भागलपुर : 24 अक्तूबर, 1989 के दंगे के मामले में नौ नवंबर 2015 को तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश जनार्दन त्रिपाठी ने कामेश्वर यादव सहित नौ आरोपित को बरी किया था. अभियोजन पक्ष की याचिका पर पटना हाइकोर्ट ने कड़ी सुनवाई के बीच गवाहों को निचली अदालत में सुनवाई करवायी थी. इस कारण पुलिस के वरीय पदाधिकारी पर गवाहों की सुरक्षा की जिम्मेवारी थी. दंगा मामले पर निर्णय स्पीडी ट्रायल के तहत आया था. भागलपुर दंगा मामले में 248/91 में छह अगस्त 2015 से नौ नवंबर 2015 तक 10 अलग-अलग तिथि में बहस चली थी.
तीन अलग-अलग कमीशन ने दी थी रिपोर्ट : सरकार की ओर भागलपुर दंगे पर गठित अंतिम कमीशन जस्टिस एनएन सिंह की रिपोर्ट बिहार विधानसभा के पटल पर रख दिया गया. इस रिपोर्ट में कमीशन ने दंगे को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री को जिम्मेवार माना है. एक हजार पृष्ठ की रिपोर्ट में मुख्यमंत्री पर त्वरित कार्रवाई नहीं किये जाने की जिम्मेवारी देते हुए तत्कालीन पुलिस पदाधिकारी को भी निष्क्रिय बताया.
24 अक्तूबर 1989 में अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए ईंट एकत्र करने का जुलूस भागलपुर से होकर गुजर रहा था. इस जुलूस को विभिन्न भागों से होते हुए गोशाला क्षेत्र से अयोध्या जाना था. परबत्ती क्षेत्र से जुलूस के गुजरने के दौरान तत्कालीन नेता महादेव प्रसाद सिंह ने सदस्यों को शांति पूर्वक गुजरने की बात कही थी. तत्कालीन एसपी केएस द्विवेदी के एस्कॉर्ट में जुलूस गुजर रहा था. इस दौरान कुछ सदस्य आपत्तिजनक नारेबाजी करने लगे तो तत्कालीन डीएम अरुण झा ने शांति बनाने की अपील की. मुसलिम हाइ स्कूल के पास बम से हमला कर दिया. घटना में 11 पुलिस वाले जख्मी हो गये और इसके बाद दंगा भड़क गया. दो माह तक भागलपुर शहर में कर्फ्यू लगा था.
यह हुआ था मामला दर्ज
परबत्ती मोहल्ला के अजहर अली लेन के सैयद अफसर अली ने कोतवाली थाना में शिकायत दी थी कि ढाई सौ दंगाई ने कई घरों में लूट व आगजनी कर दी. 16 व्यक्तियों की हत्या कर उन्हें गायब कर दिया.