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जरूरी है छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बनाना

सीमांत किसानों को सशक्त बनाने और भारत की अनाज भंडारण योजना में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिक सूक्ष्म तथा विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

केसी त्यागी / बिशन नेहवाल

जीवंत कृषि परंपराओं वाला देश भारत एक विरोधाभास से जूझ रहा है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, 2023 में देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 311 मिलियन टन तक पहुंच गया था, लेकिन इसकी वर्तमान भंडारण क्षमता 145 मिलियन टन ही है. एक अनुमान के अनुसार, वार्षिक फसल कटाई के बाद देश के खाद्यान्न का 10 से 15 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है, जो ज्यादातर अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और अकुशल वितरण नेटवर्क के कारण होता है. यह स्थिति तत्काल और अभिनव समाधान की मांग करती है. प्रधानमंत्री ने कुछ दिनों पूर्व ही देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता की कमी दूर करने के लिए ‘सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना’ को मंजूरी दी है, जिसे देश के विभिन्न राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया जा रहा है. बड़े पैमाने पर अनाज भंडारण योजना लाभकारी होते हुए भी विशेषकर सीमांत और लघु किसानों की जरूरतों को सीधे तौर पर संबोधित नहीं कर सकती है.
कृषि जनगणना (2010-11) के अनुसार, भारत में 81.9 प्रतिशत सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है. यह सीमित भूमि स्वामित्व कम उपज मात्रा की ओर इशारा करती है. इतनी छोटी मात्रा के लिए बड़ी भंडारण सुविधाएं किफायती नहीं हो सकती हैं. इन सीमांत किसानों के पास लंबे समय तक अपना अनाज भंडारित करने के लिए वित्तीय संसाधनों की कमी होती है. इनमें से कई सीमांत किसान बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी फसल बेचने से होने वाली तत्काल आय पर निर्भर हैं. बेहतर कीमत के लिए उपज को रोके रखना उनके लिए विकल्प नहीं हो सकता. सीमांत किसानों और अच्छी तरह विकसित कृषि बाजारों के बीच भौगोलिक दूरी भंडारण सुविधाओं तक पहुंच की चुनौती को बढ़ा देती है. अधिकांश सीमांत किसान अच्छी तरह से विकसित मंडियों (कृषि बाजारों) या खरीद केंद्रों से दूर रहते हैं. वहां तक माल पहुंचाने की परिवहन लागत बेहतर कीमतों के लिए अनाज भंडारण के संभावित लाभों से अधिक हो सकती है. इस प्रकार, अनाज भंडारण के लिए ‘वन फिट फॉर ऑल’ दृष्टिकोण अनजाने में उन लोगों को बाहर कर सकता है जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. सीमांत किसानों को सशक्त बनाने और अनाज भंडारण योजना में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिक सूक्ष्म तथा विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है. केवल बड़ी भंडारण सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सरकार को उत्पादन स्थल के समीप छोटे व ग्रामीण स्तर की भंडारण सुविधा नेटवर्क की स्थापना के संभावनाओं का पता लगाना चाहिए. ये विकेंद्रीकृत भंडारण इकाइयां परिवहन लागत को कम करने के साथ सीमांत किसानों को भंडारण विकल्पों तक आसान पहुंच भी प्रदान करेंगी.


इसके अतिरिक्त, सहकारी समितियां और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भंडारण सुविधाओं के सामूहिक उपयोग को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. संसाधनों को एकत्रित और लागत साझा कर किसान बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्थाओं से लाभ उठा सकते हैं और भंडारण में वित्तीय बाधाओं को दूर कर सकते हैं. ऐसी पहलों के सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार से मौद्रिक सहायता आवश्यक है. सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से लक्षित सब्सिडी या ब्याज मुक्त ऋण के रूप में सरकारी सहायता, उनकी भागीदारी को और प्रोत्साहित कर सकती है. भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे का मजबूत होना समीकरण का आधा हिस्सा है. सीमांत किसानों के लिए बाजार पहुंच को मजबूत करने और उसमें सुधार के प्रयास भी होने चाहिए. असली ताकत भंडारण, बाजार पहुंच और किसान सशक्तिकरण पहल के बीच तालमेल बिठाने में निहित है. ग्राम स्तरीय भंडारण इकाइयों का नेटवर्क बनाने, सहकारी समितियों व एफपीओ का उपयोग करने और बुनियादी ढांचे के विकास एवं मोबाइल खरीद इकाइयों के माध्यम से बाजार पहुंच में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करके अधिक समावेशी तथा लचीला कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जा सकता है.


विकेंद्रीकृत भंडारण नेटवर्क को लागू करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना और कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है. रसद, रखरखाव और भ्रष्टाचार जैसे संभावित मुद्दों को पहले से ही संबोधित करने की आवश्यकता है. बेहतर भंडारण सुविधाएं फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकती हैं. सीमांत किसानों की बढ़ी हुई आय पूरे ग्रामीण समुदायों का उत्थान कर सकती है. विकेंद्रीकृत भंडारण नेटवर्क संकट के समय बफर स्टॉक प्रदान कर सकता है, खाद्य कीमतों को स्थिर कर सकता है और मूल्य वृद्धि को रोक सकता है. भारत की अनाज भंडारण योजना देश के कृषि परिदृश्य को बदलने की अपार क्षमता रखती है, लेकिन इसमें सीमांत किसानों का समावेश सुनिश्चित करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप भी होना चाहिए. जब ऐसा होगा, तभी हम भारत के लिए अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ कृषि भविष्य की परिकल्पना को साकार कर सकेंगे.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)

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