चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
25 जून की रात को देश में आपातकाल की घोषणा हुई और सारे नेता जेल में डाल दिये गये. समाजवादी और अकाली ने तो मजे से जेल काटा, लेकिन संघी चीं बोल गये. माफीनामा तक लिख मारे बेचारे, घिघियाते रहे, पर इंदिरा टस से मस नहीं हुईं.
निजामुद्दीन इमरजेंसी में हैं. यह खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गयी. हस्बे जैल अर्ज कर दूं कि गांव में कोई भी खबर सीधे-सीधे नहीं फैलती. वह जिस डगर से चलती है, उसकी राख-पात, नमक-मिर्च सब उस खबर में लिपटते चलते हैं.
अब इसी खबर को देखि- निजामुद्दीन चले थे मेले में जाने के लिए, जैसा कि कीन उपाधिया ने उन्हें समझाया था- सुनो मान्यवरों! भाइयो और बहनों! उमर दरजी ने टोका भी- बहनों एक भी नहीं है आगे बोलो. कीन ने उमर को घुड़की दी- उमर! बर्बख्त मजाक मत किया करो, यह जनहित का मामला है. सरकार का फैसला है, देश नहीं दुनिया इसे मना रही है. यह एक स्वास्थ मेला है. रोग कोई भी हो, मुला ठीक होने की गारंटी है. दवा-दारू से नहीं बस योगा से.. लाल्साहेब ने टोका- योगा नहीं, योग.
कीन मुस्कुराये- योग देसी चीज है, हमने इसे विदेश तक पहुंचाने के लिए इसके आगे एक खड़ी पाई और लगा दी है समङो! आपको करना कुछ नहीं है बस चटाई ले लीजिए.. नवल मुस्कुराये- साथ में तेल भी ले चलना है कि सरकार देगी? पब्लिक हंस पड़ी. इतनी सी बात हुई थी और निजामुद्दीन अल सुबह अपनी चटाई लेकर उस योग मेला में गये थे. दोपहर को खबर आयी कि निजामुद्दीन तो इमरजेंसी में गये, अलबत्ता उनकी चटाई सही-सलामत वापस आयी. उनके इमरजेंसी जाने की खबर और चटाई एक ही साथ गांव आयी.
लखन कहार का कहना है कि जब गुरु जी आये, तो उन्होंने निजामुद्दीन को बाहर खड़ा कर दिया और बोले कि आप तहमत पहन कर योग नहीं कर सकते, क्योंकि कई आसान ऐसे हैं, जिसमें तहमत नहीं चल पायेगा. और चूंकि साथ में एक साध्वी भी हैं, इसलिए तो कत्तई नहीं. लेकिन निजामुद्दीन अड़ गये और बोले कि-जनाब आप जो समझ रहे हैं उसे हम भी समझ रहे हैं.
हम तहमत को ऐसा गठियायेंगे कि आपके हाफ पैंट से ज्यादा किलेबंद रहेगा. योग शुरू हुआ ही था कि गुरु जी ने ऐलान किया कि अब हम पवन मुक्त करेंगे. और इसी पवन मुक्त पर तहमत ने जो धोखा दिया सो दिया. ठीक पीछे ‘चर्र’ की आवाज आयी. लखन कहार ने अपने कान से सुना और पलट कर देखते, इसके पहले ही निजामुद्दीन एक तरफ लुढ़क गये थे, आंख बंद थी और जोर-जोर से बोल रहे थे-खींच रे, नस फंस गयी है.. पहले लोग हस्पताल जाते रहे अब इमरजेंसी जाते हैं, यह बता कर लाल्साहेब ने खौलते पानी में चाय पत्ती डाल दी. इस तरह चौराहे की संसद में इमरजेंसी ने प्रवेश लिया.
भिखई मास्टर ने धोती संभालते हुए पहला सवाल उठाया- आज की क्या खबर है भाई? मद्दू पत्रकार ने गोलार्ध को बदला-वही इमरजेंसी. उमर की आंख गोल हो गयी- इमरजेंसी! घंटा भर ना भवा कि खबर दिल्ली तक जा पहुंची? मद्दू ने घुड़की दी-अबे! ऊ इमरजेंसी नहीं, ई दूसरी इमरजेंसी की बात होय रही बा. इमरजेंसी कई होती है का? उमर का दूसरा सवाल था. लाल्साहब ने बताना शुरू किया- जब हम बंबई रहे, कई इमरजेंसी देखे रहे. हर हस्पताल में एक इमरजेंसी होती है.. मद्दू मुस्कुराये- लाल्साहेब चाय बनाइए, हम जिस इमरजेंसी की बात कर रहे हैं, वह राजनीति की इमरजेंसी है, हस्पताल की नहीं.
राजनीति में भी इमरजेंसी होती है, यह चौराहे के लिए नयी बात रही. लखन कहार ने कयूम मियां को ठोंका- सुन रहे हैं मियां, राजनीति में भी इमरजेंसी होती है. आप तो सुराजी हैं, खुदा न खास्ता जदि कभी कुछ हुआ तो आपको इमरजेंसी में जल्दी जगह मिल जायेगी.
बहस लंबी चली. आज के चालीस साल पहले इस देश में इमरजेंसी लगी थी. श्रीमती इंदिरा गांधी ने लगायी थी. इसके कुल तीन प्रमुख कारण थे. जेपी के आंदोलन ने देश की सरकार को हलाकान में डाल दिया था. पूरा देश जेपी के साथ खड़ा था.
इलाहाबाद न्यायालय ने राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी के मुकदमे में इंदिरा गांधी को दोषी पाया और उन्हें छह साल के लिए चुनाव से बाहर कर दिया. इसी में जार्ज की रेल हड़ताल भी हुई. 25 जून की रात को देश में आपातकाल की घोषणा हुई और सारे नेता जेल में डाल दिये गये. समाजवादी और अकाली ने तो मजे से जेल काटा, लेकिन संघी चीं बोल गये. माफीनामा तक लिख मारे बेचारे, घिघियाते रहे, पर इंदिरा टस से मस नहीं हुईं..
फिर का भवा? यह नवल उपाधिया का सवाल रहा जिसे चिखुरी ने संभाला- जेपी बहुत बड़े दिल के रहे. दो साल जेल काट के लौटे, चुनाव हुआ.
जेपी की जनता पार्टी जीती. लोग सरकार की शपथ ले रहे हैं और जेपी इंदिरा गांधी से मिलने उनके घर गये. इंदिरा ने जेपी को पकड़ा, उनके कंधे पर सिर रख कर रोने लगीं. जेपी भी रोये और बोले घबड़ाओ मत इंदु! सब ठीक होगा. और दो साल के अंदर इंदिरा जी ने जनता से माफी मांगी. जनता ने माफ कर दिया और उनको बुला लिया. कहते-कहते चिखुरी चुप हो गये. आज नवल बगैर गाये चुपचाप निकल गये..