पिछड़ों में आत्मविश्वास जगाने वाले नेता लालू यादव, गंवई अंदाज में बनाई दिलों में खास जगह

Lalu Yadav : लालू यादव भारतीय राजनीति के ऐसे नेता हैं, जिन्हें पिछड़ा वर्ग अपना हीरो मानता है और उन्हें फाॅलो भी करता है. लालू यादव एक ऐसे नेता, जो गरीबों के बीच पले-बढ़े और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अपना वो अंदाज नहीं छोड़ा, जिनके लिए उन्हें गरीब अपना हीरो मानते थे. सत्तू पीना, होली खेलना, दही-चूड़ा भोज का आयोजन और लौड़ा नाच देखना, यह कुछ चीजें हैं, जो लालू यादव को आम लोगों का नेता बनाती हैं.

By Rajneesh Anand | June 11, 2025 5:17 PM

Lalu Yadav : राजद सुप्रीमो लालू यादव 11 जून को अपना 77वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस मौके पर उन्होंने तलवार से केक काटा है. लालू यादव अपने खास अंदाज के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हमेशा खुद को खास अंदाज में ढाले रखा और अपने वोटर्स से जुड़े रहे. उनके वोटर्स जो ज्यादातर पिछड़े वर्ग से आते हैं, उनको उन्होंने हमेशा यह बताने और जताने की कोशिश की है कि लालू यादव उनके बीच का ही एक व्यक्ति है.

पिछड़ों और गरीबों में भरा आत्मविश्वास का भाव

बिहार की राजनीति में पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा वोटबैंक है. आबादी के लिहाज से बिहार में पिछडे और अति पिछड़ों की आबादी लगभग 63 प्रतिशत है. इस लिहाज से इनके पास वोटबैंक भी सबसे ज्यादा है. लेकिन बिहार में लालू यादव के उदय से पहले यह वर्ग खुद को शोषित और उपेक्षित समझता था. उनके अंदर यह भावना घर कर गई थी कि वे शासन का हिस्सा नहीं हो सकते और शोषित होना उनकी किस्मत में लिखा है. लेकिन लालू यादव ने इन पिछड़ों के मन से यह हीन भावना निकाली और उनमें आत्मविश्वास का भाव जगाया. उन्होंने दलितों और पिछड़ों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रयास किया और उनके हक के लिए आवाज बुलंद की. लालू यादव ने अपनी आत्मकथा Gopalganj to Raisina Road: My Political Journey में भी कई ऐसी बातों का जिक्र किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे आम आदमी के नेता थे.

मंडल विरोधियों का दोगुनी ताकत से किया विरोध : सुरेंद्र किशोर

लालू यादव

देश में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई उस वक्त देश में इसका भरपूर विरोध हो रहा था. उस वक्त लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने मंडल कमीशन का विरोध करने वालों का विरोध उनकी ताकत से दोगुनी शक्ति से किया. उन्होंने यह साबित किया कि वे मंडल कमीशन के पक्के समर्थक हैं. लालू यादव के इस स्टैंड से पिछड़ों को ऐसा प्रतीत हुआ कि वे उनके नेता हैं और उनमें एक स्वाभिमान का भाव भी जागृत हुआ. पिछड़ों की गोलबंदी हो गई और उनके प्रिय और स्वीकार्य नेता के रूप में लालू यादव स्थापित हो गए.

लालू यादव ने चरवाहा विद्यालय की स्थापना करवाई

लालू यादव ने गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए चरवाहा विद्यालय की स्थापना की थी. उनका प्रयास गरीब बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना था. इस विद्यालय में बच्चों की सुविधानुसार समय पर उनके लिए कक्षा आयोजित की जाती थी. इसके साथ ही लालू यादव ने पिछड़ों को उनका हक दिलाने के लिए आरक्षण को कड़ाई से लागू करवाने पर जोर दिया. सरकारी कार्यालयों में इसका खास ध्यान रखा गया.

पिछड़ों से अपनत्व के साथ मिलते थे लालू यादव

लालू यादव के बारे में कई ऐसे किस्से प्रचलित हैं, जो यह बताते हैं कि लालू यादव ने पिछड़ों को अपना समझा और जब भी उनसे मिले अपनेपन के साथ मिले. लालू यादव की एक दलित महिला लक्ष्मणिया के साथ मुलाकात की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. लक्ष्मणिया मूसर जाति की एक महिला थी, जिन्हें संघर्ष के दिनों में लालू यादव जानते थे. जब लालू यादव नेता बन गए, तो उनकी एक सभा में लक्ष्मणिया उनसे मिलने आई, वो उसी हालत में थी गरीब बदहाल. जब लालू यादव ने उन्हें देखा, जो सुरक्षा घेरा तोड़कर उनतक पहुंचने की कोशिश कर रही थी, तो उसे बुलाया और अपनेपन से मिले. उसके पूरे परिवार का हाल पूछा उसे कुछ पैसे भी दिए और कहा कि जब भी मिलना हो आ जाना. लक्ष्मणिया ने उन्हें बताया कि भैया जब मुझे पता चला कि आप यहां आएं हैं, तो मैं मिलने चली आई. इस तरह की घटनाओं ने ना सिर्फ लालू यादव को पिछड़ों से जोड़ा बल्कि उन्हें उनका हीरो बना दिया.

लालू यादव 1977 में पहली बार बने थे सांसद

लालू यादव 1970 में छात्र राजनीति से जुड़ गए थे और जेपी के शिष्य बने. इमरजेंसी के बाद 1977 में उन्होंने पहली बार चुनाव जीता और सांसद बने. उन्होंने छपरा संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था. 1979 में जनता पार्टी की सरकार आपसी लड़ाई के कारण गिर गई. इसके बाद लालू यादव ने जनता पार्टी छोड़ दी और राज नारायण के नेतृत्व वाले अलग हुए समूह जनता पार्टी-एस में शामिल हो गए, लेकिन 1980 में वे फिर चुनाव जीत नहीं पाए, लेकिन 1980 में वे बिहार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे. 1989 में वे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. 1989 में वे फिर जनता दल के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव जीते, उस वक्त वीपी सिंह मुख्यमंत्री बने थे. 1990 तक लालू यादव, यादवों के सर्वस्वीकार्य नेता बन गए. अपने अंदाज की वजह से वे युवाओं में खासा लोकप्रिय थे. 1990 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1997 तक इस पद पर रहे. लेकिन चारा घोटाले की वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़ा और साथ ही जनता दल भी. इसके बाद 1997 में ही लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. वे 2004 से 2009 तक रेल मंत्री भी रहे थे.

लालू यादव का जन्म कब हुआ था?

लालू यादव का जन्म 11 जून 1948 को गोपालगंज में हुआ था.

लालू यादव ने 1977 में किस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था?

लालू यादव ने 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

Also Read : बिहार की वो क्रांति जिसकी वजह से लोगों ने छोड़ दिया था सरनेम लगाना

Bihar Politics : बिहार की महिला सांसद तारकेश्वरी सिन्हा, जिन्हें कहा जाता था ‘ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’

बिहार के योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी, जो इमरजेंसी में थे इंदिरा गांधी के खास सलाहकार

277 लोगों की हत्या का आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया राक्षस था या मसीहा, उसके आतंक की पूरी कहानी

जब बिहार में एक साथ बिछा दी गईं थीं 30–40–50 लाशें,  नरसंहारों की कहानी कंपा देगी रूह

 बेलछी गांव में हुआ था बिहार का पहला नरसंहार, 11 दलित की हत्या कर आग में झोंक दिया गया था

विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें