जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के साथ दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में वकीलों द्वारा मारपीट की निंदनीय घटना के विवरण बहुत चिंताजनक हैं. कन्हैया कुमार पर हमले में न सिर्फ कई वकील शामिल हैं, बल्कि उनके साथ बाहर के लोग भी थे.
कन्हैया की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी मारपीट के दौरान मूकदर्शक बने रहे और न्यायाधीश की मौजूदगी में जब कन्हैया ने एक हमलावर को चिह्नित किया, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने की कोशिश भी नहीं की़ राजधानी की एक अदालत में हुए इस हमले का निशाना पत्रकार और अन्य लोग भी हुए, लेकिन पुलिस तथा सरकार ने इसे मामूली घटना कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की.
आरोपी वकील खुलेआम कैमरों पर अपने घृणित काम का बखान करते रहे और आगे भी ऐसा करने की धमकी दी़ यह बात अब साबित हो चुकी है कि हमलावरों के संबंध भाजपा से है और अदालत परिसर में पुलिस ने उनके सहयोगी की भूमिका निभायी़ सरकार और पुलिस के साथ हिंसक लंपट गिरोहों की यह सांठगांठ हमारे समय की एक भयानक सूचना है, जो न्यायिक प्रक्रिया, नागरिक अधिकारों और सुरक्षा के लिए अत्यंत खतरनाक है़ इस पूरे प्रकरण को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है जिससे यह उम्मीद बंधी है कि दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी़ लेकिन दो दिन लगातार हुए इस उत्पात पर दिल्ली पुलिस के मुखिया बीएस बस्सी के बयान न सिर्फ उनकी लापरवाही का संकेत है, बल्कि इससे उत्पाती हिंसक तत्वों का मनोबल भी बढ़ा है. देश के अन्य हिस्सों में भी भाजपा से जुड़े संगठनों ने कानून अपने हाथ में लेने का प्रयास किया है.
यदि सत्तारूढ़ दल के लोग पुलिस के साथ मिलीभगत कर संविधान और कानूनी प्रावधानों का इसी तरह उल्लंघन करते रहे और सरकार दंभ भरी चुप्पी साध ले या उन्हें प्रश्रय दे, तो निश्चित रूप से समाज में अस्थिरता और अव्यवस्था का माहौल बनेगा. ऐसी स्थिति देश के स्थायित्व, शासन और विकास के लिए बहुत नुकसानदेह है. आशा तो यही है कि भाजपा इन घटनाओं पर आत्ममंथन करते हुए हिंसक तत्वों से दूरी बनायेगी और शासन-व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप नहीं करेगी.