भारत की वो जगह जहां जाने के बाद जिंदा वापस आना है नामुमकिन, सरकार ने जाने पर लगा रखी है रोक
Sentinelese Tribe : विज्ञान के अनुसार मानव का जन्म 2 से 3 लाख साल पहले अफ्रीका में हुआ था. वहीं से इंसान माइग्रेट होकर पृथ्वी के अन्य हिस्सों में पहुंचा. अफ्रीका से इंसान लगभग 60-70 हजार साल पहले भारत आया और यहां के अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक द्वीप नॉर्थ सेंटिनल पर बस गया. उन लोगों को आज के समय में सेंटिनली ट्राइब कहा जाता है, जिनके बारे में एक समय में यह कहा जाता था कि वे इंसानों को खाते हैं. यह मिथक बाद में टूट गया, लेकिन यह एक सच्चाई है कि नॉर्थ सेंटिनल द्वीप में बसे ये सेंटिनली जनजाति के लोग आज भी पाषाण युग में जीते हैं और उन्हें आम लोगों से संपर्क में कोई रुचि नहीं है. इनके द्वीप पर जो जाता है वे उसकी हत्या कर देते हैं. सरकार ने भी उनकी पसंद को समझते हुए इस द्वीप पर बाहरी लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगा रखा है. आइए आज इसी सेंटिनली जनजाति के बारे में थोड़ा जानते हैं.
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Sentinelese Tribe : अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में कुल 572 द्वीप माने जाते हैं जिनमें से मात्र 38 पर ही आबादी है, बाकी 534 द्वीप पर इंसान नहीं रहते हैं. यहां के अधिकांश द्वीप पर घने जंगल हैं. यहां 6 जनजाति के लोग ग्रेट अंडमानी, ओंगे, जारवा, सेंटिनली, निकोबारी और शोम्पेन निवास करते हैं. इन सभी जनजातियों में सेंटिनली एक ऐसी जनजाति है, जो पूरी तरह से अलग-थलग है और उसके बाहरी दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है. अंडमान निकोबार के बाकी आदिवासियों ने आधुनिक जगत से संबंध बना लिया, लेकिन सेंटिनली आदिवासियों से जब भी संपर्क की कोशिश की गई, तो उन्होंने इसका जवाब हमले के रूप में दिया.
कौन हैं सेंटिनली आदिवासी
सेंटिनली आदिवासियों की पहचान रहस्यों के पर्दे में छिपी है. ये लोग अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के बीच बसे नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहते हैं. आज भी यह जनजाति पूरे विश्व के लिए रहस्य है. आमतौर पर इंसान दूसरे इंसान को देखकर उसके संपर्क में आना चाहता है, लेकिन सेंटिनल ट्राइब ऐसा नहीं चाहते हैं, इस वजह से इनके बारे में जो भी जानकारी मानव समाज के पास है, वो उनसे किए गए सीमित संपर्कों के आधार पर है. सेंटिनल जनजाति के लोग आज भी कपड़े नहीं पहनते हैं और पाषाण युग (Stone Age) की जीवनशैली में जीते हैं. कहने का अर्थ यह है कि ये अपने भोजन के लिए खेती नहीं करते बल्कि जानवरों के शिकार और पेड़ों पर फलने वाले फलों के सहारे ही जीवन जीते हैं. सेंटिनल जनजाति पर सबसे अधिक शोध मानव वैज्ञानिक टीएन पंडित ने किया और वे यह मानते हैं कि सेंटिनल जनजाति अपनी जीवनशैली में खुश है और जब कभी भी उन्हें डिस्टर्ब करने की कोशिश होती है, वे इसका पुरजोर विरोध करते हैं. किसी भी बाहरी व्यक्ति को देखकर ये लोग अपने तीर-धनुष के साथ तैयार होकर आ जाते हैं और उनपर हमला कर देते हैं. यहां तक कि वे अंडमान निकोबार की दूसरी जनजाति से भी संपर्क नहीं करना चाहते हैं. सेंटिनली जनजाति के लोगों की भाषा भी समझ से परे है. विश्व में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो इन लोगों की भाषा को समझ सके, सेंटिनली लोगों के अलावा. भारत सरकार के आंकड़े यह बताते हैं कि सेंटिनली आदिवासियों की संख्या सेंटिनल द्वीप पर 50-500 के बीच हो सकती है. अबतक किसी ने भी यहां जाकर उनकी गिनती नहीं की है, इसलिए यह बता पाना मुश्किल है कि इनकी सही आबादी कितनी है.
अफ्रीका से आए हैं सेंटिनली
आउट ऑफ अफ्रीका सिद्धांत (Out of Africa Theory) की मानें तो लगभग 60-70 हजार साल पहले इंसानों का एक ग्रुप अफ्रीका से निकल कर एशिया, यूरोप,ऑस्ट्रेलिया तथा बाद में अमेरिका तक फैल गया. यह सिद्धांत यह मानता है कि अफ्रीका में आज से 2-3 लाख साल पहले मानव का जन्म हुआ और वह यहीं से निकलकर अन्य महाद्वीपों की ओर गया. इस थ्योरी के हिसाब से सेंटिनली जनजाति के लोगों का इतिहास 60-70 हजार साल पुराना हो सकता है. आउट ऑफ अफ्रीका सिद्धांत यह मानता है कि आधुनिक युग में जहां कहीं भी मानव हैं, उनके पूर्वज एक ही थे और अफ्रीका से थे. आनुवंशिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि सेंटिनली जनजाति अफ्रीका से भारत आए पहले प्रवासियों में से एक हो सकते हैं .
सेंटिनली जनजाति से कब हुआ पहली बार संपर्क
| वर्ष / काल | घटना / संपर्क | विवरण |
|---|---|---|
| 1867 | Nineveh जहाज दुर्घटना | भारत का जहाज नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ. यात्रियों पर सेंटिनली ने तीर-कमान से हमला किया. ब्रिटिश नौसेना ने बाद में उन्हें बचाया. |
| 1880 | मॉरिस पोर्टमैन का अभियान | ब्रिटिश अधिकारी Maurice Vidal Portman ने कुछ सेंटिनली (2 बुज़ुर्ग, 4 बच्चे) को पकड़कर पोर्ट ब्लेयर लाया, जहां बुज़ुर्ग बीमार होकर मर गए, बच्चे बाद में छोड़ दिए गए. |
| 1967 | भारत सरकार का पहला सर्वेक्षण | Anthropological Survey of India के टीएन पंडित और उनकी टीम ने द्वीप पर जाने की कोशिश की, पर सेंटिनली ने शत्रुता दिखाई. |
| 1970–80 का दशक | कई बार संपर्क का प्रयास | तट पर नारियल, धातु के बर्तन आदि रखकर उपहार देने की कोशिशें. प्रतिक्रिया आक्रामक रही. |
| 1991 | पहली सफल मुलाकात | टीएन पंडित और टीम को कुछ समय के लिए शांतिपूर्ण संपर्क मिला. सेंटिनली लोग नाव के पास आए और नारियल लिए. |
| 1996 के बाद | भारत सरकार ने नीति बदली | तय हुआ कि जनजाति से जबरदस्ती संपर्क नहीं किया जाएगा. उन्हें अपनी जीवनशैली में जीने दिया जाएगा. |
| 2004 | सुनामी के बाद | बड़े भूकंप और सुनामी के बाद हेलीकॉप्टर से देखा गया कि सेंटिनली लोग जीवित हैं और तीर-कमान से हेलीकॉप्टर पर निशाना साध रहे थे. |
| 2006 | दो मछुआरों की हत्या | अवैध रूप से मछली पकड़ने वाले दो भारतीय मछुआरे तट पर फंस गए. जनजाति ने उन्हें मार डाला. |
| 2018 | अमेरिकी मिशनरी जॉन चाउ की हत्या | अमेरिकी नागरिक जॉन एलेन चाउ ने धर्म प्रचार के लिए अवैध रूप से द्वीप में प्रवेश किया. सेंटिनली लोगों ने तीर से मार डाला. |
सेंटिनली जनजाति के लोग अंडमान निकोबार के नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहते हैं. अंडमान निकोबार के अधिकांश द्वीपों को पहले निर्जन ही माना जाता था, लेकिन 1771 में ईस्ट इंडिया कंपनी का एक जहाज यहां से एक सर्वे के लिए गुजर रहा था, तो उसने यहां रौशनी देखी थी, उस वक्त से ही यह पता चला था कि इस द्वीप पर इंसान रहते हैं. लेकिन उन वक्त यहां के लोगों से संपर्क का कोई प्रयास नहीं किया गया था. सेंटिनल जनजाति से आधुनिक मानवों का संपर्क पहली बार तब हुआ, जब 1867 में एक भारतीय व्यापारी जहाज ‘निनेवेह’ यहां दुर्घटनाग्रस्त हो गया. दुर्घटना के बाद इस जहाज के 100 यात्री जान बचाने के लिए नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर पहुंचे थे. उनके पहुंचने पर सेंटिनली जनजाति के लोगों ने उनपर अपने तीर-धनुष से हमला कर दिया था. उसी वक्त यह पता चला था कि इस द्वीप पर सेंटिनली जनजाति के लोग रहते हैं. वे लोग दूसरे जहाज के जरिए किसी तरह यहां से अपनी जान बचाकर भागे थे. उसके बाद 1880 में एक ब्रिटिश अधिकारी मॉरिस पोर्टमैन (Maurice Vidal Portman) अपनी टीम के साथ नॉर्थ सेंटिनल पहुंचे थे. उन्होंने सेंटिनली आदिवासियों से संपर्क की कोशिशों में ऐसी गलती कर दी, जिसके बाद सेंटिनली जनजाति कभी भी बाहरी लोगों के संपर्क में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकी. पोर्टमैन और उनकी टीम ने द्वीप से एक वृद्ध दंपती और चार बच्चों को पकड़ लिया और अपने साथ पोर्ट ब्लेयर ले आए थे, लेकिन ये लोग बाहरी दुनिया से संपर्क में आने के बाद ही बीमार हो गए और उनकी मौत हो गई. वृ्द्ध दंपती की मौत के बाद चारों बच्चों को उपहार के साथ वापस छोड़ दिया गया, लेकिन इस घटना के बाद संभवत: सेंटिनली बाहरी लोगों से नाराज हो गए, क्योंकि इस घटना के बाद जब भी उनके पास जाने की कोशिश हुई, उन्होंने हमला बोल दिया.
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स्वतंत्रता के बाद सेंटिनली से संपर्क के प्रयास
आजादी के बाद भारतीय मानव विज्ञानी टीएन पंडित और भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ( Anthropological Survey of India) की टीम ने कई बार सेंटिनली से संपर्क की कोशिशें कीं. वे तट पर जाकर दूर से ही उन्हें नारियल, कपड़े और बर्तन उपहार स्वरूप देते थे. लेकिन या तो सेंटिनली इन्हें देखकर अपनी बस्ती छोड़कर भाग जाते थे, या फिर वे हमला शुरू कर देते थे. 1991 के दौर में एक महिला मानव विज्ञानी मधुमाला चट्टोपाध्याय, मानव विज्ञानी टीएन पंडित की टीम में शामिल हुई और सेंटिनली जनजाति से संपर्क की कोशिश हुई, आश्चर्यजनक रूप से उस वक्त सेंटिनली जनजाति ने सहयोग किया और नारियल और अन्य उपहार उनसे लिए. मधुमाला चट्टोपाध्याय के पास सेंटिनली आए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. लेकिन बाद में सेंटिनली जनजाति ने बाहरी लोगों से संपर्क करना बंद कर दिया और जिन्होंने संपर्क की कोशिश की, उनपर हमला किया. इन घटनाओं के बाद मानव विज्ञानी टीएन पंडित ने कहा कि इन्हें सुरक्षित रहने दिया जाए,जब वे हमसे संपर्क नहीं चाहते, तो बेकार में उन्हें परेशान करने का कोई फायदा नहीं है.
सरकार ने किए सुरक्षा के प्रबंध
भारत सरकार ने सेंटिनली के लिए Andaman and Nicobar Islands (Protection of Aboriginal Tribes) Regulation (ANPATR) लागू किया. इसके तहत नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड में प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित है. द्वीप के चारों ओर 5 किलोमीटर का प्रतिबंध क्षेत्र तय है, जहां तक किसी पर्यटक, मछुआरे या शोधकर्ता को जाने की अनुमति नहीं. 2006 में दो मछुआरे इस इलाके में चले गए थे, तो उन्हें सेंटिनली जनजाति के लोगों ने मार डाला. हालांकि सरकार ने इस घटना के खिलाफ आदिवासियों पर कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि सरकार उन्हें बचाकर रखना चाहती है. सरकार यह चाहती है कि उन लोगों का जीवन खतरे में ना पड़े और ना ही बाहरी लोगों के संपर्क से उनका जीवन बर्बाद हो.
2018 में एक अमेरिकी जॉन एलेन चाउ यहां अवैध तरीके से घुसा और जान गंवाई
अमेरिकी जॉन एलेन चाउ इस द्वीप पर ईसाई धर्म का प्रचार करने की नीयत से अवैध तरीके से घुसा था. उसने दूसरे द्वीप के एक व्यक्ति को पैसे देकर उसे यहां आने के लिए राजी किया था. उसने इस द्वीप पर जाकर सेंटिनली जनजाति से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन दो बार उसे जान बचाकर भागना पड़ा था. बावजूद इसके वह तीसरी बार भी द्वीप पर गया और सेंटिनली आदिवासियों ने उसकी जान ले ली. जब उसकी डायरी सार्वजनिक हुई, तो वाशिंगटन पोस्ट ने उसकी जानकारी दी. चाउ ने अपनी डायरी में सेंटिनली जनजाति के बारे में कुछ खास जानकारी लिख रखी थी, जिसके अनुसार सेंटिनली लोग छोटे कद के, काले रंग की त्वचा वाले हैं. वे लगभग नग्न अवस्था में रहते हैं, शरीर पर सजावट के लिए कुछ वस्तुएं लटकाते हैं. सभी तीर-कमान रखते हैं और समूह में रहते हैं. वे छोटे झोपड़ियों में रहते हैं.
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