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ठिठुरन बरकरार, गायब हो गये सामूहिक अलाव

बेगूसराय : ठंड हर किसी को मुश्किल में डालता है एवं जाड़े के इस मौसम में हर इनसान ठंड के बचाव का प्रयास अपने पास मौजूद साधनों के आधार पर करता है. आधुनिकता के साथ ठंड से बचने के उपायों में भी तेजी से परिवर्तन आया है और ठंड में दिखनेवाली कुछ बातें तो ग्रामीण […]

बेगूसराय : ठंड हर किसी को मुश्किल में डालता है एवं जाड़े के इस मौसम में हर इनसान ठंड के बचाव का प्रयास अपने पास मौजूद साधनों के आधार पर करता है. आधुनिकता के साथ ठंड से बचने के उपायों में भी तेजी से परिवर्तन आया है और ठंड में दिखनेवाली कुछ बातें तो ग्रामीण व शहरी इलाकों से लुप्त प्राय होने लगी हैं.

ऐसा लगता है कि मानव ठंड के कुछ क्रियाकलाप जो कुछ वर्षों पूर्व तक देखे जाते थे. अब अतीत की बातें बन कर रह गयी हैं. भागदौड़ की जिंदगी के बीच हर कोई फटाफट तरीकों का इस्तेमाल कर ठंड से बचने की कोशिश करता है. आधुनिक युग के रूम हीटर, वाटर हीटर, गीजर, सामान्य हीटर व अन्य साधनों ने ठंड से बचने के पारंपरिक साधनों को समाप्ति की ओर धकेल दिया है.
पहनावे में भी आया है तेजी से बदलाव : पहले ठंड में लोग शरीर पर खूब ऊनी कपड़े पहनते थे.
हाथ से बने उनी कपड़ों का ज्यादा प्रयोग होता था. हर कोई चादर व कंबल से लिपट कर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. मगर आधुनिक युग में कोर्ट, जैकेट, बंडी व टोपी ठंड के मुख्य परिधान बन गये हैं. हाथों से बने स्वेटर चंद शरीरों पर ही नजर आते हैं. सिनेमा से भी ठंड का दर्द दूर होने लगा है. एक समय था जब लोग ‘सरकाय दियो खटिया जारा लगे, जारे में बलमा प्यारा लगे’ जैसे गीत खूब गुनगुनाते नजर आते थे.

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