सफा अनुयायियों ने भगवान नरसिंह की आराधना कर किया प्रथम अनुष्ठान
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मंदार को साक्षी मान आरंभ हो गया भक्ति का मंथन
सफा अनुयायियों ने भगवान नरसिंह की आराधना कर किया प्रथम अनुष्ठान बांका : कई धर्म व संस्कृति को अपने विहंगम आकार में समेटे मंदार भक्तिमय सागर में मंथन के लिए तैयार हो रहा है. आगामी 14 जनवरी मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर इस प्रांगण में एक साथ कई धर्मों के भक्त अपने इष्ट देवता […]
बांका : कई धर्म व संस्कृति को अपने विहंगम आकार में समेटे मंदार भक्तिमय सागर में मंथन के लिए तैयार हो रहा है. आगामी 14 जनवरी मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर इस प्रांगण में एक साथ कई धर्मों के भक्त अपने इष्ट देवता की अर्चना में धुनी रमाते दिखेंगे. खास आकर्षण का केंद्र सफा अनुयायी ही होते हैं. हिंदू धर्म के सफा अनुयायियों का प्रथम अनुष्ठान सोमवार को शुरू हो गया है. यानी चली आ रही परंपरा के अनुसार बांका जिले के सफा अनुयायियों ने पूर्व वर्ष की भांति दो जनवरी को नरसिंह भगवान की आराधना की. सफा अनुयायियों का यह जत्था कटोरिया प्रखंड के पपरेवा गांव से पहुंचा था. जबकि 10 जनवरी से झारखंड,बंगाल व बिहार के अन्य कोने से सफा अनुयायियों की भीड़ जुटनी शुरू हो जायेगी.
सीताकुंड में स्नान कर देवता को लगाया भोग
सादे पोशाक धारण किये सफा अनुयायियों ने सर्व प्रथम परंपरा के मुताबिक सीता कुण्ड में स्नान किया. तत्पश्चात खीर बनाकर कुंड के समीप अवस्थित पिंड पर भोग लगाया. उसके बाद सभी के बीच प्रसाद का वितरण किया गया. साथ ही आदिवासी भाषा में परंपरागत गीत भी गाये गये.इस अवसर पर भारी संख्या में सफा की महिला व बच्चे अनुयायी भी मौजूद हो कि सफा धर्म के अनुयायी भगवान शिव और राम को अपना आराध्य देव मानते हैं. मंदार में सफा धर्म के गुरु बाबा काफी संख्या में अपना पड़ाव लगाकर यहां प्रवचन करते हैं.
वैष्णव हैं सफा धर्म के अनुयायी
सफा धर्म के अनुयायी सुरेश किस्कू ने बताया की सफा का मतलब सतसंग होता है. वे लोग मांसाहारी नहीं होते हैं.साथ ही शराब का सेवन भी वर्जित है. जिले के कई आदिवासी गांव में सफा को मानने वाले कई घर है और इसी मौसम में आकर देवताओं की पूजा करते हैं. महिलाएं सिंदूर नहीं पहनती है. उनके मुताबिक रिश्ते के लिए निशानी की जरूरत नहीं है, बल्कि हृदय में रिश्ते का विश्वास होना जरूरी है.
शराबबंदी पर सफा धर्म ने पहले ही लगायी है मुहर
सूबे की सरकार ने शराब बंदी लागू कर जहां एक मिसाल कायम किया है. वहीं सफा धर्म के अनुयायियों ने पहले से ही शराब बंदी पर अपनी मुहर लगा दी है. सफा धर्म को मानने वाले लोग जन्म से ही शराब से कोसों दूर रहते है. सफा धर्म के लोग वैष्णवी रहते हुए शराब पीना तो दूर शराब को छूते तक भी नहीं है. सफा धर्म के संत चंदर बाबा ने आदिवासियों में वैष्णव मत का प्रचार प्रसार के लिए सफा धर्म के जरिये संदेश दिया. जिसके अनुयायी भारी संख्या में मौजूद है.
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