22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

केंद्र में नहीं फिर भी केंद्रीय विधा

हाल में ही एक मुशायरे में जाना हुआ, तो अपनी भाषा और कविता के एक बड़े विरोधाभास की तरफ ध्यान गया. मुशायरे में हर तरह के शायर मौजूद थे- गंभीर और लोकप्रिय. सुननेवालों में दोनों तरह की शायरी के शैदाई थे. दोनों तरह की शायरी के मुरीद थे. जबकि हमारी हिंदी का हाल अलग है. […]

हाल में ही एक मुशायरे में जाना हुआ, तो अपनी भाषा और कविता के एक बड़े विरोधाभास की तरफ ध्यान गया. मुशायरे में हर तरह के शायर मौजूद थे- गंभीर और लोकप्रिय. सुननेवालों में दोनों तरह की शायरी के शैदाई थे. दोनों तरह की शायरी के मुरीद थे. जबकि हमारी हिंदी का हाल अलग है. हिंदी में आज भी कविता साहित्य की केंद्रीय विधा बनी हुई है.

सबसे अधिक पुरस्कार कविता को लेकर दिये जाते हैं. पत्र-पत्रिकाओं में सबसे अधिक प्रकाशित होनेवाली साहित्यिक विधा कविता है. सबसे अधिक आयोजन कविता को लेकर होते हैं. लेकिन वह कविता पाठकों से लगातार दूर होती गयी है, जिसे उच्च कविता कहा जाता है. पाठकों के पैमाने से देखें, तो हिंदी की इस कविता के पाठक सबसे कम हैं.

1960 के दशक तक मंच की कविता और गंभीर कविता के बीच दूरी नहीं थी. एक ही मंच पर बच्चन और निराला कविता पढ़ सकते थे. दिनकर और गोपाल सिंह नेपाली कविता पढ़ सकते थे. उनमें भेद तो था, मतभेद नहीं था. लेकिन आधुनिकता के नाम पर, गंभीरता के नाम पर हिंदी कविता ने खुद को मंचों से दूर कर लिया. मुझे याद आ रहा है अपने एक समकालीन उर्दू शायर का यह कथन कि उर्दू में शायरी केंद्रीय विधा है, जो रदीफ और काफिये के मीटर से बंधी हुई है, लेकिन तब भी उसमें नयापन दिखाई देता है. जबकि दूसरी तरफ हिंदी की मुख्यधारा की कविता है, जो अपनी प्रकृति में मुक्त है, खुली हुई है, तब भी उसमें कुछ नयापन नहीं दिखाई देता, कोई बड़ा प्रयोग होता नहीं दिखाई देता है. उस उर्दू शायर की बात हो सकता है सच न हो, मगर सोचने को विवश करनेवाली टिप्पणी जरूर है. ईमानदारी से देखें, तो पिछले 25 सालों की हिंदी कविता में कविता की पहचान हो सकता है हो जाये, मगर कवियों की विशिष्टता की पहचान नहीं की जा सकती. अगर आप कवि के नाम हटा दें, तो कविता किस कवि की लिखी हुई है कहना मुश्किल है.

आज जबकि सोशल मीडिया के जमाने में सबसे अधिक कविताएं ही लिखी जा रही हैं. लेकिन, हर कवि पीछे की कविता लिख रहा है, आगे की कविता न के बराबर लिखी जा रही है. लगता है हिंदी कविता की मूल चिंता विचार को बचाने की है, कविता को बचाने की नहीं. मुझे अपने एक दोस्त का वह कथन याद आ रहा है कि हिंदी कवियों की दुनिया सुख की स्वनिर्भर दुनिया है, जिसमें कवि एक-दूसरे को पढ़ते हैं और एक-दूसरे की बड़ाई में फतवे जारी करते हैं. कई बरस पहले मनोहर श्याम जोशी ने प्रकाश मनु को दिये एक इंटरव्यू में कहा था कि हिंदी ऐसी भाषा है, जिसमें सबसे अधिक कवि हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि सबसे चुनौतीविहीन कविताएं इसी भाषा में लिखी जा रही हैं. वह चुनौती है गुमनाम पाठकों से अधिक जीवंत श्रोताओं के निकष पर कविता को कसने की. अगर गंभीर कविता पाठकों की चुनौती को स्वीकार कर ले, तो सुननेवालों के लिए भी अच्छी बुरी कविता की पहचान बनी रहेगी. जैसी कि उर्दू शायरी में है.

प्रभात रंजन

कथाकार

prabhatranja@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें