Ramdas Soren : जेएमएम के समर्पित साइलेंट वर्कर थे रामदास सोरेन, शिबू सोरेन काफी करीबी रहे

Ramdas Soren : झारखंड में गुरुजी शिबू सोरेन के निधन का मातम अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि जेएमएम के जीवट नेता और पार्टी के सबसे विश्वसनीय कार्यकर्ता रामदास सोरेन इस दुनिया को अलविदा कह गए. शिबू सोरेन के सबसे करीबी, लेकिन पर्दे के पीछे रहने वाले पार्टी के समर्पित नेता थे रामदास सोरेन.

By Rajneesh Anand | August 16, 2025 3:37 PM

Ramdas Soren : झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का निधन शुक्रवार रात को दिल्ली में हो गया. उनके जाने से उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक बड़ा झटका लगा है. जेएमएम अभी दिशोम गुरु के जाने के सदमे से उबरने की कोशिश कर ही रहा था कि तबतक उनका एक साइलेंट वर्कर, जिसने आजीवन संगठन को मजबूत करने के लिए काम किया, उनका निधन हो गया. रामदास सोरेन गुरुजी शिबू सोरेन के सबसे करीबी लोगों में से एक माने जाते थे. उनके निधन की सूचना पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने, जो फिलहाल अपने पैतृक गांव नेमरा में हैं और पिता का श्राद्धकर्म कर रहे हैं, उन्होंने दुख जताया है.

रामदास सोरेन के जाने से जेएमएम को लगा बड़ा झटका

रामदास सोरेन जेएमएम के ऐसे कद्दावर नेता थे, जिन्होंने हमेशा पर्दे के पीछे से काम किया. उन्होंने कभी भी नाम के लिए राजनीति नहीं की. वे हमेशा संगठन को मजबूत करने में जुटे रहते थे. पूर्वी सिंहभूम जिले के घोड़ाबांधा के रहने वाले रामदास सोरेन बहुत ही सरल और सहज थे.वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा रामदास सोरेन के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि वे झारखंड आंदोलन के दौरान सिंहभूम जिले के सबसे विश्वसनीय नेताओं में से एक थे. इनके लिए काम सर्वोपरि था. 1990-91 के दौरान आर्थिक नाकेबंदी के वक्त पुलिस ने रामदास सोरेन को थाने में बहुत प्रताड़ित भी किया था. लेकिन वे टूटे नहीं और संगठन के लिए काम करते रहे. सिंहभूम जिला जब विभाजित हो गया, तब उन्हें पूर्वी सिंहभूम का जिलाध्यक्ष बनाया गया था. रामदास सोरेन मजदूरों के भी नेता थे और उन्होंने हमेशा उनके हक के लिए आवाज बुलंद की. उनका जाना पार्टी के लिए बड़ा नुकसान है.

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जादूगोड़ा के यूरेनियम माइंस के खिलाफ किया था संघर्ष

रामदास सोरेन गुरुजी शिबू सोरेन के विचारों से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने ना सिर्फ पार्टी के लिए काम किया, बल्कि वे सामाजिक मुद्दों पर के लिए भी बहुत काम करते थे. सोशल एक्टिविस्ट रतन तिर्की ने प्रभात खबर से बात करते हुए बताया कि रामदास सोरेन ने जादूगोड़ा यूरेनियम माइंस के खिलाफ आंदोलन किया था. घटना यह थी कि यूरेनियम माइंस का जो कचरा टेलिंग पौंड में जमा होता था, वह वहां से रिसकर खेतों में जाता था, जिसकी वजह से बच्चों में विकलांगता की समस्या उत्पन्न हो रही थी. इस समस्या के खिलाफ उन्होंने अभियान चलाया था. उन्होंने एक मीटिंग के दौरान यूसीआईएल के पदाधिकारियों को चेताते हुए कहा था कि यूरेनियम का विकिरण आदिवासी समाज के अस्तित्व पर खतरा है, इस समस्या का समाधान तलाशा जाए. रामदास सोरेन के नहीं रहने से झामुमो ने अपना एक और मजबूत स्तंभ खो दिया है. संताल आदिवासियों के बीच उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी.

साधारण परिवार से आते थे रामदास सोरेन

रामदास सोरेन एक बहुत ही साधारण परिवार से आते थे. उनकी शिक्षा जमशेदपुर से हुई थी. वे घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक चुने गए थे. 2009–2014, 2019– 2024 और 2025 के चुनाव में भी वे विजयी हुए थे. संघर्ष और जनसेवा के माध्यम से वे धीरे-धीरे राजनीति के शीर्ष पायदान तक पहुंचे . वे आदिवासी अधिकारों और शिक्षा सुधार के लिए दृढ़ता से काम करते रहे थे.

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