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उपेक्षा का दंश ङोल रहा पंचतीर्थ धाम, कच्ची सड़क है सहारा
कुर्था (अरवल) : कहा जाता है कि विरासत अतीत का आईना होता है. विरासतों का अतिक्रमण उसका अपमान है. विरासत का संरक्षण अपने अस्तित्व की रक्षा करने के बराबर है. लेकिन, पंचतीर्थ धाम अबतक उपेक्षा का दंश ङोल रहा है. अबतक कोई भी सरकार या स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नजर इस प्राचीन धरोहर की तरफ नहीं […]
कुर्था (अरवल) : कहा जाता है कि विरासत अतीत का आईना होता है. विरासतों का अतिक्रमण उसका अपमान है. विरासत का संरक्षण अपने अस्तित्व की रक्षा करने के बराबर है. लेकिन, पंचतीर्थ धाम अबतक उपेक्षा का दंश ङोल रहा है.
अबतक कोई भी सरकार या स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नजर इस प्राचीन धरोहर की तरफ नहीं पहुंची है. वर्षो से उक्त पंचतीर्थ धाम के निकट अवस्थित पुनपुन नदी तट की सीढ़ी वर्षो से जजर्र अवस्था में थी, जिसे हाल ही में कुर्था विधायक सत्यदेव कुशवाहा द्वारा विधायक मद से मरम्मत करायी गयी. मगध के अति प्राचीन व पावन तीर्थस्थल जो पंचतीर्थ के नाम से जाना जाता है.
जनश्रुतियों के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी सीता एवं अन्य अनुजों के साथ पितृश्रद्ध के लिए गया धाम जाने के दौरान रात्रि विश्रम इसी स्थान पर किया था. तब से यह तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है.
वहीं द्वापर युग में महाभारत युद्ध में मारे गये अपने पितरों के निमित श्रद्ध संपन्न कराने के लिए युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रोपदी के साथ उक्त स्थल पर पहुंच कर प्रथम पिंडदान किया था. उक्त स्थल पर पांच पांडवों द्वारा स्थापित विष्णु चरण आज भी वहां के पाषाण पत्थर पर मौजूद है. चरण के चारों तरफ शंख, चक्र, गदा और पद्म विराजमान हैं. आज भी गया जाकर पिंडदान करने वाले पिंडदानी प्रथम पिंडदान इसी स्थल पर करते हैं. बाद में इस पंचतीर्थ धाम का नाम प्रसिद्ध हो गया. मगध क्षेत्र के सभी धर्मस्थलों से उक्त स्थल को काफी श्रेष्ठ माना जाता है.
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