मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इंजीनियरों से कहा है कि वे राजनीति से बचें. नये इंजीनियरों की नियुक्ति के वक्त उनका यह सुझाव मार्गदर्शक की तरह है. हेमंत सोरेन ने खुद इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, इसलिए वे बेहतर समझते हैं कि इंजीनियर अगर राजनीति के चक्कर में पड़ जायें, तो क्या-क्या फायदे-नुकसान होते हैं. अभी तक तो झारखंड का सच यही है कि यहां के इंजीनियर अगर राजनीतिज्ञों के साथ गंठजोड़ न करें, तो उनका काम करना मुश्किल हो जायेगा.
इसलिए इंजीनियर (खास तौर पर उच्च पदस्थ) सरकार में बड़ी भूमिका अदा करते रहे हैं. मुख्यमंत्री ने जो कुछ कहा, उसमें उनका अनुभव झलकता है. वे जानते हैं कि कई सांसद-विधायक इन्हीं इंजीनियरों के साथ सांठ-गांठ कर योजनाओं का पैसा खा जाते हैं, मोटा कमीशन लेते हैं. जब साल-दो साल में पुल धंस जाते हैं, सड़कें खराब हो जाती हैं, तो हंगामा होता है और सारा दोष सरकार यानी मुख्यमंत्री पर मढ़ दिया जाता है. अगर हेमंत के बोलने का अर्थ यह मान लिया जाये कि इंजीनियर अपना काम ईमानदारी से करें, राज्यहित में गुणवत्ता वाला काम करें, कोई उनसे कमीशन नहीं लेगा, उन्हें कोई तंग नहीं करेगा, तबादले में कोई पैसा नहीं मांगेगा, तो इसका अच्छा संदेश जायेगा.
मुख्यमंत्री ने तो सुझाव दे दिया, पर बाकी मंत्री या सांसद-विधायक इंजीनियरों को ठीक से काम करने देंगे, इसकी गारंटी कौन लेगा. एक-एक योजना में अब 40 प्रतिशत तक कमीशन चलता है. नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों-राजनीतिज्ञों को पैसा चाहिए. नक्सलियों को लेवी चाहिए. ऐसे में बेहतर काम कैसे होगा? रोड-पुल तो बनते ही टूटेंगे ही. इंजीनियरों को यह भी बता देना चाहिए कि गलत काम करेंगे, तो कानून अपना काम करेगा.
नौकरी जायेगी और जेल भी जाना होगा. सरकार अच्छा वेतन देती है, फिर बेईमानी क्यों? मुख्यमंत्री यह कथन भी सराहनीय है कि जब सरकार के पास इंजीनियर हैं, तो बाहर से निजी इंजीनियर की सेवा क्यों लें. अगर जरूरत है तो अपने इंजीनियरों को प्रशिक्षित करें. मुख्यमंत्री जानते ही होंगे कि निजी इंजीनियर या कंसलटेंसी की सेवा लेने के नाम पर करोड़ों का खेल राज्य के मंत्री/अधिकारी करते हैं. मुख्यमंत्री अगर इन चीजों पर रोक लगा सकें, तो राज्य का भविष्य बदल सकता है.