दिल्ली के विधानसभा चुनाव के परिणाम से आम आदमी पार्टी (आप) के नेता काफी उत्साहित हैं और व्यवस्था की जटिलताओं को नहीं समझ पा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने जो जन समस्याओं को एक जन उन्माद का रूप दिया है, वह क्या सिस्टम में मौलिक परिवर्तन ला पायेगा? इससे बड़ा जन आंदोलन 1974 में जयप्रकाश नारायण ने किया था, जो व्यवस्था और सत्ता परिवर्तन के लिए किया गया था, उसका हश्र यह हुआ कि जनता पार्टी की सरकार बनी और उसमें शामिल अधिकतर नेताओं ने जम कर सत्ता का दुरुपयोग किया, परिवारवाद से ग्रसित होकर बड़े-बड़े घोटाले किये और समाज को जाति के नाम पर बांटा. यही नहीं, सभी समाजवादी उन्हीं पूंजीपतियों के गुलाम बन गये, जिन्हें वे गाली देते थे.
फिर 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में जनांदोलन किया और भारत के प्रधानमंत्री बने. परिणाम क्या निकला? आम जनता की उम्मीदों का गला घोंट दिया गया और सब वादे सत्ता के सुखवाद में गुम हो गये. एक बार फिर आम आदमी को छला गया. आम आदमी पार्टी के लोगों के पास कोई वैचारिक सिद्धांत नहीं है, न ही कोई ठोस नीति. जब तक इस देश में व्यापक नैतिक और चरित्र निर्माण के लिए जन आंदोलन नहीं शुरू होगा, तब तक इस प्रकार के रफू करनेवाले आंदोलनों से केवल चेहरे बदलेंगे, सिस्टम नहीं.
अगर दलाल और ठग केवल मुखौटा लगा लें, तो क्या उससे उनका चरित्र बदल जायगा? नहीं. आज भी जनता को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखा कर ये सपनों के सौदागर ठग रहे हैं. इस प्रकार के जन उन्माद से परिवर्तन नहीं होता. यह आंदोलन नहीं सत्ता सुख प्राप्त करने का साधन मात्र है.
सतीश कुमार सिंह, ई-मेल से