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सुरक्षा परिषद् का विस्तार

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के चार सबसे मजबूत दावेदारों ने प्रस्ताव किया है कि वे इस संस्था के विस्तार की प्रक्रिया में नये सुझावों पर विचार के लिए तैयार हैं. भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान ने साझा बयान जारी कर निश्चित निर्णय होने तक बतौर स्थायी सदस्य अपने वीटो अधिकार को छोड़ने […]

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के चार सबसे मजबूत दावेदारों ने प्रस्ताव किया है कि वे इस संस्था के विस्तार की प्रक्रिया में नये सुझावों पर विचार के लिए तैयार हैं. भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान ने साझा बयान जारी कर निश्चित निर्णय होने तक बतौर स्थायी सदस्य अपने वीटो अधिकार को छोड़ने की बात कही है. लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र के अधिकतर सदस्य देश परिषद् में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग करते रहे हैं.
हालांकि, मौजूदा पांच स्थायी सदस्य- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन- भी विस्तार की जरूरत से सहमति जताते रहे हैं, पर उन्होंने इस दिशा में ठोस पहल करने में हिचक दिखायी है. संयुक्त बयान में स्पष्ट कहा गया है कि वीटो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, पर इसका इस्तेमाल सुधार प्रक्रिया को रोकने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. अक्सर यह देखा गया है कि स्थायी सदस्य अपने और अपने सहयोगी देशों के लिए व्यापक वैश्विक हितों की अनदेखी करते हैं. जैसा कि चार दावेदारों ने रेखांकित किया है, इस असंतुलन को महज अस्थायी सदस्यता को बढ़ा कर दूर नहीं किया जा सकता है.
वर्ष 1945 की स्थितियों से आज की दुनिया बिल्कुल अलग है तथा इसमें बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली देशों का शामिल किया जाना बहुत जरूरी हो गया है. सुधार की कार्य-योजना से संबंधित दस्तावेजों को 122 देशों की सहमति से 2014 में तैयार किया गया था. कई और देशों ने बाद में अपनी राय दी थी और एक पत्र 70वें इंटर-गवर्नमेंटल निगोशियेशंस सत्र के अध्यक्ष को दिया गया था.
इटली और स्पेन जर्मनी का, मेक्सिको, कोलंबिया और अर्जेंटीना ब्राजील का, पाकिस्तान भारत का तथा दक्षिण कोरिया जापान का विरोध कर रहे हैं. इनके अड़ंगे की वजह से इस पर आगे कार्रवाई नहीं हो सकी है. दुनियाभर में हिंसक संघर्षों, पर्यावरण के भयावह नुकसान और आतंकवाद के माहौल में संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्व-संस्था की साख और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. सुरक्षा परिषद् महाशक्तियों की मनमर्जी का अखाड़ा बन कर अपनी प्रासंगिकता खो रहा है.
सीरिया संकट और मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने जैसे हालिया मसलों में स्थायी सदस्यों के रवैये की बड़ी आलोचना हुई है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव अधर में लटके पड़े हैं. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समझदारी बनाने के भारतीय प्रस्ताव पर दो दशकों से कोई प्रगति नहीं हुई है. ऐसे में सुरक्षा परिषद् के विस्तार के लिए भारत और अन्य दावेदारों को कूटनीतिक दबाव तेज करना होगा. इन देशों को सदस्यता के इच्छुक अन्य देशों को भी भरोसे में लेने की कोशिश करनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्व-संस्था का बेहतर होना मानवता के वर्तमान व भविष्य के लिए बहुत जरूरी है.

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