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बिहार से नजीर

राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास और नागरिकों के जीवन में गुणात्मक सुधार में स्वास्थ्य की महती भूमिका को लेकर बिहार में सजगता बढ़ी है. पिछले एक दशक में राज्य सरकार ने लोक स्वास्थ्य संरचना को सुदृढ़ करने की दिशा में कई कदम उठाये हैं. इसका प्रतिफल दो रूपों में दिखता है. पहला, सरकारी स्वास्थ्य […]

राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास और नागरिकों के जीवन में गुणात्मक सुधार में स्वास्थ्य की महती भूमिका को लेकर बिहार में सजगता बढ़ी है. पिछले एक दशक में राज्य सरकार ने लोक स्वास्थ्य संरचना को सुदृढ़ करने की दिशा में कई कदम उठाये हैं. इसका प्रतिफल दो रूपों में दिखता है. पहला, सरकारी स्वास्थ्य सेवा के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है. यह अस्पतालों में इलाज के लिए आनेवाले रोगियों की संख्या में उतरोत्तर वृद्धि के रूप में दिखता है.
वर्ष 2005 में प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर जहां प्रतिमाह औसतन 39 रोगी पहुंचते थे, वहीं अब प्रतिमाह करीब 11 हजार रोगी आ रहे हैं. दूसरा, हाल के वर्षों में स्वास्थ्य संबंधी सूचकों में भी सुधार हुआ है. जीवन संभाव्यता बढ़ी है और शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है. चरमरायी स्वास्थ्य सेवा को पटरी पर लाने की यह पहल दूसरी राज्य सरकारों के लिए भी नजीर है. बिहार सरकार के सामने अब अगली चुनौती सरकारी स्वास्थ्य सेवा के प्रति भरोसे को बरकरार रखते हुए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की पहुंच का विस्तार करना है.
सरकारी मेडिकल कॉलेजों और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डॉक्टरों व शिक्षकों के निजी प्रैक्टिस पर रोक की तैयारी इसी दिशा में उठाया जानेवाला कदम है. एक उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर इसकी तैयारी की जा रही है. सरकारी डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर रोक की पहल पहले भी की गयी थी. 1986 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने निजी प्रैक्टिस पर रोक लगायी थी और चिकित्सकों के बीच इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई.
फिर 1998 में भी इसकी पहल हुई. लेकिन, रोक कागजी रहा, व्यावहारिक तौर पर यह अमल में नहीं आया. इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि न केवल चिकित्सक, बल्कि समाज का एक तबका भी इसके खिलाफ खड़ा हो गया. अब जबकि एक बार फिर इस दिशा में पहल हो रही है, तो पिछले अनुभवों से सीख लेकर कार्य योजना बनाना होगा. उपलब्ध स्वास्थ्य सेवा और लोगों की जरूरत के बीच के गैप को पाटने की जरूरत होगी.
आबादी के अनुरूप राज्य में करीब चार हजार स्वास्थ्य उप केंद्र और 673 अतिरिक्त स्वास्थ्य उप केंद्र और चाहिए. आठ और मेडिकल कॉलेज अस्पतालों की आवश्यकता है. देश में करीब 1,700 लोगों, लेकिन बिहार में करीब 3,500 की आबादी पर एक डॉक्टर है. सिविल सोसाइटी और डॉक्टरों के समूह को भरोसे में भी लेना होगा, ताकि वे निजी प्रैक्टिस पर रोक से स्वास्थ्य सेवा में संभावित सुधार की महत्ता समझें.

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