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मैं तेरे इश्क में दुनिया छोड़ जाऊंगा..

हाजीपुर. इरशाद-इरशाद और वाह-वाह के बाद तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट. सोनपुर मेले के सांस्कृतिक ग्राम मंच पर अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन के दौरान कवियों एवं शायरों ने कुछ ऐसी फिजा तैयार की कि श्रोता शायरों के शेर एवं कवियों की कविता में डूब से गये. मुशायरे एवं कवि सम्मेलन की सदारत गोरखपुर से […]

हाजीपुर. इरशाद-इरशाद और वाह-वाह के बाद तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट. सोनपुर मेले के सांस्कृतिक ग्राम मंच पर अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन के दौरान कवियों एवं शायरों ने कुछ ऐसी फिजा तैयार की कि श्रोता शायरों के शेर एवं कवियों की कविता में डूब से गये. मुशायरे एवं कवि सम्मेलन की सदारत गोरखपुर से आये प्रसिद्ध शायर डॉ कलीम कैसर कर रहे थे. मुशायरे का आगाज तारिक सीवानी के शेर से हुआ ‘फूल से खुशबू निकलती है बिखर जाती है, धूप आंगन में निकलती हुए शरमाती है’. सीवान के परवेज अशरफ ने हास्य का तड़का लगाया ‘कभी गांधी के पीछे, कभी गोपाल के पीछे, कभी सब हो गये पंडित जवाहर लाल के पीछे, हम तो शुरू से चलते आये हैं नटवर लाल के पीछे’. परवेज अशरफ ने इश्क पर व्यंग्य वाण भी छोड़े. किशनगंज के शायर तबरेज हाशमी ने अपनी गजलों से तबस्सुम बरसाया. उन्होंने फरमाया ‘मैं तेरे इश्क में एक दिन दुनिया छोड़ जाऊंगा, मुङो दिल में जगह दो तुम मैं तुम पर जान लुटाऊंगा’. अगली बारी पूर्णिया से आये हारूण राशिद की थी. उन्होंने राजनीतिज्ञों की लंघी मारी. उन्होंने कहा ‘जिसने गुजारी उम्र किनारों के आसपास वह घिर गया है आज हजारों के आसपास’. उनकी अगली पेशकश ‘हम्मर बेटा भी बीए पास’ को जबरदस्त तालियां मिलीं. उन्होंने बाढ़ पर राजनीति करने वाले नेताओं को भी अपनी कविता से लताड़ा. मुशायरे को जवानी की दहलीज पर पहुंचाया यूपी के आजमगढ़ से आयी नंदनी आजमी ने. इस शायरा ने युवा श्रोताओं को मुहब्बत में खूब भिंगोया. नंदनी आजमी ने जब अपने कलाम को तरन्नुम में गाया तो पंडाल से वंस मोर की आवाज आयी. उनके कलाम थे ‘अपने दिल में तेरा एहसास लिए बैठी हूं,तू मेरे इश्क से इनकार जरा कर के देख, अपनी मुट्ठी में सल्फास लिये बैठी हूं. शायर सुहैल उस्मानी ने अपने कलाम से भाजपा- जदयू के रिश्ते से परदा उठाया ‘मुहब्बत तुम भी करते थे, मुहब्बत मैं भी करता था, मगर अब दूरियां बढ़ने लगीं तो यू लगा मुझकों, सियासत तुम भी करते थे, सियासत मैं भी करता था. हास्य कवि पी के धुत ने श्रोताओं को इश्क और मुहब्बत की दुनिया से बाहर निकाला और हंसी के फ व्वारे छोडे. अंतरराष्ट्रीय शायर मंजर भोपाली से अपनी रूहानी आवाज से श्रोताओं को हिंदू-मुसिलम एकता का पैगाम दिया. पूरी तरह अपनी रंगत में आ चुके मुशायरे को कानपुर से आयी रूही नाज ने और रंगीनियत बख्शी. उनकी गजल ‘मेरे बहते हुए अश्कों ने पुकारा तुमको, दिल की हसरत है, देखूं मैं दुबारा तुमको’. लखनऊ से आये फारूख आदिल के नफासत से पढ़े गये कलाम ने खूब तालियां बटोरी. ‘चढ़े परवान चाहे इश्क या नाकाम हो जाये तुम्हारे चाहनेवालों में अपना नाम हो जाये’. श्रोताओं के मिजाज को शंकर कैमूरी ने बरकरार रखा. धीरे-धीरे मुशायरा सह कवि सम्मेलन अपने अंजाम की ओर बढ रहा था. इससे पहले कि यह कार्यक्रम समाप्त होता अज्म शाखरी के दिलकश शेर ‘जिंदगी यू ही गुजारी जा रही है, जैसे कोई जंग हारी जा रही है’ को खूब वाहवाही मिली. मुशायरे का समापन जिंदगी में रिश्तों की अहमियत से हुआ. अंत में सदारत कर रहे डॉ कलीम कैसर ने इसे समझाया ‘जरूरी है सफर, लेकिन सफर अच्छा नहीं लगता, बहुत दिन घर रह जाओ, तो घर अच्छा नहीं लगता’. रात के दो बज चुके थे और महफिल जस की तस. शायरों और कवियों से फरमाईश-दर फरमाईश होती रही. इस भरोसे के साथ मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का समापन किया गया कि अगले वर्ष फिर मिलेंगे. कार्यक्रम का समापन विधान परिषद के सभापति सलीम परवेज ने कि या.

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