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..एक बार फिर जीवंत हो उठी परती परिकथा की मलारी

इस शादी में कोई बराती नहीं बुलाये गये. रेणु के सभी स्नेही व उनके परिजन इस पुनीत यज्ञ के साक्षी बने. शादी में पूरी तरह सादगी बरती गयी. न कोई आडंबर न ही कोई दिखावा. बस पूरा करना पड़ा बीस मिनट का पैदल सफर.. औराही-हिंगना (अररिया) से जितेंद्र यह एक सुखद संयोग है. एक ओर […]

इस शादी में कोई बराती नहीं बुलाये गये. रेणु के सभी स्नेही व उनके परिजन इस पुनीत यज्ञ के साक्षी बने. शादी में पूरी तरह सादगी बरती गयी. न कोई आडंबर न ही कोई दिखावा. बस पूरा करना पड़ा बीस मिनट का पैदल सफर..
औराही-हिंगना (अररिया) से जितेंद्र
यह एक सुखद संयोग है. एक ओर आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के पौत्र व दूसरी ओर उनकी रचना परती परिकथा की पात्र मलारी की पोती. दोनों का आज मिलन हुआ है. आज जब लोग शादी के लिए अपने जात-जमात को ही खोजते हैं, उस कठिन दौर में अंतरजातीय विवाह वह भी एक चर्चित घर में होना नया संदेश देता है. यह शादी एक सच्ची कहानी से जुड़ी है. यह कहानी आज फिर से जीवंत हो उठी.

जो तिलकेश्वर राम कभी रसनचौकी (शहनाई का मूल रूप) बजाते थे, आज वे भले जिंदा न हों, पर उनके आंगन की लक्ष्मी खोंइछा में दूब-धान लेकर रेणु के घर आयीं. फणीश्वर नाथ रेणु के पौत्र व विधायक पद्म पराग राय वेणु के पुत्र अनंत राय की शादी गुरुवार को सामाजिक रीति-रिवाज के साथ औराही गांव के सुभाष चंद्र दास की पुत्री अमृता के साथ हुई. इस शादी में खास बात यह रही कि रेणु परिवार की दुल्हन बनने वाली अमृता उस मलारी की पौत्री हैं, जिसे फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी रचना परती परिकथा का पात्र बनाया था. लोगों का मानना है कि रेणु ने कभी भी अपनी रचनाओं में किसी काल्पनिक पात्र का सृजन नहीं किया. उनके गाड़ीवान हीरामन हो या लाल पान की बेगम वे सभी समाज के हिस्सा रहे. इस शादी में कोई बराती नहीं बुलाये गये. रेणु के सभी स्नेही व उनके परिजन इस पुनीत यज्ञ के साक्षी बने. शादी में पूरी तरह सादगी बरती गयी. न कोई आडंबर हुआ और न ही कोई दिखावा. बस बीस मिनट का पैदल सफर पूरा करना पड़ा.

यह शादी एक नजीर
रेणु जी के पौत्र अनंत राय एक व्यवसायी हैं, तो दुल्हन बनने वाली अमृता नियोजित शिक्षिका, लेकिन वह महादलित परिवार से आती है. इसलिए इस शादी को एक मिसाल माना गया. कथा शिल्पी रेणु व उनके पिता शीलानाथ मंडल समता मूलक समाज के पक्षधर थे. उनके समक्ष छुआछूत व जातीय भेदभाव का कोई बंधन नहीं था. सबके साथ रहना और सबके साथ खाना पीना उनकी खास आदतों में शुमार था. विधायक पद्म पराग राय वेणु ने बताया कि यह उनके परिवार की पहली अंतरजातीय शादी नहीं है. इसके पहले भी उनके परिवार में कई अंतरजातीय शादियां हो चुकी हैं. विधायक कहते हैं कि उनके पिता की तरह वे भी केवल दो जाति मानते हैं- एक औरत और दूसरा मर्द. इसके अलावा कोई जाति नहीं है. उन्होंने कहा कि वे धानुक जाति के जरूर हैं, पर उनकी बेटी की शादी खंगार जाति में हुई है. उन्होंने अपने साला की बेटी की शादी हलवाई जाति में करायी. महादलित परिवार में बेटे की शादी ने न केवल रेणु की मलारी को जीवंत किया, बल्कि वेणु के कद को भी ऊंचा कर दिया. विधायक श्री वेणु ने कहा कि आज की राजनीति में महादलितों के प्रति प्रेम लोगों के लिए भले ही दिखावा हो पर उन्होंने और उनके परिवार ने इसे जीवन भर के संबंधों में बदल दिया.
शादी के पीछे की सच्ची कहानी
भले ही रेणु जी के पौत्र की शादी महादलित परिवार में किये जाने की बात चर्चा में हो, पर इसने तिलकेश्वर राम की शहनाई व ढोल को भी एक बार जीवंत कर दिया. हालांकि अब वे इस दुनिया में नहीं हैं. विधायक ने उस पंचायती के वाकये को फिर से दोहराया और उस इतिहास के पóो को फिर से पलट डाला. उन्होंने कहा कि तिलकेश्वर राम के परिवार की बेटी से उनके पुत्र का विवाह हुआ है. उन्होंने बताया कि एक बार महादलित समुदाय के लोगों के साथ तिलकेश्वर राम किसी की शादी में ढोल व शहनाई बजाने जा रहे थे. एक कुआं से खुद उन्होंने पानी भर कर पी लिया. इसके बाद बवाल हो गया. पंचायती बुलायी गयी. इस मामले में उनके दादा शीला नाथ मंडल ने पंचायती की थी और महादलितों का साथ दिया था. इसके लिए उनको समाज में दूसरे नजर से देखा जाने लगा था, पर समय के साथ सब कुछ बदला और आज इतिहास फिर से दोहराया गया. बरात भी उसी शहनाई बजाने वाले के घर गयी. वेणु के घर में फिर से उसी तिलकेश्वर राम की शहनाई अमृता के रूप में आयी.

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