पटना : बिहार में नाबालिगों के गायब होने की वारदात तेज होती जा रही है. पुलिस के ही रिकॉर्ड को खंगालें, तो पूरे प्रदेश में प्रतिमाह गुमशुदा बच्चों का आंकड़ा 40 की संख्या को पार कर गया है.
बच्चे कहां जा रहे हैं, पुलिस को कोई खबर नहीं है. हाइ प्रोफाइल मामलों में खुद की गरदन बचाने के लिए केस भी दर्ज हो रहे हैं और बच्चों की तलाश भी की जा रही है, लेकिन आम परिवारों के बच्चों की गुमशुदगी का रहस्य बेपरदा नहीं हो पा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद गुमशुदगी के मामले अपहरण में तब्दील नहीं हो पा रहे हैं. यह हाल तब है जब आतंकवादी संगठन बम ब्लास्ट जैसी हरकत के लिए लगातार नाबालिगों को मोहरा बना रहे हैं.
इसकी बानगी पटना व गया ब्लास्ट से मिलती है. दावे के मुताबिक कोर्ट ने सबूत के आधार पर असलम परवेज को नाबालिग मान लिया है. कानूनी नजरिये से आरोपित के लिए यह राहत है, जबकि आतंकवादी संगठन इसे हथियार बना रहे हैं. गौरतलब है कि मुंबई ताज होटल अटैक मामले में भी पकड़ा गया आतंकवादी अजमल कसाब ने भी कोर्ट में नाबालिग होने का दावा किया था. इससे यह साफ है कि आतंकवादी संगठन नाबालिग बच्चों को आतंकी घटनाओं में अपना हथियार बना रहे हैं.
दूसरी तरफ पुलिस गुमशुदगी के मामलों में सनहा दर्ज कर खामोश हो जा रही है, वहीं थानों व अधिकारियों के दफ्तरों का चक्कर लगाने के बावजूद बच्चों को खो चुके परिजनों को निराशा हाथ लग रही है.
गायब होनेवालों में गरीब परिवारों के बच्चों की संख्या ज्यादा है. उन्हें बाल श्रम के लिए ले जाया जा रहा है या फिर आतंकवादी संगठनों के हाथ लग रहे हैं, इसके बारे में न तो गुप्तचर एजेंसियों को कोई खबर है और न ही पुलिस को.