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खिलाड़ियों की कुंठित हो रही प्रतिभा, सपना बनकर रह गया स्टेडियम

14 वर्ष पहले ओबरा में एक प्रयास किया गया था

ब्रजेश कुमार द्विवेदी, ओबरा ओलिंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले बजरंग पुनिया, साक्षी मल्लिक, मीरा बाई चानू, मैरिकॉम, सुशील कुमार, विजेंद्र सिंह, विजय कुमार, योगेश्वर दत्त जैसे खिलाड़ियों ने छोटे से शहर या गांवों से निकलकर अपनी प्रतिभा का डंका बजाया है. खेलों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य की सरकार पानी की तरह पैसे बहा रही है, लेकिन स्टेडियम या यूं कहे खेल मैदान के अभाव में खिलाड़ियों की प्रतिभा कुंठित होती जा रही है. दाउदनगर अनुमंडल के ओबरा में लाखों की आबादी है और विभिन्न खेलों से संबंधित सैकड़ों खिलाड़ी है, लेकिन खेल मैदान नहीं होने के कारण वे अपनी प्रतिभाओं को उड़ान नहीं दे पा रहे है. उनके तमाम सपने गांवों में ही ध्वस्त हो जा रहे हैं. गांवों के खिलाड़ी खेत-खलिहानों को ही मैदान समझ ले रहे है, लेकिन कहीं न कहीं ये अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित नहीं कर पा रहे है. गांवों में होने वाले खेलों के आयोजन से कोई लाभ नहीं मिल रहा है. जिला प्रशासन भी खेलों के प्रति गंभीर नहीं है,फिर स्थानीय प्रशासन की बात ही क्या किया जाए.

बनने के साथ ही ध्वस्त हो गये स्टेडियम के सपने

14 वर्ष पहले ओबरा में एक प्रयास किया गया था. ओबरा हाइ स्कूल खेल मैदान में स्टेडियम निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ था. कुछ माह तक निर्माण कार्य भी चला. एक ड्रेसिंग रूम का निर्माण कराया गया. इसी बीच ओबरा के ही एक परिवार द्वारा उक्त खेल मैदान की जमीन को निजी बताकर हाइकोर्ट में मामला दायर कर दिया गया. अंतत: निर्माण कार्य रुक गया. जानकारी मिली कि खेल एवं युवा मंत्रालय द्वारा स्टेडियम निर्माण की स्वीकृति वर्ष 2010 में दी गयी थी. निर्माण कार्य के लिए 28 लाख रुपये आवंटित किये गये थे. चेंजिंग व ड्रेसिंग रूम, वासरूम, चहारदीवारी के साथ दर्शकों को बैठने के लिए गैलरी का निर्माण किया जाना था. अचानक योजना अधर में लटक गया. जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ अधिकारियों द्वारा भी इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी. कहा जाता है कि ओबरा के पूर्व व्यापार मंडल अध्यक्ष तथा कांग्रेस नेता स्व जय मंगल सिंह के अथक प्रयास से कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा स्टेडियम निर्माण की राशि उपलब्ध करायी गयी थी. विवाद होने के कारण खर्च की गयी कुछ राशि के बाद शेष राशि संबंधित विभाग को वापस कर दी गयी. जानकारों की माने तो वर्ष 2012 में हाईकोर्ट ने उक्त मामले से स्टे हटा दिया था. वर्तमान में यह मुकदमा औरंगाबाद सिविल कोर्ट में लंबित है. स्टेडियम निर्माण से संबंधित उम्मीदे भी अब न के बराबर है.

क्या कहते हैं जिम्मेदार व युवा खिलाड़ी

स्टेडियम निर्माण के लिए राशि तो उपलब्ध करायी गयी थी, लेकिन विवाद के कारण निर्माण अधर में लटक गया. इसमें सांसद, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों को की पहल करने की जरूरत है. कृष्णकांत शर्मा, संवेदक

प्रतिभावान खिलाड़ियों को अभ्यास करने के लिए बेहतर स्टेडियम नहीं है. शहर के युवा तो किसी तरह प्रैक्टिस कर लेते है, लेकिन संसाधन उपलब्ध नहीं होने से वे अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते है.

सतीश दुबे, युवा खिलाड़ी

ओबरा में एकमात्र खेल मैदान है जो विवादों से घिरा है. सुविधा नहीं होने से युवाओं की प्रतिभा समय से पहले दम तोड़ रही है. खेल विभाग द्वारा भी कोई पहल नहीं की जा रही है. आखिर खिलाड़ी क्या करें.

अभिषेक कुमार

ओबरा में कई खिलाड़ी हैं, जिनमें प्रतिभा भरी है. क्रिकेट, फुटबॉल, वालीबॉल, हॉकी के खिलाड़ी शहर से नहीं बल्कि गांवों से निकलते है. दुर्भाग्य है कि प्रतिभा होने के बाद भी हम कोने में सिमटे हुए है.

माखन, युवा क्रिकेटर

ओबरा के जनप्रतिनिधियों ने कभी भी खेलों को मूर्त रूप दिलाने के लिए प्रयास नहीं किया. चुनाव में स्टेडियम निर्माण की घोषणा करते है, लेकिन बाद में भूल जाते है. बहुत खिलाड़ी दूसरे जिले में प्रैक्टिस करते है.

सौरभ कुमार, खेल प्रेमी

ओबरा में प्रतिभावान खिलाड़ियों को खेलने के लिए एकमात्र खेल मैदान है जो अधर में लटका है. जिस वक्त निर्माण कार्य शुरू हुआ था उस वक्त खिलाड़ियों में खुशी थी. कई सपने थे, लेकिन साकार नहीं हो पाये.

अंकित भंडारी

सरकारी उदासीनता से खिलाड़ियों को परेशानी हो रही है. यही कारण है कि हम बड़े आयोजनों में अपना दम नहीं दिखा पाते. खेल पर सबसे अधिक राशि खर्च होने के बाद भी हमारी पहचान नहीं हो पाती है.

गौतम कुमार

खिलाड़ियों को हर हाल में सुविधा उपलब्ध कराया जाना चाहिए. यहां के खिलाड़ी दूसरे राज्यों में प्रतिभा दिखाते है, लेकिन यहां संसाधन नहीं होने की वजह से शांत पड़ जाते है. छोटे आयोजन से फायदा नहीं है.

रौशन कुमार

समुचित व्यवस्था नहीं मिलने के कारण खिलाड़ियों की प्रतिभाएं दिन प्रतिदिन दबती जा रही है. खासकर इस मामले में सांसद व डीएम को पहल करने की जरूरत है. स्टेडियम नहीं होने से परेशानी हो रही है. किशु दुबे

देश को अच्छे खिलाड़ियों को जरूरत है, ताकि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बने. हर जिले में बेहतर स्टेडियम होना चाहिए. जिला मुख्यालय में ही स्टेडियम नहीं है, तो प्रखंडों में क्या होगा.

रोहित कुमार, खेल प्रेमी

क्या कहते हैं अधिकारी

स्टेडियम निर्माण से संबंधित कोई फाइल उनके पास नहीं पहुंची है. क्यों निर्माण नहीं हुआ और कारण क्या रही इसकी पड़ताल की जायेगी. स्टेडियम निर्माण की दिशा में सकारात्मक पहल किया जायेगा.

मो यूनिस सलीम, बीडीओ

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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