28.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

अभी रहेगी महंगाई

इस वर्ष दिसंबर तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक छह प्रतिशत से अधिक बना रहेगा यानी महंगाई से जल्दी राहत मिलने की आशा नहीं है.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि इस वर्ष दिसंबर तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक छह प्रतिशत से अधिक बना रहेगा. वर्तमान वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2023) में ही मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से नीचे आ सकेगी. इसका अर्थ यह है कि महंगाई से जल्दी राहत मिलने की आशा नहीं है. इससे पारिवारिक खर्च और बचत पर तो असर पड़ेगा ही, खाद्य पदार्थों, निर्मित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में भी वृद्धि संभावित है.

इस स्थिति में उद्योग भी नये निवेश से कतराते हैं. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के एक ठोस उपाय के रूप में कुछ समय पहले रिजर्व बैंक ने दो चरणों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है तथा बैंकों के लिए निर्धारित संचित राशि रखने की सीमा भी बढ़ायी गयी है. इस माह की मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक ने मानसून के सामान्य रहने तथा भारतीय खरीद के लिए कच्चे तेल की कीमत औसतन 105 डॉलर प्रति बैरल होने की उम्मीद पर 2022-23 में मुद्रास्फीति के 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है.

इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 7.5, दूसरी तिमाही में 7.4, तीसरी तिमाही में 6.2 और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रह सकती है. उल्लेखनीय है कि कई महीनों से थोक मूल्य सूचकांक भी दो अंकों में है. उसका प्रभाव खुदरा मूल्यों पर पड़ना स्वाभाविक है. मानसून के सामान्य रहने का अनुमान तो है, पर जलवायु परिवर्तन और धरती के तापमान में वृद्धि जैसे कारकों के असर अनिश्चित हैं.

इस वर्ष के प्रारंभिक महीनों में अधिक तापमान होने से गेहूं की पैदावार प्रभावित हुई है. इस कारण भारत सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी है. कुछ जानकारों का मानना है कि ऐसा निर्णय चावल के बारे में भी करना पड़ सकता है. मुद्रास्फीति से भारत ही नहीं, अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी प्रभावित हैं. अमेरिका और ब्रिटेन में महंगाई दर चार दशकों में सबसे अधिक हो चुकी है. अन्य यूरोपीय देश और चीन भी इसका सामना कर रहे हैं.

वैश्विक अर्थव्यवस्था ने कोरोना महामारी के असर से उबरना शुरू ही किया था कि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने तेल, प्राकृतिक गैस और अनाज का व्यापक संकट पैदा कर दिया. रूस और अमेरिका व यूरोपीय संघ के परस्पर आर्थिक प्रतिबंधों ने भी लेन-देन और आवाजाही को मुश्किल बना दिया है. महामारी के दौरान लगी पाबंदियों में ढील के साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बहुत तेजी आयी थी, जिसका एक नकारात्मक असर आपूर्ति शृंखला में अवरोध के रूप में सामने आया.

चीन द्वारा कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उठाये गये बेहद कठोर उपायों से भी अंतरराष्ट्रीय बाजार को धक्का लगता रहता है. ऐसी स्थिति में भारत के लिए अधिक मुद्रास्फीति से बचे रहना संभव नहीं है. संतोष की बात है कि हमारी आर्थिक वृद्धि दर अभी भी दुनिया में सबसे अधिक है और ऊर्जा स्रोतों को छोड़कर अनाज व अन्य जरूरी वस्तुओं के मामले में हम आत्मनिर्भर हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें