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कबाड़ पछिया हवा की तरह होता है!
प्रभात रंजन कथाकार जी वन में हम आगे बढ़ते जाते हैं और साथ-साथ कबाड़ भी चलता जाता है. इसी कबाड़ में कभी कुछ ऐसा मिल जाता है, जो हमारी सोई हुई स्मृतियों को जगा देता है. अभी बरसों बाद घर शिफ्ट कर रहा था, तो कबाड़ में न जाने क्या-क्या मिल गया, कि न जाने […]
प्रभात रंजन
कथाकार
जी वन में हम आगे बढ़ते जाते हैं और साथ-साथ कबाड़ भी चलता जाता है. इसी कबाड़ में कभी कुछ ऐसा मिल जाता है, जो हमारी सोई हुई स्मृतियों को जगा देता है. अभी बरसों बाद घर शिफ्ट कर रहा था, तो कबाड़ में न जाने क्या-क्या मिल गया, कि न जाने क्या-क्या याद आ गया.
कुछ किताबें, मसलन, गैब्रियल गार्सिया मार्केज का उपन्यास ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ की दीमक खायी प्रति मिल गयी, जिमसें मैंने लाल और नीली स्याही से निशान लगाये थे. याद आ गया वह जमाना, जब जीवन में पहली बार प्रेम के बाद पहली बार ब्रेक अप हुआ था. उस दशा में उसके प्रेमी पात्र फ्लोरेंतीना एरिजा से बड़ी प्रेरणा मिली थी, जो अपनी प्रेमिका फरमीना डाजा से पुनर्मिलन के लिए 51 साल 9 महीने और 4 दिन तक प्रतीक्षा करता है.
सबसे सुखद रहा सोनी के उस मिनी टेपरिकॉर्डर का मिलना, जिसे अपने कॉलेज के दिनों में नेपाल के सीमावर्ती शहर जनकपुर से जाकर खरीदा था. वह पूरा जमाना देर तक आंखों के सामने घूमता रहा, जब विदेशी सामानों के लिए हमारा एक ही ठिकाना नेपाल जाना होता था.
तब देश विदेशी सामानों का इतना खुला बाजार नहीं बना था. हम जूते से लेकर टूथब्रश और डिजिटल घड़ी वाला पेन तक वहीं जाकर खरीदते थे. तब नेपाल जाने का एक और आकर्षण होता था कोका कोला और पेप्सी पीना. सीतामढ़ी से बस में बैठ कर हम दो घंटे में जनकपुर पहुंच जाते थे और दिन भर के लिए ‘ग्लोबल’ बन जाते थे, शाम को वापसी की बस पकड़ लेते थे.
मैं बात सोनी के मिनी टेपरिकॉर्डर की कर रहा था. उससे रिकॉर्डिंग इतनी अच्छी होती थी कि हम कई बार उसे जेब में रख कर सिनेमा हॉल तक में ले जाते थे, कभी कोई गाना रिकॉर्ड करते, कभी टीवी पर मुशायरा रिकॉर्ड करते. नेपाल से टीडीके और सोनी के कैसेट्स भी खरीद कर लाते थे, जिसमें अपने पसंद के गाने रिकॉर्ड करवाते थे.
याद आया जीवन में पत्रकार के रूप में पहला इंटरव्यू भी उसी मिनी टेपरिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया था, जाने-माने लेखक कमलेश्वर का. बाद में बरसों वह मेरे लिए साक्षात्कार रिकॉर्ड करने का उपकरण बना रहा. न जाने कितने देशी-विदेशी लेखकों, नेताओं के रिकॉर्ड उसी से मैंने रिकॉर्ड किये. करीब एक दशक तक उसने मेरा बखूबी साथ दिया. खराब तब भी नहीं हुआ था, सामानों में कहीं दब गया था. बाद में उसकी जरूरत भी खत्म हो गयी.
उसे देखता रहा और यही सोचता रहा कि नयी-नयीतकनीकी उपलब्धियां भी किस तरह एक जमाने में बेहद जरूरी समझे जानेवाले उपकरणों को कबाड़ बना देती हैं. आज तो फोन तक में आराम से रिकॉर्डिंग की सुविधा है. लेकिन वह रोमांच कहां, जो सोनी के उस मिनी टेप रिकॉर्डर में था. जीवन से जो रोमांच खत्म हो गया था, उसकी याद कबाड़ में मिले टेप रिकॉर्डर से हो आयी.कई बार लगता है कबाड़ पछिया हवा की तरह होता है- स्मृतियों को जगा देनेवाला! न जाने कब का बखिया कब उघड़ने लगता है!
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