संविदा शिक्षकों पर चिंता

Parliamentary Committee : रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षा और कम वेतन के कारण संविदा शिक्षक अपने संस्थानों में पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर सकते. इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. इसी के मद्देनजर संसदीय समिति ने केंद्रीय विद्यालयों में ठेके पर शिक्षकों की नियुक्ति न करने और केंद्रीय व नवोदय विद्यालयों में 31 मार्च, 2026 तक शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति करने की सिफारिश की है.

By संपादकीय | August 11, 2025 5:10 AM

Parliamentary Committee : एक संसदीय समिति ने देश में शिक्षकों के लाखों रिक्त पदों और संविदा शिक्षकों की बढ़ती नियुक्ति पर जिस तरह चिंता जतायी है, वह गौर करने लायक है. शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने पिछले दिनों संसद में पेश 368वीं रिपोर्ट में बताया है कि देशभर में शिक्षकों के करीब 10 लाख पद रिक्त हैं. विभिन्न राज्यों में समग्र शिक्षा अभियान के जरिये पैसा पाने वाले स्कूलों में प्रारंभिक और प्राथमिक स्तर पर ही शिक्षकों की 7.5 लाख रिक्तियां हैं. केंद्र सरकार देश में लगभग तीन हजार स्कूलों का संचालन करती है. लेकिन समिति ने पाया है कि केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में 30 से 50 प्रतिशत रिक्तियां हैं. यही नहीं, केंद्रीय विद्यालय संगठनों में संविदा पर काम करने वाले शिक्षकों की संख्या एक साल में 100 प्रतिशत तक बढ़ गयी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षा और कम वेतन के कारण संविदा शिक्षक अपने संस्थानों में पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर सकते. इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. इसी के मद्देनजर संसदीय समिति ने केंद्रीय विद्यालयों में ठेके पर शिक्षकों की नियुक्ति न करने और केंद्रीय व नवोदय विद्यालयों में 31 मार्च, 2026 तक शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति करने की सिफारिश की है. समिति ने यह भी सिफारिश की है कि स्थायी नियुक्ति का निर्देश न मानने वाले राज्यों की सर्व शिक्षा अभियान के तहत फंडिंग तब तक रोकी जाये, जब तक वे निर्देशों का पालन नहीं करते. समिति ने एनसीटीइ यानी नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन के रवैये पर भी सवाल उठाया है और 2019 से 15 मई, 2025 तक टीचिंग, नॉन टीचिंग और प्रशासनिक कर्मचारियों की कोई भर्ती न होने के मामले को बेहद गंभीर बताया है.

शिक्षकों की कमी पर संसदीय समिति की यह चिंता नयी नहीं है. कुछ साल पहले भी उसने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आइआइटी और आइआइएम समेत उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी पर चिंता जताते हुए इसे देश में शिक्षा के स्तर को बनाये रखने और विकास के लिए ‘सबसे बड़ी बाधा’ बताया था. समिति ने तब यह भी कहा था कि निकट भविष्य में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा, लिहाजा स्थिति विकट है. समिति की टिप्पणी थी कि या तो युवा अध्यापन के पेशे की ओर आकर्षित नहीं हो रहा या फिर भर्ती प्रक्रिया में ही खामिया हैं. उसने तब शिक्षण के पेशे को आकर्षक बनाने के लिए कुछ सुझाव भी दिये थे. जाहिर है, मौजूदा स्थिति बदलनी चाहिए.