विजय सिंह
पटना : हैवसपुर के नरसंहार से अपराध जगत में सुर्खियां बटोरनेवाले सरदार लक्ष्मण सिंह ने पहले विधायक बनने का ख्वाब देखा था. उसने 1995 के विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद के ओबरा विधानसभा क्षेत्र से नामांकन भी किया था, लेकिन उसे मात मिली.
इसके लिए उसने जातीय राजनीति को दोषी माना और राजनीतिक लड़ाई को आगे बढ़ाने के बजाय खूनी संघर्ष का रास्ता अख्तियार कर लिया. रणवीर सेना के संरक्षक ब्रह्मेश्वर मुखिया से उसकी नजदीकियां बढ़ीं और उसने हैवसपुर नरसंहार को अंजाम दे डाला. एक बार उसने अपराध जगत की तरफ कदम बढ़ाया, तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
सरदार को विचलित नहीं करता है नरसंहार : बिहार में 90 के दशक में पूरे शबाब पर चल रहे जातीय संघर्ष को करीब से देखने, महसूस करने तथा 1997 से खुद उसका हिस्सा बने लक्ष्मण सिंह ने जब स्याह किस्सा सुनाया, तो पुलिस महकमे के आला अधिकारी भी भौंचक रह गये.
उसने जिन घटनाओं को अंजाम दिया, उनमें अपनी संलिप्तता स्वीकार की. पुलिस के एक बड़े अधिकारी की मानें, तो हैवसपुर नरसंहार लक्ष्मण सिंह को विचलित नहीं करता. अन्य संगठनों के बढ़ते प्रभाव और तत्कालीन माहौल ने उसे कब इस दलदल में धकेल दिया, इसकी भनक तक नहीं लगी. दो अन्य नरसंहारों में भी हाथ होने की बात उसने स्वीकार की है.
पुलिस ले सकती है रिमांड पर: पुलिस के सवालों का जिस तरह जवाब दिया, उससे यह साफ झलक रहा था कि लक्ष्मण वृद्ध जरूर हो चला है, लेकिन उसकी दबंगता अभी कायम है. दुबली-पतली काया, सामान्य पहनावा, लेकिन आवाज में वही तेवर उसके ठेठ अपराधी होने का एहसास करा रहा था.
पुलिस रणवीर सेना की सक्रियता व हैवसपुर नरसंहार मामले के अन्य आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए उसे रिमांड पर लेकर फिर से पूछताछ कर सकती है. गौरतलब है कि विक्रम के रानी तालाब थाने के हैवसपुर गांव में 24 मार्च, 1997 को हुए नरसंहार का मुख्य आरोपित व कई कांडों का वांछित सरदार लक्ष्मण सिंह को उसके पैतृक गांव काब से शुक्रवार को गिरफ्तार कर जेल भेजा चुका है. वह 17 वर्षो से बिहार, बंगाल के अलावा यूपी के जिलों में अपना सिर छुपाये हुए था.
यहां बता दें कि रणवीर सेना का गठन 1994 में हुआ था. गठन के तीन साल बाद ही 1997 में रणवीर सेना ने रानी तालाब थाने के हैवसपुर गांव में अनुसूचित जाति के 10 लोगों की हत्या कर दी थी.