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परीक्षा को जीवन परिणाम न बनायें

महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, शेक्सपीयर, लाल बहादुर शास्त्री, मदर टेरेसा और प्रेमचंद जैसी महान विभूतियों को दुनिया काले-नीले पेन से अंकित उनके अंकों के लिए नहीं जानती. किताबी ज्ञान या शैक्षणिक पाठ्यक्रम एक स्नेत भर है. वह कभी भी संपूर्ण ज्ञान नहीं देते. कई बार तो परीक्षाफल विद्यार्थी के किताबी ज्ञान को आंकने में विफल […]

महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, शेक्सपीयर, लाल बहादुर शास्त्री, मदर टेरेसा और प्रेमचंद जैसी महान विभूतियों को दुनिया काले-नीले पेन से अंकित उनके अंकों के लिए नहीं जानती. किताबी ज्ञान या शैक्षणिक पाठ्यक्रम एक स्नेत भर है. वह कभी भी संपूर्ण ज्ञान नहीं देते. कई बार तो परीक्षाफल विद्यार्थी के किताबी ज्ञान को आंकने में विफल हो जाते हैं, क्योंकि अवांछित परीक्षाफल के कई कारक हो सकते हैं. अत: परीक्षाफल से सबक या प्रेरणा ली जानी चाहिए.
परीक्षाफल मंजिलों की ओर बढ़ते हुए विद्यार्थी का पहला कदम है. इसे आखिरी नहीं मानना चाहिए. यदि इस कदम को उठाने में वह लड़खड़ाने लगे, तो उसे सहारा दिया जाना चाहिए. उसे उसकी क्षमताओं का बोध या स्मरण कराना चाहिए. उसे हीनता का बोध कराना अनावश्यक और हानिकारक होगा. उस वक्त उसे उत्साहवर्धन की जरूरत होती है.
इसके विपरीत उसे हतोत्साहित करना बड़ी भयंकर भूल है, क्योंकि ऐसा करने से वह तेज भागना शुरू नहीं कर देगा, बल्कि उसके बेसहारा लड़खड़ाते कदम चलना ही बंद कर देंगे और वह गिर जायेगा. परिजनों को ये समझना आवश्यक है कि खराब परीक्षाफल से विद्यार्थी की मनोदशा पहले ही खराब हो चुकी होती है और अगर ऐसे में उसकी मानसिकता पर और चोट की जाती है, तो इसका बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है.
इससे छात्र का आत्मविश्वास टूट जाता है, जोकि उसकी पूरी जिंदगी को प्रभावित कर सकता है. शुभचिंतकों और विशेषकर अभिभावकों को ये ध्यान रखना चाहिए किसी भी मंजिल की प्राप्ति अकेले संभव नहीं है. उसके लिए अपनों के सहयोग और दृढ़ विश्वास की जरूरत होती है. अत: परिजन छात्रों के परीक्षाफल को उसके जीवन का परिणाम न बनने दें.
आलोक रंजन, हजारीबाग

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