Saraswati Puja Aarti And Vandana 2021: आज बसंत पंचमी का पर्व है. इस दिन ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. पूजा के दौरान उनकी वंदना और आरती न हो तो पूजा भी अधूरी मानी जाती है. मां सरस्वती की वंदना का महत्व प्राचीन काल से रहा है. मा सरस्वती वंदना के ज्यादातर स्लोक संस्कृत में हैं. हिन्दीं के मूर्धन्य कवि सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" ने जब से 'वीणावादिनि वर दे' की रचना की शायद तब से ही लोग हिन्दी में उनकी वंदना करने लगे हैं. इस बार बसंत पंचमी का पर्व 16 फरवरी 2021 दिन मंगलवार यानि आज मनाया जा रहा है. इस मौके पर देशभर के सरस्वती मंदिरों पूजा स्थलों में मां सरस्वती की पूजा की जाएगी. आज विधिवत पूजा के दौरान मां सरस्वती आरती, वंदना और श्लोक भी गाए. जिन लोगों को मां सरस्वती की कोई भी वंदना या गाना नहीं याद है उनके लिए यहां सबसे ज्यादा लोकप्रिय सरस्वती वंदना गीत और वंदना श्लोक और आरती हैं...
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता।
या वीणा-वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत पद्मासना।।
या ब्राह्माच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
स मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहाः।।
आज के दिन अमृत सिद्धि योग बना रहा है. अमृत सिद्धि योग पूजा के लिए अतिदुर्लभ संयोग है. ऐसे लोग जिनके काम में बाधा आ रही है, छात्र जिन्हे पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है. वो आज मां शारदा को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना कर सकते हैं.
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवलाया शुभ्र-वस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकराया श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवतीनिःशेषजाड्यापहा ॥१॥
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिःस्फटिकमणिनिभैरक्षमालान् दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण॥
भासा कुन्देन्दु-शङ्खस्फटिकमणिनिभाभासमानाऽसमाना।
सा मे वाग्देवतेयं निवसतुवदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥२॥
सुरासुरसेवितपादपङ्कजा
करे विराजत्कमनीयपुस्तका।
विरिञ्चिपत्नी कमलासनस्थिता
सरस्वती नृत्यतु वाचि मे सदा ॥३॥
सरस्वती सरसिजकेसरप्रभा
तपस्विनी सितकमलासनप्रिया।
घनस्तनी कमलविलोललोचना
मनस्विनी भवतु वरप्रसादिनी ॥४॥
सरस्वति नमस्तुभ्यंवरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामिसिद्धिर्भवतु मे सदा ॥५॥
सरस्वति नमस्तुभ्यंसर्वदेवि नमो नमः।
शान्तरूपे शशिधरेसर्वयोगे नमो नमः ॥६॥
नित्यानन्दे निराधारेनिष्कलायै नमो नमः।
विद्याधरे विशालाक्षिशूद्धज्ञाने नमो नमः ॥७॥
शुद्धस्फटिकरूपायैसूक्ष्मरूपे नमो नमः।
शब्दब्रह्मि चतुर्हस्तेसर्वसिद्ध्यै नमो नमः ॥८॥
मुक्तालङ्कृतसर्वाङ्ग्यैमूलाधारे नमो नमः।
मूलमन्त्रस्वरूपायैमूलशक्त्यै नमो नमः ॥९॥
मनो मणिमहायोगेवागीश्वरि नमो नमः।
वाग्भ्यै वरदहस्तायैवरदायै नमो नमः ॥१०॥
वेदायै वेदरूपायैवेदान्तायै नमो नमः ।
गुणदोषविवर्जिन्यैगुणदीप्त्यै नमो नमः ॥११॥
सर्वज्ञाने सदानन्देसर्वरूपे नमो नमः।
सम्पन्नायै कुमार्यै चसर्वज्ञे नमो नमः ॥१२॥
योगानार्य उमादेव्यैयोगानन्दे नमो नमः।
दिव्यज्ञान त्रिनेत्रायैदिव्यमूर्त्यै नमो नमः ॥१३॥
अर्धचन्द्रजटाधारिचन्द्रबिम्बे नमो नमः।
चन्द्रादित्यजटाधारिचन्द्रबिम्बे नमो नमः ॥१४॥
अणुरूपे महारूपेविश्वरूपे नमो नमः।
अणिमाद्यष्टसिद्ध्यायैआनन्दायै नमो नमः ॥१५॥
ज्ञानविज्ञानरूपायैज्ञानमूर्ते नमो नमः।
नानाशास्त्रस्वरूपायैनानारूपे नमो नमः ॥१६॥
पद्मदा पद्मवंशा चपद्मरूपे नमो नमः।
परमेष्ठ्यै परामूर्त्यैनमस्ते पापनाशिनि ॥१७॥
महादेव्यै महाकाल्यैमहालक्ष्म्यै नमो नमः।
ब्रह्मविष्णुशिवायै चब्रह्मनार्यै नमो नमः ॥१८॥
कमलाकरपुष्पा चकामरूपे रूप नमो नमः।
कपालि कर्मदीप्तायैकर्मदायै नमो नमः ॥१९॥
सायं प्रातः पठेन्नित्यंषण्मासात् सिद्धिरुच्यते।
चोरव्याघ्रभयं नास्तिपठतां शृण्वतामपि ॥२०॥
इत्थं सरस्वतीस्तोत्रम्अगस्त्यमुनिवाचकम्।
सर्वसिद्धिकरं नॄणांसर्वपापप्रणाशणम् ॥२१॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा।पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी।तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई।आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहूता।तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी।विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला।बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी।सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै।कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा॥
करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।मो कहं दास सदा निज जानी॥
जनक जननि पद कमल रज,निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती,बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव,महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को,मातु तुही अब हन्तु॥
माता सूरज कान्ति तव,अंधकार मम रूप।
डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु।
अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु॥
जय सरस्वती माता,मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी,त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि,द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी॥
जय सरस्वती माता॥
बाएं कर में वीणा,दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे,गल मोतियन माला॥
जय सरस्वती माता॥
देवी शरण जो आए,उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी,रावण संहार किया॥
जय सरस्वती माता॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनि,ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का,जग से नाश करो॥
जय सरस्वती माता॥
धूप दीप फल मेवा,माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता,जग निस्तार करो॥
जय सरस्वती माता॥
माँ सरस्वती की आरती,जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारीज्ञान भक्ति पावे॥
जय सरस्वती माता॥
जय सरस्वती माता,जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी,त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
वद वद वाग्वादिनी स्वाहा॥
ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः॥
ॐ अर्हं मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयम्कारी
वद वद वाग्वादिनी सरस्वती ऐं ह्रीं नमः स्वाहा॥
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ॐ ऐं वाग्देव्यै विद्महे कामराजाय धीमहि।
तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ ॐ जय..
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ ॐ जय..
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ ॐ जय..
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ ॐ जय..
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ ॐ जय..
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ ॐ जय..
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ ॐ जय..
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"