पं श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिष व धर्म विशेषज्ञ
Chaitra Navratri 2023: शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (22 मार्च) से प्रारंभ होने जा रहा है. सनातनधर्मी शारदीय नवरात्र की तरह ही चैत्र नवरात्र को पूरी श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. नवरात्र में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना का विधान है. साथ ही इस दिन से नव संवत्सर 2080 (विक्रम संवत) की शुरुआत होगी. ये नौ दिन व्रत, संयम, नियम के पालन के साथ भक्ति-पूजन का विशेष अवसर है, जो हमारी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचयन में लाभकारी है.
गवान आदिशंकराचार्य विरचित सौंदर्य लहरी में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र का परिचय देते हुए बताते हैं-
नवशक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते।
एकैवदेव देवेशि नवधा परितिष्ठिता।।
अर्थात् नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है. नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है. इन नौ रातों में तीन देवियों- महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के नौ स्वरूपों की पूजा होती है. दोनों ही नवरात्र में मां दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री रूपों का पूजन और अर्चन का विधान है.
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यता
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया. इसीलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू वर्ष का शुभारंभ होता है. मान्यतानुसार, भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था, इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का महत्व बढ़ जाता है.
नवरात्र में रात्रि पूजा का महत्व
'नवरात्र' शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है. इस समय शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है. 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है. दरअसल, भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है. यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को 'रात्रि' न कहकर 'दिवा' ही कहा जाता, लेकिन नवरात्र के दिन 'नवदिन' नहीं कहे जाते.
इन नवरात्रियों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं. कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार, दस सिर वाले शिव भक्त रावण की अपारशक्ति के बारे में सभी देवी-देवताओं को पता था, इसलिए सीता को लंका से वापस लाने के लिए जब श्रीराम रावण से युद्ध करने जा रहे थे, तो उन्हें देवताओं ने मां शक्ति की आराधना करने और उनसे विजय का आशीर्वाद लेने को कहा. भगवान राम ने ने मां की पूजा के लिए 108 नीलकमल की व्यवस्था की और पूजा आरंभ कर दी. जब रावण को पता चला कि श्रीराम मां चंडी की पूजा कर रहे हैं, तो उसने भी मां की पूजा शुरू कर दी. रावण किसी भी हाल में अपनी हार नहीं चाहता था, इसलिए उसने राम के 108 फूलों में से एक फूल चुरा लिया और अपने राज्य में चंडी पाठ करने लगा. राम को इस बात का पता चला और उन्होंने कम पड़ रहे एक नीलकमल की जगह अपनी एक आंख मां को समर्पित करने की सोच ली, तभी मां प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान राम को जीत का आशीर्वाद दिया.
शुभ है मां का आगमन और गमन
इस वर्ष मां का आगमन और गमन दोनों ही शुभ संकेत दे रहे हैं. देवी का आगमन बुधवार, 22 मार्च को हो रहा है. देवी पुराण के अनुसार, मां का आगमन बुधवार को हो, तो वह नाव पर सवार होकर आती हैं. देवी भागवत में कहा गया है-
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।
नौका पर सवारी का तात्पर्य है- ‘सर्व कार्य सिद्धि।’ अर्थात् माता की आराधना करने वाले के सभी कार्य सिद्ध होंगे. वहीं इस वर्ष देवी का गमन गुरुवार, 30 मार्च को हो रहा है. गुरुवार को मां भगवती की विदाई मनुष्य की सवारी से होती है, तो सुख और शांति की प्राप्ति होती है. देवी भागवत में उल्लेख है-
सुरराजगुरौ यदि सा विजया।
नरवाहनगा शुभ सौख्य करा॥
यह संकेत है कि राष्ट्र में सुख-समृद्धि और मान-प्रतिष्ठा की वृद्धि होगी.
22 मार्च से नवरात्र का शुभारंभ
प्राचीन भारतीय चिंतन परंपरा में मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में मानते हुए इनके विभिन्न स्वरूपों के पूजन, अर्चन और स्तवन का विधान बताया गया है. चांद्र संवत्सर का प्रथम दिवस एवं सृष्ट रचना की जयंती चैत्र शुक्ल प्रतिपदा इस वर्ष बुधवार, 22 मार्च को पड़ रही है. बुधवार का दिन होने से नव संवत्सर 2080 (विक्रम संवत) के राजा बुध हुए. इसी के साथ वासंतिक नवरात्र शुरू हो जायेगा.
कलश स्थापना कब है?
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हुए मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा का विधान है. कलश स्थापना दिन भर किसी भी समय किया जा सकता है. सनातनधर्मियों का घर तोरण आदि से सुसज्जित किये जाने का शास्त्र-सम्मत विधान है. चैती छठ सोमवार, 27 मार्च को. बुधवार, 29 मार्च को महाष्टमी व्रत का मान होगा. घर-घर की जाने वाली नवमी की पूजा बुधवार, 29 मार्च को होगी. इसे भवानी उत्पत्ति के साथ बसियउरा के रूप में भी जाना जाता है. महानवमी का व्रत गुरुवार, 30 मार्च को होगा. नवरात्र की समाप्ति से संबंधित हवन-पूजा नवमी तिथि पर्यंत 30 मार्च को रात में 11:53 बजे तक. रामावतार का महान पर्व श्री रामनवमी का मान गुरुवार, 30 मार्च को. सर्वत्र धूमधाम से मनाया जायेगा. गोस्वामी तुलसीदास ने आज के दिन से ही रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की थी. मानस प्रेमियों द्वारा मानस जयंती मनायी जायेगी. पूर्ण नवरात्र व्रत की पारणा शुक्रवार, 31 मार्च को दशमी तिथि में प्रातः काल होगी.
विशेष पूजन-उपाय
नवरात्र पूजन के धार्मिक अनुष्ठान में कुछ विशेष बातों के पालन से कष्ट-क्लेश दूर होंगे और भक्त को सुख-शांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी.
शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा को रोज लाल पताका व लाल फूल अर्पित करें.
शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करें उन्हें खीर पूड़ी खिलाएं तथा लाल कपड़ा भेंट कर उन्हें ससम्मान विदा करें.
यदि आप अपने शत्रुओं से परेशान हैं, तो मां दुर्गा के मंदिर में जाकर उन्हें पीले फल और मिठाई का भोग लगाएं और पूजा स्थल पर पांच लौंग अर्पित करें.
नवरात्र के दौरान शुद्ध-सात्विक आचरण का पूर्णत: पालन करें.
नवरात्र पूजन में अक्षत के प्रयोग में ध्यान रखें कि चावल के दाने टूटे न हों. पूजा के लिए जटा वाले नारियल ही इस्तेमाल करें.