महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत जो योजनाएं चल रही हैं, उन्हें लेकर आये दिन तरह-तरह की टीका-टिप्पणी होती रहती है. कामकाज के आकार-प्रकार के साथ ही उनकी गुणवत्ता पर बहस होती रहती है, सवाल उठते रहते हैं. मनरेगा के तहत किये जा रहे कामकाज को लेकर जो सवाल सामने आते हैं, उन्हें एक झटके में खारिज भी नहीं किया जा सकता. केवल यह कह कर कि सवाल आधारहीन हैं, प्रमाणहीन हैं. क्योंकि, प्रशासन में बैठे लोग भी महसूस करते हैं कि मनरेगा के तहत सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा. अच्छी बात यह है कि ऐसा महसूस करनेवाले स्थिति को बदलने की दिशा में भी कुछ सोच रहे हैं.
निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि मनरेगाकर्मियों को स्मार्ट फोन से लैस करने की पहल इस दिशा में एक अच्छा और ठोस प्रयास है. हाल के वर्षो में ऐसे ढेर सारे उदाहरण सामने आये हैं, जिनके तहत विकासमूलक कामकाज में तकनीक के अच्छे प्रभाव को गहराई से महसूस किया गया है. विज्ञान की उपलब्धियों को अकारण ही खारिज कर देने की किसी की मंशा नहीं हो, तो मानना ही पड़ेगा कि तकनीक विकास का अभिन्न हिस्सा है, स्थायी साथी है.
तकनीक के बिना कम से कम भौतिक विकास की कल्पना तो नहीं ही की जा सकती. मनरेगा कर्मचारियों को स्मार्ट फोन से लैस करने का फैसला स्वागतयोग्य है. इससे न केवल मनरेगा के तहत हो रहे कामकाज की गुणवत्ता में सुधार दिखेगा, बल्कि इस योजना के तहत कराये जा रहे काम में भ्रष्टाचार की पैठ भी कमेगी. स्मार्टफोन के जरिये कामकाज में सुधार की जो अपेक्षा सरकार ने रखी है, वह निराधार नहीं है.
किसी खास कार्यस्थल पर काम शुरू होने से पहले, काम जारी रहने के दौरान और काम की समाप्ति पर ली गयी तसवीरें अगर प्रशासनिक अधिकारियों व आम जनता के सामने पेश कर दी जायें, तो सहज ही पारखी नजरें वहां की गड़बड़ियों को ताड़ लेंगी. तब, भ्रष्टाचार का चाहे कोई कितना भी बड़ा संरक्षक क्यों न हो, कामकाज में हो रही गड़बड़ी को लगातार नजरअंदाज नहीं कर सकेगा. खास कर तब, जब ऐसी गड़बड़ियां तसवीर के रूप में सप्रमाण वेबसाइट पर जाकर जनता की आंखों के सामने हों. दो राय नहीं कि इससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को भी बल मिलेगा. निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यह मनरेगा को राज्य में मजबूत करने के लिए सरकार की ओर से उठाया गया एक प्रशंसनीय कदम है.