हर साल की तरह आठ मार्च इस बार भी आंधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया. 365 दिन में एक दिन चर्चा, सेमिनार, जुलूस आदि कर हम सब महिलाओं का सबल बनाते हैं और फिर अगले साल के लिए इंतजार में लग जाते हैं. क्या हमारा तथाकथित जागरूक समाज आधी आबादी को ऐसे ही सबल बनाते रहेगा या वास्तव में कोई सार्थक पहल ईमानदारी से करेगा? ऐसा भी नहीं है कि महिलाओं को सबल बनाने के लिए कुछ हुआ ही नही है.
लेकिन जो हुआ, वह नाकाफी है. परिवार, राज्य और देश के विकास में इन्हें बराबर का हिस्सा देना अभी भी बाकी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सब नकली पुरुष मानसिकता से ग्रसित हैं? देश का विकास चाहने वालों सभी स्तरों पर आधी आबादी को सहभागिता दो. सिर्फ आठ मार्च को ही नहीं, प्रतिदिन महिला दिवस मानना होगा.
गणोश कुमार सीटू, ओकनी, हजारीबाग