मिजोरम में रेल से और समृद्ध होगा पूर्वोत्तर

Railway in Mizoram : देश के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय एकता में रेल और सड़क सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ये जहां अलग-थलग पड़े इलाकों को जोड़ती हैं, बाजारों, शैक्षणिक संस्थाओं, स्वास्थ्य सेवाओं तथा अन्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करती हैं, वहीं उपेक्षित इलाकों को व्यापार और निवेश के लिए खोलती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 16, 2025 10:12 PM

डॉ पुष्पिता दास
 रिसर्च फेलो, एमपी-आइडीएसए

Railway in Mizoram : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बहुप्रतीक्षित बैरबी-सायरंग रेल रूट का उद्घाटन किया, जो पूर्वोत्तर भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर था. इस तरह मिजोरम अब औपचारिक तौर पर देश के रेल नक्शे पर आ गया है. कुल 51.3 किलोमीटर लंबा यह रेल रूट, जिसमें 48 सुरंग और 55 बड़े पुल हैं, न सिर्फ आधुनिक इंजीनियरिंग का शानदार उदाहरण है, बल्कि पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को रेल से जोड़ देने की उपलब्धि भी उतनी ही बड़ी है.

बैरबी-सायरंग रेल रूट के उद्घाटन को मिजोरम के लोगों के लिए बड़ी शुरुआत बताया जा रहा है. दो नयी रेल सेवाएं- सायरंग-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस (साप्ताहिक) और गुवाहाटी-सायरंग एक्सप्रेस मिजोरम वासियों के लिए परिवहन के तेज, सस्ते और ज्यादा भरोसेमंद माध्यम के रूप में सामने आयी हैं. मॉनसून के मौसम में ट्रेन सेवा ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होगी, जब भूस्खलन के कारण सड़क यातायात बाधित होता है.


देश के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय एकता में रेल और सड़क सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ये जहां अलग-थलग पड़े इलाकों को जोड़ती हैं, बाजारों, शैक्षणिक संस्थाओं, स्वास्थ्य सेवाओं तथा अन्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करती हैं, वहीं उपेक्षित इलाकों को व्यापार और निवेश के लिए खोलती हैं. अलग-थलग पड़े इलाकों को देश की मुख्यधारा से जोड़ती हैं, विकास को गति देती हैं और खासकर सीमांत क्षेत्रों में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करती हैं. पूर्वोत्तर की बात करें, तो 1947 के विभाजन ने देश के प्रमुख भू-भागों तक पहुंचने के उसके पारंपरिक रास्तों को बंद कर दिया. इससे पूर्वोत्तर भारत भौगोलिक रूप से अलग-थलग पड़ गया, तो आर्थिक मामले में भी उसे भारी नुकसान हुआ. आजादी के बाद सरकार ने राष्ट्रीय एकीकरण और क्षेत्रीय विकास की दोहरी चुनौतियों का सामना करते हुए पूर्वोत्तर में सड़क निर्माण को प्राथमिकता दी. अगले कुछ दशकों में नये राज्यों के गठन, बढ़ते उग्रवाद और व्यापक अविकास ने क्षेत्रीय स्तर पर सड़क निर्माण को विस्तार देने के महत्व को फिर से रेखांकित किया.


सड़क मार्ग के विपरीत पूर्वोत्तर में रेलमार्गों का विकास बहुत ही सुस्त गति से हुआ. नवंबर, 1947 में केंद्र सरकार ने मुख्यधारा से असम को जोड़ने के लिए असम रेल लिंक परियोजना की शुरुआत की थी. दिसंबर, 1949 में यह परियोजना पूरी होने के बाद असम मुख्यधारा से जुड़ गया, लेकिन बाद के वर्षों में इस दिशा में मामूली प्रगति हुई. आर्थिक संकट से जूझती केंद्र सरकार के लिए पूर्वोत्तर के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में रेल पटरी बिछाने और उनकी देखरेख करने की तुलना में सड़क निर्माण को महत्व देना आर्थिक रूप से ज्यादा सुविधाजनक लगा. इसलिए आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में पूर्वोत्तर में रेलवे के निवेश में कमी आयी. लेकिन 1990 के दशक में बदलाव आया, जब म्यांमार और बांग्लादेश के साथ भारत के सकारात्मक जुड़ाव से क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में कई कदम उठाये गये.

साउथ एशिया डेवलपमेंट ट्रायंगल, बे ऑफ बेंगॉल ट्रायंगल जैसी पहल और ट्रांस एशियन हाइवे और एशियन रेलवे जैसे प्रस्तावों से पूर्वोत्तर का रणनीतिक महत्व उभर कर सामने आया. नीति निर्माताओं ने जल्दी ही पूर्वोत्तर को म्यांमार के फ्रंटियर के साथ दक्षिण पूर्व एशिया में पहुंचने के संपर्क मार्ग के रूप में पहचाना. ऐसे में, आवश्यक यह था कि देश की मुख्यधारा से पूर्वोत्तर की कनेक्टिविटी बेहतर हो, पूर्वोत्तर के अलग-थलग पड़े क्षेत्र आपस में बेहतर ढंग से जुड़ें और सीमापार नेटवर्क का विकास हो.


वर्ष 1997 में आयी शुक्ला कमीशन रिपोर्ट इस जरूरत को रेखांकित करने वाला पहला नीतिगत दस्तावेज थी. इसमें पूर्वोत्तर में कई नयी रेलवे लाइन शुरू करने तथा रेल नेटवर्क को मणिपुर और मिजोरम के सीमांत तक ले जाने की अनुशंसा की गयी थी. रिपोर्ट में मिजोरम को रेल नक्शे पर लाने के लिए बैरबी-सायरंग रेल मार्ग शुरू करने की सिफारिश भी की गयी थी. बाद में नॉर्थ ईस्ट विजन, 2020 में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की राजधानियों को ब्रॉडगेज से जोड़ने की संस्तुति की गयी. इसी के आधार पर एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत अपने पूर्वी पड़ोसियों तक पहुंचने के लिए कनेक्टिविटी को सर्वाधिक महत्व दिया गया.

बैरबी-सायरंग रेल लाइन की ही बात करें, तो 2008-09 में इस परियोजना को मंजूरी मिली तथा 2014 में इस पर काम शुरू हुआ. वर्ष 2014 से 2025 के बीच केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर में रेल कनेक्टिविटी परियोजनाओं में कथित तौर पर करीब 51,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. इस दौरान अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा की राजधानियां रेल लाइन से जुड़ीं. इन निवेशों के बावजूद विविध चुनौतियों के चलते परियोजनाओं में विलंब हुआ. जमीन अधिग्रहण में बाधाएं, अकुशल संसाधन प्रबंधन, अपर्याप्त फंडिंग, दोषपूर्ण डिजाइन व योजना, प्रतिकूल भौगोलिक व जलवायु स्थिति, राजनीतिक हस्तक्षेप और सुरक्षा चिंताओं आदि के कारण परियोजना में विलंब हुआ. इन बाधाओं से उबरने के बाद ही दक्षिण पूर्व एशिया में समावेशी विकास और रणनीतिक गेट-वे का सपना साकार हो सकता है. बैरबी-सायरंग रेल लाइन की उन्नति, समृद्धि और कनेक्टिविटी के इसी वादे के साथ शुरू हुई है. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)