पीएम मोदी ने चीन यात्रा से पहले दिया विशेष संदेश, ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो बौखलाए
PM Modi China Visit : एससीओ समिट में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 को चीन पहुंचेंगे. पीएम मोदी के इस दौरे पर पूरे विश्व की नजर है, क्योंकि यहां वे शी जिनपिंग और व्लादिमिर पुतिन से मिलेंगे. अगर सबकुछ ठीक रहा, तो तीनों नेताओं की यह बैठक विश्व में सत्ता समीकरण को बदल कर रख सकती है.
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PM Modi China Visit : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गलवान घाटी संघर्ष के बाद पहली बार चीन का रुख कर रहे हैं. वे 31 अगस्त को चीन पहुंचेंगे और वहां वे तियानजिन में एससीओ समिट में हिस्सा लेंगे. इस समिट से पहले पीएम मोदी जापान की यात्रा पर हैं. पीएम मोदी की चीन यात्रा काफी अहम इसलिए मानी जा रही है क्योंकि यह दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा रखा है. इस टैरिफ को समाप्त करने की शर्त यह है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं है. भारत ने अमेरिका के सामने समर्पण करने से बेहतर यह सोचा है कि वे चीन के साथ अपने ठंडे हो चुके संबंधों में गरमाहट लाएंगे, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान में एक इंटरव्यू के दौरान यह कहा है कि वे चीन के साथ अपने रिश्तों की नई परिभाषा के लिए तैयार हैं.
विश्व के लिए बड़ा संकेत है भारत-चीन का साथ आना
प्रधानमंत्री मोदी लगभग 7 वर्ष बाद चीन की यात्रा पर हैं. वे यहां चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक करेंगे और तीनों देशों के संबंधों की नए सिरे से शुरुआत होगी. एससीओ समिट में चीन, भारत और रूस का निकट आना, पूरे विश्व का ध्यान खिंचता है, क्योंकि इस समीकरण के बन जाने से पूरे विश्व में सत्ता समीकरण एक तरह से हिल जाएगा और उसकी नई परिभाषा गढ़नी होगी. तीनों देशों के एक साथ आने की घटना तब हो रही है, जब भारत और वाशिंगटन के बीच संबंध खराब हो गए हैं.
भारत सिर्फ ट्रंप के टैरिफ का जवाब देने के लिए चीन के साथ नहीं जा रहा
भारत और चीन ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वे द्विपक्षीय रिश्तों में नए अध्याय की शुरुआत के लिए तैयार हैं, जिसमें विकास, कूटनीतिक संपर्क और विश्वास बहाली शामिल है. भारत और चीन के संबंधों को सिर्फ ट्रंप टैरिफ के जवाब के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. यह संबंध इसलिए भी बनाए जा रहे हैं क्योंकि भारत आत्मनिर्भर होना चाहता है और वह किसी भी महाशक्ति को यह इजाजत नहीं देता है कि वह उसपर हावी हो जाए. यानी यह भारत का व्यापक विकल्प निर्माण और ग्लोबल विकल्पों को संतुलित करने की रणनीति है, न कि केवल ट्रंप टैरिफ का जवाब.
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चीन-रूस के साथ भारत की निकटता से बौखलाया अमेरिका
चीन और रूस के साथ भारत के संबंधों को देखकर अमेरिका बौखला रहा है. ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने तो यहां तक कह दिया है कि भारत तानाशाहों की गोद में जाकर बैठ रहा है, जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए कतई अच्छा नहीं है. गार्डियन डाॅट काॅम ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत का अमेरिका पर से विश्वास टूट चुका है, यही वजह है कि वह चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत कर रहा है, जो अमेरिका के लिए चिंता की बात होनी चाहिए.
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