पटना: पहले अधिकारी केंद्र से पैसा नहीं मिलने के चलते खर्च नहीं होने की बात कहते थे, अब जब पैसा मिलने लगा है, तो उनको सरेंडर किया जा रहा है. हद तो यह है कि विधायकों की अनुशंसा पर संचालित होनेवाली मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना की राशि भी सरेंडर कर दी गयी है. अब जो राशि बची है, उसे खर्च करना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है. विभागों को रोज पौने तीन हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे, तब जाकर योजना मद की पूरी राशि खर्च हो पायेगी. हालांकि, इस साल पूर्व के वर्षो की तुलना में खर्च की स्थिति में सुधार है. 31 जनवरी तक योजना मद के 34 हजार करोड़ में से 23,684 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जो 69.55 प्रतिशत है.
खर्च में उद्योग विभाग टॉप
उद्योग विभाग ने सबसे ज्यादा 84 प्रतिशत से अधिक राशि खर्च की है. हालांकि, इस विभाग ने 50 करोड़ रुपये सरेंडर भी किये हैं. इसके बाद पिछड़ा व अतिपिछड़ा कल्याण विभाग ने 48 प्रतिशत ज्यादा राशि खर्च की है. बेहतर स्थिति में पर्यावरण एवं वन, शिक्षा, सहकारिता, निबंधन एवं उत्पाद, भवन निर्माण, पंचायती राज, पथ निर्माण व समाज कल्याण विभाग भी हैं. वहीं, फिसड्डी विभागों में वाणिज्यकर, परिवहन, मंत्रिमंडल सचिवालय, खान एवं भूतत्व, सूचना एवं जन संपर्क, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी, पशु एवं मत्स्य संसाधन आदि शामिल हैं. इनमें परिवहन, खान, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, मंत्रिमंडल सचिवालय व वाणिज्यकर विभागों ने तो खर्च का खाता भी नहीं खोला है.
राशि सरेंडर करनेवाले विभाग
पशु एवं मत्स्य संसाधन, मंत्रिमंडल सचिवालय, स्वास्थ्य, उद्योग, लघु जल संसाधन, पंचायती राज, योजना एवं विकास, राजस्व एवं भूमि सुधार, एससी/एसटी कल्याण, गन्ना उद्योग व पर्यटन विभाग.
लापरवाह अधिकारी पर होगी कार्रवाईमुख्य सचिव एके सिन्हा का स्पष्ट निर्देश है कि जो विभाग राशि खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं, वे उस राशि को सरेंडर करें, ताकि दूसरे जरूरतमंद विभागों को राशि आवंटित की जा सके. सरकार यह भी चिह्न्ति कर रही है कि राशि खर्च नहीं होने के पीछे वास्तविक कारण क्या है? जो अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं, उन्हें चिह्न्ति कर उनके खिलाफ कार्रवाई यानी उसके सेवा रिकॉर्ड में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की जायेगी. उधर, वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि केंद्र में कम राजस्व संग्रहण के चलते योजना राशि में कटौती की जा रही है. टैक्स की हिस्सेदारी में भी कटौती की जा रही है. अनुमान है कि वित्तीय वर्ष के अंत तक लगभग पांच हजार करोड़ रुपये तक की कटौती हो सकती है.
मुख्य सचिव ने कहा, केंद्र की कमजोर वित्तीय स्थिति का असर राज्य में संचालित केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर दिख रहा है. केंद्र की तुलना में बिहार में राजस्व संग्रह की स्थिति बेहतर है. मार्च के अंत तक लक्ष्य के अनुरूप राजस्व का संग्रह हो जायेगा. सर्व शिक्षा अभियान में अब तक केंद्र से 750 करोड़ रुपये नहीं मिले हैं. इंदिरा आवास योजना में भी 750 करोड़, बीआरजीएफ में 300 करोड़ की जगह 236 करोड़ व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 536 करोड़ के विरुद्ध 429 करोड़ रुपये नहीं मिले हैं.
आइटी विभाग में परिवर्तन होना है. टाटा कंसल्टेंसी कंपनी का कार्य संतोषप्रद नहीं रहने के कारण खर्च में प्रगति नहीं हुई है. मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत स्थानीय अभियंत्रण संगठन में एजी द्वारा एकाउंटेंट प्रतिनियुक्त नहीं किये जाने के कारण खर्च की प्रगति असंतोषप्रद रही है.
एके सिन्हा, मुख्य सचिव