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बिहार:लोग रोज खा रहे तीन करोड़ की नकली दवाएं

* पटना व गया बने नकली दवा के मुख्य ठिकाने राज्य में दवाओं का कारोबार एक अनुमान के मुताबिक सालाना 3917 करोड़ का है. इस तरह एक दिन में करीब 10 करोड़ 73 लाख रुपये की दवाएं खप जाती है. अनुमानत: नकली दवाओं का कारोबार एक हजार करोड़ तक पहुंच गया है. यानी एक दिन […]

* पटना व गया बने नकली दवा के मुख्य ठिकाने

राज्य में दवाओं का कारोबार एक अनुमान के मुताबिक सालाना 3917 करोड़ का है. इस तरह एक दिन में करीब 10 करोड़ 73 लाख रुपये की दवाएं खप जाती है. अनुमानत: नकली दवाओं का कारोबार एक हजार करोड़ तक पहुंच गया है. यानी एक दिन में करीब दो करोड़ 74 लाख का कारोबार होता है. असली दवाओं के कारोबार के समानांतर नकली दवाओं का कारोबार दायरा बढ़ता जा रहा है.

जानकारों का कहना है कि दिल्ली और कानपुर नकली दवाओं के मुख्य अड्डे हैं. वहां से दवाएं आती हैं बिहार के दो बाजारों में. पटना कागोविंद मित्रा रोड असली व नकली दवाओं की बड़ी मंडी है. हाल में एक दवा दुकानदार की हत्या व उसके पहले बरामद नकली दवाओं की खेप से जिंदगी बचानेवाले इस कारोबार का स्याह पक्ष भी उजागर हुआ है. जिस तरह से नकली दवाओं का धंधा फैल रहा है, उसमंे आनेवाले दिनों में खून-खच्चर की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

* साल में 17 करोड़ से ज्यादा की अवैध वसूली

बिहार में 42186 दवा की खुदरा और थोक दुकान हैं. इनमें खुदरा दुकानों की संख्या 28600 है. सूत्र बताते हैं कि एक खुदरा दुकान से साल में दो बार तीन से छह हजार रुपये की वसूली होती है. मान लें कि एक दुकान से तीन हजार रुपये की वसूली होती, तो साल में यह राशि छह हजार रुपये होती है. यानी सिर्फ खुदरा दुकानों से 17 करोड़ 16 लाख की अवैध वसूली होती है. दो साल पहले तक साल में एक बार ही सौगात ली जाती थी. अब दो बार ली जाने लगी है.बिहार केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन का कहना है कि गलत धंधा करनेवाले अफसरों को मुंहमांगी कीमत चुकाते हैं. वहीं, राज्य के ड्रग कंट्रोलर ने ड्रग इंस्पेक्टरों के जरिये वसूली की बात से इनकार किया.

* छापेमारी के बाद भी जारी है गंदा धंधा

राज्य में पिछले साल जनवरी से दिसंबर तक दवा दुकानों पर 635 छापे मारे गये. 43 मामलों में प्राथमिकी दर्ज हुई या अभियोजन चला. 21 दुकानों के लाइसेंस रद्द व 266 के लाइसेंस सस्पेंड हुए. 40 गिरफ्तारी भी हुई थी. पटना में गोविंद मित्रा रोड में नकली दवाओं के कारोबारियों के यहां छापेमारी होती है. दवाएं जब्त होती हैं, पर धंधे पर कोई असर नहीं पड़ता. सच तो यह है कि नकली दवाओं का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है. 2010 तक इसका कारोबार 700 करोड़ का था जो अब बढ़ कर एक हजार करोड़ का हो गया है. नकली दवाओं के धंधे को रोकनेवाली एजेंसियों को मुंह पर ताला लगाये रखने के एवज में पैसे दिये जाते हैं.

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