-हरिवंश-
चीन – उत्सुकता पैदा करता है. जानने-समझने और देखने के लिए. रहस्यों से घिरा मुल्क-समाज. अतीत (इतिहास)का जादू अलग. फाह्यान और ह्वेसांग का मुल्क. 2002 में चीन गया, कुछेक शहर देखें. तब समझा कि मनुष्य, समाज या राष्ट्र में कितनी संभावनाएं हैं? 50 के दशक में जो देश सूई नहीं बना सकता था (मुहावरे के अर्थ में), वह आज महाशक्ति है. अमेरिका को चुनौती देता. दो-तीन दशकों में इस देश का चेहरा बदल गया है. इमारतें, सड़कें, विकास, बीस-बीस किलोमीटर लंबे फ्लाइओवर, सब जादू जैसे लगते हैं.
मनुष्य के पौरुष, पुरूषार्थ, संकल्प और कर्म-श्रम के चमत्कार. हमारी पीढ़ी ने बचपन में ही चीनी हमले, देश का सदमा और नेहरूजी की मौत के प्रसंग सुना. इस कारण यह मुल्क भय भी पैदा करता है. भविष्य के भारत के लिए चिंता का प्रसंग. हमारे मौजूदा नेता, चीनी नेतृत्व की क्षमता, काबिलियत और विजन के मुकाबले बहुत पीछे हैं. चीन की शासन प्रणाली ही भिन्न नहीं है, पहले से ही वहां के जीवन-समाज में एक आंतरिक अनुशासन है. संकल्प है. एक अत्यंत सक्षम और चुस्त कार्यसंस्कृति है.
हमारी पीढ़ी के लिए एडगर स्नो की पुस्तक ‘रेड स्टार ओवर चाइना’, अत्यंत प्रसिद्ध और मशहूर किताब थी. एडगर, मशहूर अमेरिकी पत्रकार थे. उन्होंने चीन की सशस्त्र क्रांति को नजदीक से देखा. लगभग शामिल होकर. पहले विदेशी पत्रकार, जिन्होंने माओ-त्से-तुंग, चाउ-एन-लाइ वगैरह से लंबी बात की. साथ रहे. दुनिया ने इन नेताओं और चीन की क्रांति को प्रमाणिक रूप से एडगर स्नो की पुस्तक से जाना.
के. नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक ‘माई चाइना डायरी – 1956 – 88’ के बैक कवर पर एडगर स्नो का उद्धरण ही कोट किया है, ‘चीन हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी कहानी है’. यह पुस्तक रूपा एंड कंपनी ने छापा है. कीमत है, 395 रूपये. चीन से जुड़े संस्मरणों की किताब. यह डायरी है. बीच-बीच में लिखी हुई. नियमित नहीं. इस पुस्तक से चीनी समाज, शासन और सत्ता के रूप-चेहरे की झलक मिलती है. इसमें चीनी समाज, सत्ता, दृश्य और घटनाओं के इंप्रेशंस (चित्रण) हैं. गहराई से नहीं. किसी वाद, विवाद या दृष्टि से विश्लेषण नहीं, बल्कि अनुभूतियां या सपाट विवरण.
कुंवर नटवर सिंह पाकिस्तान, पोलैंड और जांबिया में भारत के हाई कमिश्नर रह चुके हैं. ब्रिटेन में डिप्टी हाई कमिश्नर के रूप में काम कर चुके हैं. यूनाइटेड नेशंस में भी कार्यरत रहे हैं. संसद के दोनों सदनों के सदस्य भी रहे हैं. 2004-05 के बीच भारत के विदेश मंत्री के रूप में भी काम किया है. उनकी आरंभिक पोस्टिग बीजींग में एक भारतीय राजनयिक के रूप में हुई. चीन के प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाइ, 1960 में भारत आये थे. तब तक नटवर सिंह विदेश मंत्रालय में थे. चीनी प्रधानमंत्री की उस यात्रा में ही 1962 के चीनी युद्ध के दृश्य साफ हो गये थे.
वह यात्रा विफल थी. उस यात्रा के अंदरूनी तथ्य भी पुस्तक में हैं. फिर राजीव गांधी जब अपने कार्यकाल में चीन गये, देंग के साथ बातचीत की, तब नटवर सिंह भी उनके साथ थे. दशकों पहले टूटे संबंध राजीव गांधी के कार्यकाल में पुन: बने. उस यात्रा के अनुभव भी इस पुस्तक में हैं.
यह पुस्तक तीन हिस्सों में बंटी है. पहला भाग है, 1956 से 1958 के अनुभव. बीजींग में भारतीय राजनयिक के रूप में. दूसरा महत्वपूर्ण अध्याय है, जब अप्रैल 1960 में चीनी प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाइ भारत आये. तीसरा प्रसंग है, जब राजीव गांधी ने दिसंबर 1988 में चीन की यात्रा की. नटवर सिंह, भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) 1953 बैच में थे. उन्होंने चीनी भाषा को अपनी विदेशी भाषा के रूप में चुना था. पहले आइएफएस, जिन्होंने चीनी भाषा को चुना. उन दिनों को याद करते हए नटवर सिंह ने लिखा है, तब परंपरा थी कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू विदेश सेवा में आये हर युवा अफसर से 15 मिनट खुद बात करते थे. नटवर सिंह लिखते हैं, यह मुलाकात अविस्मरणीय होती थी.
पंडित जी ने चीन, पंचवर्षीय योजना और दक्षिण अफ्रीका पर कुछेक सवाल पूछे. पहला सवाल हिंदी में ही था, क्या हमें चीन से कोई खतरा है? फिर नटवर सिंह कहते हैं कि इस तरह मेरी अग्नि परीक्षा खत्म हुई. इस एक प्रसंग से जाहिर है कि भारत के राष्ट्र निर्माता कैसे थे? किस तरह वे अफसरों को प्रशिक्षित और प्रेरित (ग्रूमिंग) करते थे. भारत बनने के वे शुरूआती वर्ष थे. पर, भारत बनानेवाले बड़े नेता हर क्षेत्र पर निगाह रखते थे. कैसे ब्यूरोक्रेसी को पर्सनल टच से उत्साहित करते थे. यह संकेत स्पष्ट है.
14 अप्रैल 1953 को नटवर सिंह ने आइएफएस में योगदान दिया. जून 1956 में चीन में उनकी पहली पोस्टिंग हुई. विदेश मंत्रालय ने उन्हें एडगर स्नो की पुस्तक ‘रेड स्टार ओवर चाइना’ सौंपी.
फिर वह चीन रवाना हुए. तब चीन भी एक बनता हुआ देश था. हालांकि चीन तब तक विश्वशक्ति नहीं था. पर इसके नेताओं की विश्वस्तरीय पहचान थी. 1953 में स्टालिन नहीं रहे. फिर माओ साम्यवादी दुनिया के सबसे बड़े नेता थे. पुस्तक में कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं. पहली बार माओ को देखने-मिलने का प्रसंग, भारत से चीन आनेवाले महत्वपूर्ण लोगों के बारे में वर्णन. एक जगह प्रो. माहलनवीस के चीन आने का उल्लेख है. वह चीन के अतिथि के रूप में बीजींग गये थे. उन्होंने वहां टिप्पणी की कि चीनी लोग क्रियान्वयन में भारत से आगे हैं. भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर वह निराश थे. उनका मत था कि चीन में क्रियान्वयन ‘फर्स्ट रेट’ (सर्वश्रेष्ठ स्तर) का था. इस बीच नटवर सिंह ने भारत में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में उनसे जानना चाहा. उनका जवाब था कि अंग्रेजी में पोस्टर निकालने और अखबारों में विज्ञापन दिलाने के अलावा कुछ नहीं होता. उन्होंने यह भी कहा कि अगर चीजें नहीं सुधरीं, तो हमें सैकड़ों नेहरू बचा नहीं पायेंगे. नटवर सिंह और प्रो. माहलनवीस का यह संवाद भारत के लिए बड़ा अर्थपूर्ण है.
पहले विदेशों में हमारी छवि सिर्फ बतकही करनेवाले देश (नेशन आफ टॉकर) की थी. आज भी हम वाचाल देश के रूप में जाने जाते हैं. हर पंचवर्षीय योजना या बड़ी योजनाओं की समीक्षा कर लें. पायेंगे कि एक की जगह पच्चीस खर्च हुए. दो वर्ष की जगह क्रियान्वयन में तीस वर्ष लगे. पर किसी को चिंता-फिक्र नहीं. कोई एकाउंटिबिलिटी नहीं. देश ने इसकी कितनी कीमत चुकायी है? इसका किसी को अनुमान नहीं. इसी तरह जनसंख्या नियंत्रण में प्रो. माहलनवीस की 1956 में बीजींग में की गयी टिप्पणी, भविष्यवाणी सिद्ध हुई.
जगह-जगह नटवर सिंह उल्लेख करते हैं कि चीन के लोग कैसे काम करते हैं. उनकी सांगठनिक क्षमता, बड़े-बड़े काम अद्भुत ढंग से करने की कला, सार्वजनिक अनुशासन बेमिसाल है. एक तरफ चीन की इन सामाजिक खूबियों का उल्लेख करते हैं, दूसरी ओर जगह-जगह भारत की अराजकता को भी याद करते हैं. एक तरह का तुलनात्मक विवरण. चीन के बड़े नेताओं की कार्यसंस्कृति और कामकाज के बारे में जगह-जगह टिप्पणी है. चीनी किस तरह अपने काम में मेथॉडिकल (सुव्यवस्थित) होते हैं, घटनाओं के साथ इसका विवरण है.
वह 7 अप्रैल 1957 का स्मरण करते हैं, किसी वीआईपी के साथ प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाइ से मिलने गये. तब केरल में कम्युनिस्ट सरकार जीत कर सत्तारूढ़ हुई थी. नटवर सिंह बताते हैं कि चाउ-एन-लाइ ने उन्हें केरल के चुनाव परिणाम के एक-एक तथ्य बताये. आंकड़े और सामाजिक, आर्थिक हालात के ब्योरे. नटवर सिंह लिखते हैं कि हमारे दूतावास के पास एक भी सूचना नहीं थी. पर चीन के पास सभी सूचनाएं थीं. यह प्रसंग पढ़ते हुए कोल इंडिया के एक अधिकारी की बात याद आयी. लगभग डेढ़-दो साल पहले, कोल इंडिया का एक दल प्रशिक्षण के लिए चीन गया. उसके संयोजक को एक चीनी कोल अधिकारी से मुलाकात हुई. कर्टसी (शिष्टाचार) काल में. उस चीनी अधिकारी ने कोल इंडिया में अफसरों के कितने ग्रेड हैं, कौन-कौन से अफसर हैं, उनके क्या ग्रेड हैं, वे कितने महत्वपूर्ण जगह पर काम करते हैं, इन सब चीजों की चर्चा कर दी,वह स्तब्ध रह गये. यह है चीन के लोगों की बारीकियों में जाने की आदत.
किसी चीज की गहराई में उतर कर जानने और काम करने की प्रवृति. भारत के तत्कालीन स्पीकर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल माओ से भी मिला. हमारे प्रतिनिधिमंडल में कैसे नेता थे, वे किस तैयारी से गये थे. दूसरी ओर चीन के नेता किस तरह की तैयारी के साथ मिले, इन सबका पुस्तक में उल्लेख है. इन प्रसंगों से मालूम होता है कि चीनी कौम की कार्य संस्कृति, कार्यशैली और विजन क्या है. भारत इस मामले में कितना पीछे, कैजुअल और लापरवाह है. चीन के आईने में भारत को समझने में मददगार है यह पुस्तक.