अपने स्वार्थ की पूर्ति अथवा तथाकथित आत्म सम्मान की संतुष्टि के लिए हम एक दूसरे का शोषण करने, रोब जमाने और अपनी शर्तें मनवाकर हम कौन सी सभ्यता और आधुनिकता का परिचय दे रहे हैं. जियो और जीने दो की धरना भूल गये हैं. इनसान अपने भौतिक विकास को देखकर फूला नहीं समा रहा है.
साथ-साथ सामाजिक विकास के स्थान पर नैतिक पतन होता जा रहा है. मानव विकास की मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को सुविधाजनक एवं शांतिमय बनाना होता है, परंतु सामाजिक अशांति, अत्याचार, अनाचार, व्यभिचार के रहते कैसे मानव जाति सुखी रह सकती है. मानसिक शांति के बिना सारी सुख सुविधाएं गौण हो जाती है.
सौरभ गुप्ता, सतबरवा, पलामू