ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था की वृद्धि तो दूर की बात, उसे गतिशील रख पाना ही बड़ी चुनौती है. इस चुनौती ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत जैसे तेज गति से विकासशील देशों को भी बड़ी मुश्किल में डाल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आपदा के प्रारंभिक चरण से ही देश को आश्वस्त करते रहे हैं कि वंचित वर्ग व कामगार तबके को राहत और रोजगार मुहैया कराने के साथ उद्योग एवं कारोबारी जगत की मदद के लिए भी सरकार मुस्तैद है. विभिन्न सरकारी योजनाओं और राहत पैकेजों के साथ रिजर्व बैंक भी अपने स्तर पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने तथा मौजूदा नियमों में बदलाव करने जैसे उपाय कर रहा है.
गवर्नर दास ने फिर एक बार यह साफ किया है कि अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है और वित्तीय स्थिरता पर भी समुचित ध्यान दिया जा रहा है. यह हम सहज ही अनुभव कर सकते हैं कि महामारी ने हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बदल कर रख दिया है. यही हालत दुनिया की आबादी के बहुत बड़े हिस्से की भी है. स्वास्थ्य व आर्थिकी को संकटग्रस्त करनेवाली ऐसी आपदा विश्व ने सौ साल के बाद देखी है. इस समस्या के समाधान में पूंजी से संबंधित नियमन और प्रबंधन की प्रमुख भूमिका है.
रिजर्व बैंक के निर्देश से ब्याज दरों में कमी और नकदी की आपूर्ति से आम जनता के साथ उद्योगों और व्यवसायों को भी बड़ी राहत मिली है. फरवरी से केंद्रीय बैंक ने साढ़े नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक पूंजी को बाजार के लिए सुगम किया है. यह राशि सकल घरेलू उत्पादन का 4.7 फीसदी है. इस वजह से देश में वित्तीय स्थिरता को कायम रखा जा सका है और नकदी की कोई कमी किसी भी स्तर पर महसूस नहीं की गयी.
यदि हम इन उपायों के साथ सरकार के बीस लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को रख कर देखें, तो इनके कारण भयावह महामारी और लॉकडाउन के बावजूद न तो जरूरी चीजों की आपूर्ति बाधित हुई और न ही किसी तरह की बेचैनी का आलम बना. देश ने अब तक धीरज के साथ मौजूदा संकट का सामना किया है और हालात सुधरने के संकेत भी मिलने लगे हैं.