झारखंड व बिहार के छात्रों के साथ कई दूसरे राज्यों में मारपीट और र्दुव्यवहार की घटनाएं प्राय: सामने आती रहती है. असम, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा व दक्षिण भारत के कई राज्यों में ऐसी वारदातें ज्यादा घटित हुई हैं. लेकिन अब बिहार में भी नौकरी ज्वाइन करने गये झारखंड के छात्र के साथ मारपीट की गयी है.
सवाल उठता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं? झारखंड विधानसभा ने निंदा प्रस्ताव पारित किया है. स्पीकर ने इस प्रस्ताव का नियमन बना कर सभी राज्यों को भेजने को कहा है. यह एक उचित कदम हो सकता है. संभव है दूसरे राज्यों में झारखंड के छात्रों, मजदूरों व अन्य लोगों के साथ र्दुव्यवहार कम हो जाये.
लेकिन क्या सिर्फ निंदा प्रस्ताव पारित करने से यह मसला हल हो जायेगा? बेहतर हो यदि सभी राज्य एक फोरम पर आकर अपनी बातें रखें. इन झगड़ों के मूल में बेरोजगारी और पलायन है. भारत के किसी भी राज्य में काम करने और वहां रहने की आजादी सबको हासिल है. बावजूद इसके क्षेत्रवाद को लेकर ऐसे झगड़ों-हमलों का पनपना राज्य और केंद्र दोनों के लिए चिंता की बात है. लोगों को रोजगार सुलभ कराना सरकारों का काम है.
पलायन रोकने के लिए उचित मजदूरी और समय पर काम दिलाना होगा. स्थानीयता नीति तय करने से भी किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए. लेकिन स्थानीयता को लेकर झगड़ने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसी घटनाओं पर त्वरित और समुचित कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि किसी तरह की दुर्भावना पैदा होने की संभावना शेष नहीं रह जाये. कानून व्यवस्था राज्यों का मसला है और ऐसी घटनाओं को रोकने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए. ऐसे विवादों और झगड़ों से देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ सकती है.
ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने पर सबसे पहले उन राज्यों की सरकारों के बीच संवाद हो. अपराधी को अविलंब चिह्न्ति कर कानून के कठघरे में खड़ा किया जाय. एक दूसरे की निंदा करने भर से काम नहीं चल सकता है. कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए. कई व्यवस्थाएं पहले से मौजूद हैं, उन्हें सक्रिय करके दूसरे राज्यों में अपने लोगों पर नजर रखी जा सकती है और उन्हें परेशान होने से बचाया जा सकता है. तमाम पूर्वाग्रहों व अंतर्विरोधों से ऊपर उठने की जरूरत है. ऐसे मसलों पर राजनीति नहीं की जा सकती है.