परंपरागत विधियों से तालाबों से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष मत्स्य उत्पादन ही हो पाता है
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वैज्ञानिक ढंग से मत्स्य पालन कर किसान आमदनी में करें इजाफा
परंपरागत विधियों से तालाबों से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष मत्स्य उत्पादन ही हो पाता है मत्स्य पालन के लिए तालाब की मिट्टी की जांच कराना आवश्यक होता है तालाब के लिए चिकनी मिट्टी वाली भूमि मानी जाती है उपयुक्त मदनपुर : मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं. मछली की मांग […]
मत्स्य पालन के लिए तालाब की मिट्टी की जांच कराना आवश्यक होता है
तालाब के लिए चिकनी मिट्टी वाली भूमि मानी जाती है उपयुक्त
मदनपुर : मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं. मछली की मांग भी लगातार बढ़ रही है. मांग के अनुरूप प्रखंड से लेकर जिले में मछली का उत्पादन नहीं हो पाता है. इस कमी को वैज्ञानिक ढंग से मत्स्य पालन कर पूरा किया जा सकता है. वैज्ञानिक ढंग से पालन करने से पारंपरिक मत्स्य पालन की अपेक्षा चार से पांच गुना ज्यादा मछली का उत्पादन होता है. इससे समान समय में ही वैज्ञानिक ढंग से खेती कर किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं. परंपरागत विधियों से तालाबों से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष मत्स्य उत्पादन ही हो पाता है. लेकिन वैज्ञानिक विधि से मत्स्य पालन करने पर तीन हजार किलोग्राम तक उपज प्राप्त की जा सकती है.
वैज्ञानिक मत्स्य पालन का उद्देश्य विभिन्न आधार वाली मछलियों को उचित मात्रा व अनुपात से संचित करके व तालाबों में कार्बनिक खाद व पूरक आहार का प्रयोग करके सीमित समय में अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन सुनिश्चित करना है. मत्स्य पालन के लिए वैसे मिट्टी का चयन किया जाना चाहिए ,जिनमें कम से कम एक दो मीटर पानी वर्ष भर भरा रहे . तालाब की मिट्टी का पीएच 6.5 से 7.8 रहें. तालाब के लिए मिट्टी की उर्वरता व जल धारण क्षमता को आधार माना जाता है. चिकनी मिट्टी वाली भूमि लसलसी, नर्म व चिकनी होती है. इसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है अतः यह तालाब के लिए उपयुक्त होती है.
अधिक लाभ के लिए मछलियों के बच्चे का करें संचय : अधिक मछली उत्पादन करने के लिए भारतीय कार्प में रोहू , मृगाल, कतला,सिल्वर कार्प ग्रास कार्प व कॉमन कार्प को एक साथ पाला जा सकता है. एक हेक्टेयर जल क्षेत्र के लगभग 75 मिली मीटर लंबाई की 5000 से 6,000 स्वस्थ बच्चों को संचित की जा सकती है .बच्चों का संचय जुलाई अगस्त माह में करना चाहिए. उसमें प्राकृतिक भोजन सीमित मात्रा में ही उत्पन्न होता है. इसलिए कृत्रिम भोजन दिया जाता है. जनवरी के मध्य से मार्च व जुलाई से अगस्त तक कॉमन कार्प का प्रजनन काल होता है.
अधिक उत्पादन के लिए पूरक आहार है आवश्यक : अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मछलियों को पूरक आहार देना होता है. मछली उत्पादन के लिए खुराक बनाने के लिए मूंगफली,सरसों तिल अथवा नारियल की खली व गेहूं के चोकर या चावल की रुनी बराबर-बराबर मात्रा में प्रयोग करना चाहिए. इस मिश्रण का मछली को आवश्यकतानुसार तालाब में डाल दें. इससे समय पर मछलियों में आवश्यक वजन प्राप्त हो जाता है एक साथ कई किस्म की मछलियां पालने पर 12 से 18 माह के बीच के समय में खाने योग्य हो जाती है. जब मछलियां खाने योग्य हो जाएं तो तालाब से निकाल लेना चाहिए. तीन से पांच हजार किलोग्राम मत्स्य उत्पादन होता है. इस तरह प्रतिवर्ष कम से कम पांच से सात लाख की आमदनी हो जाती है.
बेहतर उत्पादन के लिए इसका रखें ख्याल : मत्स्य पालन के लिए तालाब की मिट्टी की जांच कराना आवश्यक होता है ,जिससे सही मात्रा में पोषक तत्व व पीएच मछलियों को उपलब्ध कराया जा सके. मत्स्य पालन के लिए तालाब का जल हल्का क्षारीय होना चाहिए, इसके लिए चुना का उपयोग किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त चुना मछलियों को विभिन्न परजीवियों से बचाए रखता है. यदि तालाब सूखा हुआ हो तो थोड़ा सा पानी भरकर गोबर की खाद बिखेरनी चाहिए.
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