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घोटालेबाज क्रिकेट बोर्ड का नया पैंतरा

आकार पटेल वरिष्ठ पत्रकार तेंदुलकर जैसे पूर्व खिलाड़ियों के विचारों से क्रिकेट बोर्ड को डर लगता है. अगर वे भारतीय बोर्ड के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ बोल दें, तो बोर्ड का दर्शकों के साथ भारी झमेला खड़ा हो सकता है. हाल में सन्यास लिये तीन महान बल्लेबाजों को भारतीय क्रिकेट बोर्ड […]

आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
तेंदुलकर जैसे पूर्व खिलाड़ियों के विचारों से क्रिकेट बोर्ड को डर लगता है. अगर वे भारतीय बोर्ड के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ बोल दें, तो बोर्ड का दर्शकों के साथ भारी झमेला खड़ा हो सकता है.
हाल में सन्यास लिये तीन महान बल्लेबाजों को भारतीय क्रिकेट बोर्ड द्वारा नौकरी की पेशकश किये जाने का क्या अर्थ लगाया जाये? सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण से दुनिया की सबसे धनी और ताकतवर क्रिकेट संस्था का ‘सलाहकार’ बनने के लिए अनुरोध किया गया है.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के प्रारंभिक बयान में कहा गया है कि इन तीन खिलाड़ियों की ‘तात्कालिक जिम्मेवारी हमारी राष्ट्रीय टीम को दिशा-निर्देश करना होगा, क्योंकि हम अंतरराष्ट्रीय मैचों में अपना प्रदर्शन सुधारना चाहते हैं, हमारी प्रतिभा की आमद को बेहतर करने के लिए मार्गदर्शन करना होगा तथा घरेलू क्रिकेट में सुधार के लिए कदम उठाना होगा, ताकि हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दबाव का सामना कर सकें.’
यह बहुत ही अस्पष्ट बयान है. आश्चर्यजनक रूप से इस घोषणा के बाद गांगुली ने कहा कि उन्हें कोई अनुमान नहीं है कि उनकी भूमिका क्या होगी. इसका मतलब यह हुआ कि खिलाड़ियों से इस बारे में कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया था और इस पूरे मामले में किसी तरह की समझदारी नहीं बनायी गयी थी.
इस प्रयास के पीछे बस यही इच्छा थी कि ये तीनों क्रिकेट बोर्ड से संबद्ध हो जायें.तो फिर यह पूरा मामला क्या है? और राहुल द्रविड़ द्वारा इस ‘सलाहकार समिति’ में शामिल होने से इनकार की खबरों का क्या मतलब निकाला जाये? अनाम सूत्रों के हवाले से छपी एक खबर में अनुमान लगाया गया था कि द्रविड़ ऐसी किसी भी पहल में शामिल नहीं होना चाहते हैं, जिसमें सौरव गांगुली भी हों, क्योंकि उन दोनों में बहुत पुरानी प्रतिद्वंद्विता है. मुङो इस बात पर भरोसा नहीं है.
एक अन्य रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि द्रविड़ को अंडर-16, अंडर-19 और इंडिया ‘ए’ टीमों की जिम्मेवारी दी जायेगी, जिनके वे मेंटर होंगे. लेकिन अगर यह कहानी सही है, तो फिर इस संबंध में घोषणा क्यों नहीं की गयी?इसे अघोषित ही रहने दिया गया.
बड़बोले बिशन सिंह बेदी ने कहा कि वे इस नयी समिति के स्वरूप को नहीं समझ सके हैं. अगर उनके जैसे लोग भी समझने में नाकाम रहे हैं, तो फिर यह मामला किसे समझ में आयेगा. तथ्य यह है कि क्रिकेट बोर्ड पुराने खिलाड़ियों को अपने पक्ष में रखना चाहता है.
सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री ने बेमतलब के कामों के लिए चुपके से कई करोड़ रुपये के करार बोर्ड के साथ किये हैं, जबकि ये दोनों कमेंटेटर भी हैं. जब यह बात अखबारों में छपी, तो उन्होंने कुछ अस्पष्ट-सा स्पष्टीकरण दिया जो बहुतों के गले नहीं उतर सका.
शास्त्री इन दिनों क्रिकेट बोर्ड के अनधिकृत, लेकिन वेतनभोगी प्रवक्ता हैं, कथित रूप से निरपेक्ष कमेंटेटर हैं और अब टीम निदेशक भी बन गये हैं (यह नया मनोहर पद पहले अस्तित्व में नहीं था).
क्रिकेट बोर्ड इन मामलों में पूरी तरह आपसी लेन-देन वाली संस्था है. लोगों का एक छोटा समूह हर चीज को नियंत्रित करता है, जिनमें कुछ व्यापारी और राजनेता हैं तथा कुछ पुराने खिलाड़ी हैं. आखिर यह समूह इतना छोटा क्यों है और अपना काम इस गोपनीयता से क्यों करता है?
इसका कारण यह है कि यह घोटालों से भरा पड़ा है. इंडियन प्रीमियर लीग के संस्थापक फरार हैं, इंटरनेशनल क्रिकेट कौंसिल के अध्यक्ष का दामाद सट्टेबाजी के आरोप में जेल में है, आइपीएल की अनेक टीमों पर मालिकाने और अन्य मामलों को लेकर गंभीर आरोप हैं तथा मैच फिक्सिंग के आरोप में खिलाड़ी गिरफ्तार किये जा रहे हैं और उन पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है.
इस अव्यवस्था को कौन ठीक करने की कोशिश में है? कोई नहीं. जब भी क्रिकेट बोर्ड, जो अपने को नियमित करने का दावा करता है, यह कहता है कि वह खेल की बेहतरी के लिए कुछ करने जा रहा है, तो मुङो बहुत संदेह होता है. यह एक पैसा बनाने की मशीन है तथा सभी राजनेता, जिसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं जो गुजरात क्रिकेट के मुखिया थे, भी इसमें अपना हिस्सा चाहते हैं.
कांग्रेस के राजीव शुक्ला से लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार और भाजपा के अरुण जेटली तक, जो देश के सबसे ताकतवर और जानेमाने नेता हैं, भारत के क्रिकेट बोर्ड में जगह बनाने की चाहत रखते हैं. नियमन और पारदर्शिता में क्रिकेट बोर्ड का रिकॉर्ड खराब रहा है, खासकर जब मामला आइपीएल का आता है, जो धन का दुधारू गाय है.
एक अखबार ने रिपोर्ट किया कि ‘इस नये पैनल से आइपीएल के बारे में सलाह लिये जाने की संभावना नहीं है.’ तो फिर इसका तात्पर्य क्या है और सचिन, सौरव और लक्ष्मण को क्यों बुलाया गया है तथा क्यों द्रविड़ ने इससे अलग रहने का निर्णय लिया है?
मेरा अनुमान है कि क्रिकेट बोर्ड को लगता है कि अंदर के ऐसे भरोसेमंद लोगों का उसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर रहना खतरनाक है. इन तीन पूर्व खिलाड़ियों जैसे लोगों को बोर्ड अपने तंबू के भीतर रखना चाहता है.
इस पूरे प्रकरण में क्रिकेट बोर्ड वरिष्ठ और कनिष्ठ टीम की बेहतरी की किसी इच्छा से कतई प्रेरित नहीं है.इसकी पूरी कोशिश खुद को बचाये रखने की है. अगर इसकी चाहत खेल की जानकारी रखनेवाले पूर्व खिलाड़ियों को अधिक जिम्मेवारी देने की होती, तो फिर सैयद किरमानी को यह शिकायत क्यों होती कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है? संभवत: ऐसा इसलिए है कि बहुत कम लोग ही आज उन्हें याद करते हैं. तेंदुलकर जैसे पूर्व खिलाड़ियों के विचारों से क्रिकेट बोर्ड को डर लगता है.
अगर वे भारतीय बोर्ड के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ बोल दें, तो बोर्ड का दर्शकों के साथ भारी झमेला खड़ा हो सकता है. इसलिए उन्हें अंदर रखने की कोशिश बोर्ड कर रहा है.
मेरे विचार में द्रविड़ ने बोर्ड के प्रस्ताव को इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें इस जिम्मेवारी के असली चरित्र की समझ है.
और यह चरित्र है बोर्ड का आखिरकार बचाव करना, भले ही वे कुछ भी हरकत करते रहें. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का यह ‘सलाहकार बोर्ड’ इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए, क्योंकि उसके इतिहास को देखते हुए अच्छे भरोसे के प्रदर्शन की जिम्मेवारी पूरी तरह उन्हीं के ऊपर है.

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