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डॉ कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि

विश्वनाथ सचदेव वरिष्ठ पत्रकार अंतत: यही तय हुआ कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के सम्मान में संसद के दोनों सदनों में दो दिन तक काम नहीं होगा. सात दिनों का राष्ट्रीय शोक और संसद द्वारा इस तरह से देश के एक महान सपूत को श्रद्धांजलि देना उचित ही लगता है. लोकसभा को […]

विश्वनाथ सचदेव
वरिष्ठ पत्रकार
अंतत: यही तय हुआ कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के सम्मान में संसद के दोनों सदनों में दो दिन तक काम नहीं होगा. सात दिनों का राष्ट्रीय शोक और संसद द्वारा इस तरह से देश के एक महान सपूत को श्रद्धांजलि देना उचित ही लगता है. लोकसभा को तो तत्काल दो दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था, पर राज्यसभा में कुछ असमंजस की स्थिति थी.
असल में राज्यसभा की एक समिति ने 1993 में यह निर्णय किया था कि किसी भी दिवंगत नेता की स्मृति में सदन का कार्य सिर्फ एक दिन के लिए ही स्थगित किया जायेगा. पर औचित्य का ध्यान रखते हुए यही तय किया गया कि अपवादस्वरूप दो दिन कार्य स्थगित रहे. यह पहली बार नहीं है, 2005 में पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के निधन के समय भी ऐसा किया गया था.
इस आशय का समाचार पढ़ते-समय अचानक एक सवाल मन में आया- स्वयं डॉ कलाम इस बारे में क्या सोचते? वे यह बात कह चुके थे कि उनकी मृत्यु पर देश में छुट्टी नहीं की जाये- आप सब अपना काम करते रहें. डॉ कलाम कर्मवीर थे. जीवन के आखिरी क्षण तक वे वही काम करते रहे, जो वे करना चाहते थे.
वे कहा करते थे- ‘सपने वे नहीं होते जो आपको नींद में आते हैं, सपने वे होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते’. वे एक महान राष्ट्र का सपना देखा करते थे, और यह सपना उन्हें अकसर नहीं सोने देता. स्वयं अपना उदाहरण देकर वे कर्म में लगातार लगे रहने की प्रेरणा देते थे.
शायद वे तो यही चाहते कि संसद के सदनों का कामकाज कभी रुके नहीं. संसद ने दो दिन के लिए काम रोक कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है, इस पर सवाल नहीं उठना चाहिए. पर यह तो पूछा ही जा सकता है कि जिस तरह रोज संसद में काम नहीं होने दिया जा रहा है, उसे देख कर हमारा दिवंगत नेता क्या सोचता होगा?
इसका जवाब भी वे जाने से पहले दे गये हैं. पिछले छह साल से निजी सहायक के रूप में डॉ कलाम के साथ रहनेवाले सृजनपाल सिंह ने पूर्व राष्ट्रपति के आखिरी दिन की आठ बातें बतायी हैं. इनमें एक बात यह भी है कि वे आइआइएम शिलांग के विद्यार्थियों से कुछ पूछना चाहते थे.
वे लिखते हैं- ‘डॉ कलाम बीते दो दिन से इस बात को लेकर फिक्रमंद थे कि संसद में बार-बार हंगामा हो रहा है. यह सही नहीं है. यह सवाल लेकर वे शिलांग में लेर के बाद विद्यार्थियों से पूछना चाहते थे कि अब छात्र ही सुझायें कि संसद को ज्यादा उपयोगी और गतिशील बनाने के क्या नये तरीके हो सकते हैं?’ अफसोस कि डॉ कलाम को यह अवसर नहीं मिला, पर सवाल का महत्व समझने का अवसर हमारे पास है.
जीवन भर देश के सामने मौजूद समस्याओं के समाधान खोजने में लगे रहनेवाले कर्मवीर की हताशा को समझना जरूरी है.
जरूरी है यह सवाल अपने आप से पूछना कि संसद का कामकाज ठप करके आखिर हम क्या पाना चाहते हैं? हां, हम भी जिम्मेवार हैं उस सबके लिए, जो आज हमारी संसद में हो रहा है. चाहे वे किसी भी दल के हों, पर हैं वे हमारे प्रतिनिधि. हमने उन्हें संसद में भेजा है, इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम उनसे पूछें, वे सदन में काम क्यों नहीं होने देते?
‘देते’ इसलिए कि संसद में शोर-शराबे, स्थगन, बहिर्गमन आदि की यह परंपरा बहुत पुरानी है. बरसों-बरस भाजपा विपक्ष में रही है और संसद के सदनों का कामकाज इसी तरह से ठप होता रहा है.
आज कांग्रेस विपक्ष में है और वह भी वही कर रही है. इसमें संदेह नहीं कि यह सब जनता के हित के नाम पर होता है, पर यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि हमारे राजनीतिक दलों के लिए अपने हित सर्वोपरि हैं. वैचारिक विभिन्नता और राजनीतिक विकल्पों की बहुतायत जनतांत्रिक व्यवस्था की बहुत बड़ी ताकत है, पर सवाल इस ताकत के सही इस्तेमाल का है. दुर्भाग्य से, आज हमारी समूची राजनीति यही बताती है कि सत्ता की राजनीति करनेवालों को राष्ट्र-हितों की चिंता नहीं है.गांधीजी ने सेवा की राजनीति का रास्ता दिखाया था. हम सत्ता की राजनीति के दलदल से उबरना नहीं चाहते.
हमें अपने नेताओं से पूछना होगा कि राष्ट्र-हित कब उनकी प्राथमिकता बनेगा? कब उन्हें यह एहसास होगा कि जनता ने उन्हें चुन कर भेजा है, इसलिए वे जनता का काम करें, न कि अपने राजनीतिक स्वार्थो के खेल खेलें. संसद हंगामा करने के लिए नहीं, विचार-विमर्श के लिए है, संवाद से विवाद मिटाने के लिए है. इसलिए जरूरी है संसद में संवाद की स्थितियां बनें. कल भाजपा ने संसद का काम ठप करने की नीति अपनायी थी, आज कांग्रेस यही कर रही है.
यह स्थिति सुधरनी जरूरी है. जनतांत्रिक मूल्यों का तकाजा है कि संसद की पवित्रता का सम्मान हो. स्वर्गीय डॉ कलाम संसद को ‘ज्यादा प्रोडक्टिव और वाइब्रेंट’ देखना चाहते थे. ऐसी संसद बना कर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं. हमारे राजनेताओं को स्वयं से पूछना होगा, क्या उनकी श्रद्धांजलि में सचमुच सच्चाई है!

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