में से 97 प्रकार की दवाएं उपलब्ध हैं. लेकिन हकीकत में कई महत्वपूर्ण दवाएं यहां नहीं है. यहां पर अल्ट्रासाउंड सेंटर नहीं है. जबकि यहां पर […]

भागलपुर : स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी बताते हैं कि सदर हॉस्पिटल ओपीडी में कुल 33 प्रकार की दवाओं में से 30 और आइपीडी (अंत:कक्ष विभाग) में जरूरी 112 में से 97 प्रकार की दवाएं उपलब्ध हैं. लेकिन हकीकत में कई महत्वपूर्ण दवाएं यहां नहीं है. यहां पर अल्ट्रासाउंड सेंटर नहीं है. जबकि यहां पर पांच महिला चिकित्सक हर रोज 70 गर्भवती महिलाओं की सेहत की जांच से लेकर प्रसव तक कराती हैं. यहां पर सरकारी अल्ट्रासाउंड मशीन सड़ रही है.

शव ढोने के लिए पूरे जिले में महज दो एंबुलेंस, एक खराब : पूरे जिले के सभी अस्पतालों(मायागंज हॉस्पिटल) में महज दो एंबुलेंस लाश ढाेने के लिए उपलब्ध है. एक एंबुलेंस खराब है, जबकि एक एंबुलेंस संबंधित एजेंसी द्वारा अभी तक चलाया नहीं जा रहा है. जिले में सिर्फ मातृत्व मृत्यु दर ही हर एक लाख की आबादी पर 200 है. लाश नहीं ढो रहे एंबुलेंस के खड़े रहने के कारण, स्टेट हेल्थ सोसाइटी ने संबंधित कार्यदायी एजेंसी को फटकार तक लगाया है.
12 सरकारी अस्पतालों की 12 रिपोर्टरों ने की पड़ताल
जिले के सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की घोर कमी है. जबकि जिले की बड़ी आबादी इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पर निर्भर है. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की घोर कमी है. अक्सर गंभीर मरीजों का इलाज करने के बजाय उन्हें रेफर कर दिया जाता है. सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को लेकर प्रभात खबर टीम ने पड़ताल की.
जेएलएनएमसीएच : दिल, दिमाग, किडनी के विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं
जेएलएनएमसीएच (मायागंज हॉस्पिटल) 528 बेड का हॉस्पिटल है. यहां पर 13 जिलों के मरीज इलाज के लिए आते हैं. ऐसे में यहां पर 700 से अधिक बेड लगाये गये हैं. जिसके सापेक्ष महज 100 ही डॉक्टर हैं. विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात करें तो यहां पर दिल (हार्ट), किडनी, दिमाग (मस्तिष्क), कैंसर रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं. मस्तिष्क रोगों के एक मात्र न्यूरो सर्जन डॉ पंकज राय हैं. लेकिन यहां पर न्यूरो फिजिशियन न होने के कारण दिमाग के मरीजों को इलाज के लिए सिलिगुड़ी-पटना रेफर करना पड़ता है. माइनर हार्ट अटैक होने पर मरीजों के लिए यहां पर कैथलैब तक नहीं है. यहां पर हर रोज सात से आठ मरीजों की मौत होती है. यहां पर एक ही शव ढोने के लिए एंबुलेंस है.
डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे सरकारी अस्पताल
जिले के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं. कहीं दंत चिकित्सक सर्दी-बुखार के मरीजों का इलाज कर रहा है तो जिले के आधा दर्जन अस्पतालों को महिला चिकित्सक तक नसीब नहीं है. यहीं नहीं करीब ढाई दर्जन अस्पतालों में तो आयुष (आयुवेर्दिक, यूनानी, होमियोपैथिक) के डाॅक्टर मरीजों की नब्ज पकड़ उन्हें एलोपैथी (अंग्रेजी) दवा दे रहे हैं.
सदर अस्पताल को मिले 10 में चार अंक
जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल अगर मरीजों के फीड बैक के आधार पर जाना जायें तो यहां पर इलाज कराने वाले 60 प्रतिशत मरीज मायूस होकर घर लौटते हैं. सदर हॉस्पिटल में इलाज कराने के लिए आने वाले 10 मरीजों से पूछा गया तो अगर यहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से अंक देना हो तो आप कितना देंगे.
10 में से छह मरीजों ने सदर हॉस्पिटल को शून्य अंक दिया जबकि चार मरीजों ने संतोषजनक बताया. भर्ती होने वाले मरीज ने बताया कि उसे खाना तक ठीक से नहीं मिलता है. ऑपरेशन से पहले मरीजों के परिजनों से बाहर से लेबर पेन की दवा व सर्जरी का सामान मंगाया जाता है. बच्चा पैदा हुआ तो बधाई के नाम पर रुपये मांगा जाता है. प्रसव के लिए आनेवाली महिलाओं को एंबुलेंस सेवा नहीं मिलती है.

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