निर्भीक होना महान होने के बराबर है. निर्भीकता से शेरों को भी वश में किया जा सकता है. निर्भीकता की एक झड़प से विजय प्राप्त की जा सकती है.
मैंने हिमालय की सघन घाटियों में विचरण किया है. मुझे शेर, चीते, भालू और अनेक विषैले जीव-जंतुओं का सामना करना पड़ा, परंतु मुझे कभी किसी ने हानि नहीं पहुंचायी. जंगली पशुओं पर सीधे उनकी आंखों पर भ्रू-निक्षेप किया गया, दृष्टियां मिलीं, हिंसक पशुओं ने अपनी आंखें नीची कर ली और जिन्हें हम अत्यंत भयानक वन्य पशु समझते हैं, वे चुपचाप खिसक गये. यही तथ्य है. निर्भीक बनो और तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सकता. कबूतर कैसे बिल्ली के सामने अपनी आंखें बंद कर लेता है और शायद अपने मन में सोचता हो कि जैसे मैं बिल्ली को नहीं देखता हूं, और कबूतर बिल्ली के पेट में जा पड़ता है. निर्भीकता से चीता भी वश में किया जा सकता है और भयातुरता के सामने बिल्ली भी शेर बन जाती है.
एक बार एक सिपाही किसी जहाज पर एक भयानक रोग से आक्रांत हो गया और डॉक्टर ने उसे जहाज से नीचे फेंक देने का अंतिम दंड सुना दिया. सिपाही को इस बात का पता लग गया. वह साधारण शक्ति से उठा और एकदम निर्भय हो गया. तुरंत सीधा डॉक्टर के पास पहुंचा और पिस्तौल तान कर बोला, मैं बीमार हूं? क्या मैं बीमार हूं? सच-सच बोलो, नहीं तो अभी मैं तुम्हें दूसरी दुनिया में पहुंचा देता हूं.’ डॉक्टर ने उसे तुरंत ही स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र दे दिया. निराशा कमजोरी है. निर्भीकता ही शक्तिपुंज है.
स्वामी रामतीर्थ