मिटने के कगार पर हैं जिले की कई नदियों के वजूद
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नदी बचाअो. खेतों में सिंचाई व पेयजल की शुरू हो गयी है समस्या
मिटने के कगार पर हैं जिले की कई नदियों के वजूद जिले की 150 में अधिकतर नदियां हैं बरसाती क्या हो सकते हैं नुकसान नदियों का वजूद मिटने पर जिले की अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो सकती है. यहां की कृषि पूरी तरह चौपट हो जायेगी. जिले की अर्थव्यवस्था का 74 प्रतिशत कृषि पर आश्रित है. […]
जिले की 150 में अधिकतर नदियां हैं बरसाती
क्या हो सकते हैं नुकसान
नदियों का वजूद मिटने पर जिले की अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो सकती है. यहां की कृषि पूरी तरह चौपट हो जायेगी. जिले की अर्थव्यवस्था का 74 प्रतिशत कृषि पर आश्रित है. नदियों के ह्रास से जनजीवन भी तबाह हो जायेगा. लोग सिंचाई के साथ साथ पीने के पानी के लिए तरस जायेंगे. वन क्षेत्र सिमट जायेगा. हरियाली नष्ट हो जायेगी. पर्यावरण में जहर घुल जायेगा.
इन नदियों का है अस्तित्व खतरे में
जिले की बड़ी नदियों में शुमार चांदन, ओढ़नी, मिर्चनी, गेरूआ, चीर, गहिरा, बदुआ, बिलासी, दरभासन आदि का अस्तित्व संकट में है. इन नदियों में पानी का नामोनिशान नहीं है. कहीं कुछ स्थानों पर गड्ढ़ों और नालों में पानी दिखता जरूर है लेकिन ये भी सूखने के कगार पर हैं. नदियों में निकल गयी मिट्टी की सतह पर घास उग आये हैं. कई जगह लोग नदियों में खेती भी करने लगे हैं. छोटी नदियों में डकाय, जमुआ आदि का भी अस्तित्व मिटने पर है. नदियों में पेड़ पौधे उग चुके हैं. कई जगह अतिक्रमित कर इन्हें नालों में तब्दील कर दिया गया है.
अगर नदियों का बचाव नहीं किया गया, तो आने वाले समय में बांका जिला नदी विहीन हो जायेगा. नदियां जिले के आम जनजीवन व कृषि की जीवन रेखा हैं लेकिन इनका अस्तित्व संकट में है.
बांका :नदियां बांका जिले की जीवन रेखा हैं. जिले की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और इस जिले की कृषि यहां की नदियों पर आधारित है. लेकिन दुर्भाग्य से इस जिले की अनेक नदियों का वजूद मिटने के कगार पर है. यह इस जिले की कृषि, अर्थव्यवस्था और भावी जन जीवन के लिए खतरे का संकेत है. बांका जिले को पहाड़ी नदियों का भू- भाग कहा जाता है.
जिले की तमाम छोटी बड़ी नदियां पहाड़ों से निकलती हैं. इनमें से ज्यादातर के श्रोत जिले की दक्षिणी सीमा से लगे पहाड़ों और झरनों तथा कुछ के झारखंड क्षेत्र के पहाड़ी झरनों से जुड़े हैं. जिले में छोटी और बड़ी तकरीबन 150 पहाड़ी नदियां बहती हैं. इनमें से ज्यादातर में पानी का बहाव सिर्फ बरसात के मौसम में ही होता है. जबकि कई नदियों का श्रोत सालों भर जीवित रहता है. जिले की आधी से अधिक आबादी ऐसी ही बारहमासी नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में बसती है. इन क्षेत्रों में कृषि भी खूब लहलहाती है. ऐसी नदियों में चांदन, ओढ़नी, चीर, गेरूआ, सुखनिया, डकाय, जमुआ, मिर्चनी, चिहुंटजोर, गहिरा, बदुआ, दरभासन, बेलहरना, बिलासी आदि शामिल हैं.
क्यों सूख रहीं नदियां
जिले में भू- गर्भीय जल श्रोत निरंतर नीचे उतरता जा रहा है. हर साल इसके नीचे उतरने की दर 6 से 9 इंच तक है. नदियों के बेड वाले इलाके में भी यह दर कम नहीं है. कई बड़ी नदियों पर डैम का निर्माण भी इसकी एक प्रमुख वजह है. बड़े पैमाने पर बेतरतीब उत्खनन और बालू के उठाव ने भी नदियों को बीमार और निराश कर दिया है. बालू का उठाव कुछ इस कदर हुआ है कि नदियों का स्तर जल श्रोत से नीचे मिट्टी तक पहुंच गया.
नहीं किये जा रहे संरक्षण व बचाव के उपाय : जिले की प्राणदायिनी नदियों के बचाव और संरक्षण के लिए प्रशासन व सरकार के स्तर पर कोई ठोस उपाय नहीं किये जा रहे. जब तब घोषणाएं जरूर हो रही है. लेकिन न तो इनका क्रियान्वयन हो पाता है और न ही कोई फलाफल ही सामने आ पा रहा है. उलटा इन नदियों का बेहिसाब दोहन भी हो रहा है. नदियों के उपरी हिस्से में बने डैम और इनके सिल्टेशन की वजह से नदियों में पानी का बहाव रूक गया है. बालू का बड़े पैमाने पर बेतरतीब उत्खनन जारी है. प्रशासन और सरकार इन सब से बेखबर है. इधर नदियां सिमटती चली जा रही हैं.
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