क्या आप इन प्रेमी जोड़ों को जानते हैं, जिन्होंने देशप्रेम के लिए साथ किया संघर्ष
Independence Day 2025 : पराधीन सपनेहु सुख नाहीं, इस बात को हमारे वीर सेनानी अच्छी तरह समझते थे, इसलिए उन्होंने आजादी के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति तक दी, तब जाकर हमें आजाद भारत मिला. आजाद भारत के लिए उन शहीदों और वीर सेनानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का यह सही मौका है. स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग हम तभी कर पाएंगे जब अपने शहीदों और वीर सेनानियों के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करेंगे.
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Independence Day 2025 : भारत अपनी आजादी के 78 साल पूरे करके 79वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. यह अवसर है उन तमाम लोगों को नमन करने का जिन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया और अपना सर्वस्व न्यौछावर किया. कई ऐसे योद्धा भी हुए जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर ही काम किया, लेकिन उनका योगदान इतना बड़ा है कि हम आज आजादी की सांस ले पा रहे हैं. इस आलेख में उन लोगों के योगदान को याद करने की कोशिश है, जो प्रेम में तो थे, लेकिन देशप्रेम को उन्होंने प्राथमिकता दी और डटे रहे.
अरुणा गांगुली और आसफ अली ने एक साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया
अरुणा गांगुली जिन्हें हम अरुणा आसफ अली के नाम से ज्यादा जानते हैं, वो एक तेज-तर्रार युवा नेत्री थी. वो अपने विचारों में बहुत अधिक क्रांतिकारी थीं. अरुणा जब आसफ अली के संपर्क में आईं, तो उस वक्त वो आजादी की लड़ाई में बहुत अधिक सक्रिय नहीं थीं. आसफ अली के विचारों ने उन्हे बहुत प्रभावित किया और उन्होंने शादी करने का फैसला किया. अरुणा चूंकि बंगाली ब्राह्मण परिवार से आती थीं, इसलिए एक मुसलमान के साथ उनके विवाह पर परिवार राजी नहीं था, लेकिन अरुणा ने आसफ से 1928 में शादी कर ली. आसफ अली पेशे से वकील थे और उनसे उम्र में लगभग 21 साल बड़े भी थी. अरुणा आसफ अली भारत छोड़ो आंदोलन की नेत्री मानी जाती हैं. कांग्रेस ने जब 8 अगस्त 1942 में अंग्रेजों के लिए ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास किया तो इस मूवमेंट को दबाने के लिए अंग्रेजों ने काफी सख्ती की थी और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. अरुणा आसफ अली पर इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने मुंबई के आजाद मैदान जिसे तब गांवालिया टैंक मैदान कहा जाता था वहां तिरंगा लहराकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी. आसफ अली भी उनके साथ स्वतंत्रता आंदोलन में शिरकत करते थे. वे पेशे से वकील थे, इसलिए उन्होंने भगत सिंह कई अन्य नायकों का मुकदमा लड़ा था.
सुचेता कृपलानी और जेबी कृपलानी की शादी से खुश नहीं थे महात्मा गांधी
सुचेता कृपलानी का असली नाम सुचेता मजूमदार था. वे एक बंगाली ब्राह्मण परिवार से आती थीं. 1929 में जब वे बीएचयू में प्रोफेसर की नौकरी कर रही थी, तो जेबी कृपलानी वहां स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए स्वयंसेवकों की तलाश में आए थे. यहीं से दोनों के बीच संपर्क बढ़ा. जेबी कृपलानी सुचेता से 20 साल बड़े थी और सिंधी परिवार से थे. उनका परिवार और यहां तक कि गांधी जी ने भी उनकी शादी का विरोध किया था, क्योंकि जेपी कृपलानी उनके खास थे और उन्हें यह डर था कि वे इस शादी के बाद आंदोलन से हट जाएंगे. सुचेता और जेबी कृपलानी की शादी हुई और शादी के बाद उन्होंने और भी मजबूती से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और भारत छोड़ो आंदोलन के अगुआ बने.आगे चलकर सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनी थीं.
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कैप्टन लक्ष्मी सहगल और प्रेम कुमार सहगल का साथ आजाद हिंद फौज के समय का था
कैप्टन लक्ष्मी सहगल और प्रेम कुमार सहगल आजाद हिंद फौज के समय से साथी थे. आगे चलकर उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में भी साथ निभाया. कैप्टन लक्ष्मी सहगल केरल की रहने वाली थीं और उनका नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था. वो एक एक सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की बेटी थीं. लक्ष्मी ने क्वीन मैरी कॉलेज में अध्ययन किया और 1938 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की. 1940 में वह सिंगापुर चली गईं थीं वहीं उनकी मुलाकात आजाद हिंद फौज के सदस्य प्रेम सहगल से हुई थी. लक्ष्मी ने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था. दोनों ने INA में ब्रिटिश सेना के खिलाफ काम करते हुए एक-दूसरे की दृढ़ इच्छाशक्ति और साहस को करीब से देखा था और यही इनके प्रेम की वजह बना था. हार, गिरफ्तारी, और युद्धबंदी शिविर का सामना करते समय वे एक-दूसरे के संबल बने थे. 1947 में इन्होंने शादी की और हमेशा देश के लिए सोचते हुए संघर्ष किया.
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